खनिज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की चौतरफा कोशिश पर काम तेज; देश में जहां भी खनिज की संभावना, वहां खोज करने की रणनीति
सरकार कोशिश कर रही है कि साल 2047 तक देश में खनिज उत्पादों की सौ फीसद संभावनाओं का दोहन कर लिया जाए। इस काम में देश के भीतर भी बड़े पैमानों पर खनन कार्य होगा और समुद्री सीमा के भीतर भी। भारत इस क्षेत्र में अपनी भौगोलिक क्षेत्र में खनिज संपदाओं की क्षमताओं का 30 फीसद हिस्से में ही खनन कार्य कर रहा है। आइए जानते हैं पूरी खबर।
2047 तक देश में खनिज उत्पादों की सौ फीसद संभावनाओं का दोहन करने की योजना।
खनिज चाहे किसी तरह का हो, अब उसके खनन को लेकर भारत कोई कोताही नहीं करने जा रहा। अत्याधुनिक प्रौद्योगिक वाले उद्योगों (संचार, इलेक्ट्रिक वाहन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, सोलर आदि) में इस्तेमाल होने वाले दुर्लभ खनिजों (लिथियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, एंटीमनी आदि) से लेकर देश में कच्चे तेल व कोयले के भंडारों से खनन का काम को बेहद तीव्र गति करने से करने की रणनीति लागू होने जा रही है।
कोशिश यह है कि वर्ष 2047 तक देश में खनिज उत्पादों की सौ फीसद संभावनाओं का दोहन कर लिया जाए। इस काम में देश के भीतर भी बड़े पैमानों पर खनन कार्य होगा और समुद्री सीमा के भीतर भी। मोटे तौर पर भारत इस क्षेत्र में अपनी भौगोलिक क्षेत्र में खनिज संपदाओं की क्षमताओं का 30 फीसद हिस्से में ही खनन कार्य कर रहा है।
पिछले दिनों में खनन मंत्रालय में सचिव वीएल कांथा राव ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इस बारे में जानकारी दी थी। दैनिक जागरण ने इसके बारे में दूसरे मंत्रालयों से भी बात की है जिससे उनकी तैयारियों का पता चला है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि कोशिश यह है कि अगले दस वर्षों में खनन क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की अधिकतम कोशिश हो। इसके पीछे दो बड़ी वजहें हैं। एक तो अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी पर आधारित उद्योगों में दुर्लभ खनिजों की बहुत ज्यादा जरूरत होगी और घरेलू स्तर पर खनिज उत्खनन किये बगैर संचार, सूचना-प्रौद्योगिकी, एआई, सेमीकंडक्टर जैसे उद्योगों में आत्मनिर्भर नहीं बना जा सकता।
पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने 30 ऐसे दुर्लभ खनिजों का चयन किया है जिनकी जरूरत एक विकसित देश बनने के लिए होगी। इसके लिए खनिज ब्लाकों की नीलामी के तीन दौर अभी तक पूरे किये गये हैं। इसके तहत कुल 45 ब्लाकों की नीलामी की तैयारी है।
दूसरी वजह यह है कि भारत ने वर्ष 2070 तक देश को नेट जीरो बनाने का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2070 से पहले भारत अपने उन खनिजों का दोहन करने करने की कोशिश करेगा जिनसे पर्यावरण को खतरा है। जैसे कोयला या कच्चे तेल या प्राकृतिक गैस। देश का कोयला मंत्रालय और पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय अपने स्तर पर इसके लिए अलग से कोशिश कर रहा है।
कोयला मंत्रालय का डेटा बताता है कि पहली बार किसी एक वित्त वर्ष के दौरान (2023-24) देश में कोयला और लिग्नाइट का खनन सौ करोड़ टन को पार कर लिया है। मंत्रालय ने वर्ष 2029-30 तक कोयला व लिग्नाइट उत्पादन को 150 करोड़ टन लक्ष्य रखा है। इसके लिए कोयला ब्लाकों का वाणिज्यिक उद्देश्यों से नीलामी की प्रक्रिया चल रही है। अभी तक कुल नौ दौर में नीलामी हो चुकी है।
इन नौ दौरों में ही अगर निजी कंपनियां समय पर कोयला उत्पादन शुरू कर देती हैं तो भारत का कोयला उत्पादन 20 फीसद तक बढ़ सकता है। लंबे अरसे बाद भारत सरकार ने 80 हजार मेगावाट क्षमता की ताप बिजली परियोजनाओं को लगाने का फैसला किया है। इसके अलावा बिजली की मांग भी तेजी से बढ़ रही है जिससे मौजूदा ताप बिजली संयंत्रों को ज्यादा कोयले की जरूरत होगी।
इसी तर्ज पर पेट्रोलियम मंत्रालय भी पहली बार 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कच्चे तेल व गैस की खोज की प्रक्रिया को शुरू किया है। पेट्रोलियम सेक्टर में भारत का आयातित उत्पादों पर निर्भरता लगातार बढ़ रहा है लेकिन पेट्रोलियम मंत्रालय की कोशिश यह है कि अगले पांच वर्षों के भीतर देश में पेट्रोलियम उत्पादों की खोज की जो भी संभावनाएं हैं उनका पूरा दोहन हो जाए।
अभी तक सिर्फ 3.3 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में भी तेल व गैस की खोज हो पाई है। भारत अपनी जरूरत का 86 फीसद कच्चा तेल बाहर से आयात करता है। मंत्रालय को उम्मीद है कि तीन गुणा ज्यादा क्षेत्र में तेल व गैस की खोज व उत्खनन कार्य करने से आयात को कम करने में मदद मिलेगा
खनिज चाहे किसी तरह का हो, अब उसके खनन को लेकर भारत कोई कोताही नहीं करने जा रहा। अत्याधुनिक प्रौद्योगिक वाले उद्योगों (संचार, इलेक्ट्रिक वाहन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, सोलर आदि) में इस्तेमाल होने वाले दुर्लभ खनिजों (लिथियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, एंटीमनी आदि) से लेकर देश में कच्चे तेल व कोयले के भंडारों से खनन का काम को बेहद तीव्र गति करने से करने की रणनीति लागू होने जा रही है।
कोशिश यह है कि वर्ष 2047 तक देश में खनिज उत्पादों की सौ फीसद संभावनाओं का दोहन कर लिया जाए। इस काम में देश के भीतर भी बड़े पैमानों पर खनन कार्य होगा और समुद्री सीमा के भीतर भी। मोटे तौर पर भारत इस क्षेत्र में अपनी भौगोलिक क्षेत्र में खनिज संपदाओं की क्षमताओं का 30 फीसद हिस्से में ही खनन कार्य कर रहा है।
पिछले दिनों में खनन मंत्रालय में सचिव वीएल कांथा राव ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इस बारे में जानकारी दी थी। दैनिक जागरण ने इसके बारे में दूसरे मंत्रालयों से भी बात की है जिससे उनकी तैयारियों का पता चला है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि कोशिश यह है कि अगले दस वर्षों में खनन क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की अधिकतम कोशिश हो। इसके पीछे दो बड़ी वजहें हैं। एक तो अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी पर आधारित उद्योगों में दुर्लभ खनिजों की बहुत ज्यादा जरूरत होगी और घरेलू स्तर पर खनिज उत्खनन किये बगैर संचार, सूचना-प्रौद्योगिकी, एआई, सेमीकंडक्टर जैसे उद्योगों में आत्मनिर्भर नहीं बना जा सकता।
पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने 30 ऐसे दुर्लभ खनिजों का चयन किया है जिनकी जरूरत एक विकसित देश बनने के लिए होगी। इसके लिए खनिज ब्लाकों की नीलामी के तीन दौर अभी तक पूरे किये गये हैं। इसके तहत कुल 45 ब्लाकों की नीलामी की तैयारी है।
दूसरी वजह यह है कि भारत ने वर्ष 2070 तक देश को नेट जीरो बनाने का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2070 से पहले भारत अपने उन खनिजों का दोहन करने करने की कोशिश करेगा जिनसे पर्यावरण को खतरा है। जैसे कोयला या कच्चे तेल या प्राकृतिक गैस। देश का कोयला मंत्रालय और पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय अपने स्तर पर इसके लिए अलग से कोशिश कर रहा है।
कोयला मंत्रालय का डेटा बताता है कि पहली बार किसी एक वित्त वर्ष के दौरान (2023-24) देश में कोयला और लिग्नाइट का खनन सौ करोड़ टन को पार कर लिया है। मंत्रालय ने वर्ष 2029-30 तक कोयला व लिग्नाइट उत्पादन को 150 करोड़ टन लक्ष्य रखा है। इसके लिए कोयला ब्लाकों का वाणिज्यिक उद्देश्यों से नीलामी की प्रक्रिया चल रही है। अभी तक कुल नौ दौर में नीलामी हो चुकी है।
इन नौ दौरों में ही अगर निजी कंपनियां समय पर कोयला उत्पादन शुरू कर देती हैं तो भारत का कोयला उत्पादन 20 फीसद तक बढ़ सकता है। लंबे अरसे बाद भारत सरकार ने 80 हजार मेगावाट क्षमता की ताप बिजली परियोजनाओं को लगाने का फैसला किया है। इसके अलावा बिजली की मांग भी तेजी से बढ़ रही है जिससे मौजूदा ताप बिजली संयंत्रों को ज्यादा कोयले की जरूरत होगी।
इसी तर्ज पर पेट्रोलियम मंत्रालय भी पहली बार 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कच्चे तेल व गैस की खोज की प्रक्रिया को शुरू किया है। पेट्रोलियम सेक्टर में भारत का आयातित उत्पादों पर निर्भरता लगातार बढ़ रहा है लेकिन पेट्रोलियम मंत्रालय की कोशिश यह है कि अगले पांच वर्षों के भीतर देश में पेट्रोलियम उत्पादों की खोज की जो भी संभावनाएं हैं उनका पूरा दोहन हो जाए।
अभी तक सिर्फ 3.3 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में भी तेल व गैस की खोज हो पाई है। भारत अपनी जरूरत का 86 फीसद कच्चा तेल बाहर से आयात करता है। मंत्रालय को उम्मीद है कि तीन गुणा ज्यादा क्षेत्र में तेल व गैस की खोज व उत्खनन कार्य करने से आयात को कम करने में मदद मिलेगा
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