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Copper-Rich डाइट से बढ़ेगी ब्रेन पावर, डिमेंशिया से बचाव में मि‍लेगी मदद; नई स्‍टडी में हुआ खुलासा

एक नए शोध में पाया गया है कि कॉपर युक्त भोजन दिमाग को स्वस्थ रखने में मदद कर सकता है। नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित इस रिसर्च के अनुसार कॉपर से भरपूर भोजन का सेवन करने वाले अमेरिकी लोग याददाश्त से जुड़ी समस्याओं को समझने में अधिक सफल रहे। कॉपर एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है और दिमाग की कोशिकाओं को बचाता है।

द‍िमाग को हेल्‍दी रखने के ल‍िए खाएं ये चीजें (Image Credit- Freepik)

 अच्छा खानपान न सिर्फ शरीर बल्कि दिमाग के लिए भी जरूरी होता है। इसी से जुड़ा एक नया शोध सामने आया है, जिसमें ये बात सामने आई है कि कॉपर युक्त भोजन दिमाग को स्वस्थ रखने में मदद कर सकता है। ‘नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में इस र‍िसर्च को प्रकाश‍ित क‍िया गया है। इस अध्ययन में ये पाया गया कि जो अमेरिकी लोग ज्‍यादा कॉपर से भरपूर भोजन का सेवन कर रहे थे, वो याददाश्त से जुड़ी समस्याओं को समझने और उन्हें पहचानने में ज्यादा सफल रहे।

वैज्ञानिकों ने बताया कि जो लोग कॉपर से भरपूर चीजें जैसे सी फूड्स, डार्क चॉकलेट और नट्स ज्‍यादा मात्रा में खाते हैं, उन्होंने डिमेंशिया (बुढ़ापे में भूलने की बीमारी) से जुड़ी जांचों में अच्छा प्रदर्शन किया। प्रमुख शोधकर्ता ईफ होगर्वोर्स्ट ने बताया क‍ि शोध में ये भी देखा गया कि इन लोगों के खाने में कॉपर के साथ-साथ जिंक, आयरन और सेलेनियम जैसे अन्य पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में मौजूद थे।


पहले भी हुए हैं ऐसे कई शोध

इससे पहले भी कुछ शोधों में ये बात सामने आई थी कि जिन लोगों की डाइट में कॉपर की मात्रा कम थी, उनके सोचने और याद रखने की क्षमता समय के साथ घटती चली गई। एक और रिसर्च में वैज्ञानिकों ने जब मस्तिष्क के ऊतकों में कॉपर की मात्रा को मापा, तो पाया कि जिनके दिमाग में कॉपर की मात्रा ज्यादा थी, उनमें अल्जाइमर से जुड़ी हानिकारक चीजें (जैसे- अमाइलॉइड पट्टियां) कम थीं और दिमाग की सेहत बेहतर थी।


कॉपर कैसे करता है दिमाग की मदद?

वैज्ञानिकों के मुताबिक, कॉपर एक एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है जो दिमाग की कोशिकाओं को खराब होने से बचाता है। ये न्यूरोट्रांसमीटर (दिमाग में संदेश भेजने वाले केम‍िकल) को बनाने में मदद करता है और दिमाग को ऊर्जा भी देता है। कॉपर की कमी बहुत आम नहीं होती, लेकिन जब होती है तो इसके असर साफ दिखते हैं।


इन लक्षणों पर दें ध्‍यान

अगर कोई व्यक्ति बार-बार थकावट महसूस करता है, कमजोर रहता है और आयरन या विटामिन B12 लेने पर भी उसका एनीमिया ठीक नहीं होता, तो यह कॉपर की कमी हो सकती है। इसके अन्य लक्षणों में जल्दी-जल्दी बीमार होना, हड्डियों का कमजोर होना और समय के साथ नसों की कमजोरी शामिल हैं।


क्या खाएं?

वैज्ञानिकों ने कहा है कि कॉपर का सप्लीमेंट लेने से पहले सावधानी जरूरी है, क्योंकि शरीर को सभी मिनरल्स का एक संतुलन चाहिए। बहुत ज्यादा आयरन या जिंक लेने से शरीर में कॉपर की मात्रा कम हो सकती है। वहीं बहुत ज्यादा कॉपर या आयरन लेने से दिमाग को नुकसान पहुंच सकता है। कॉपर प्राकृतिक रूप से बीफ, समुद्री भोजन, नट्स, बीज, मशरूम, साबुत अनाज और डार्क चॉकलेट में पाया जाता है। कुछ अनाजों में भी इसे मिलाया जाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, रोजाना करीब 1.22 से 1.65 मिलीग्राम कॉपर दिमाग के लिए फायदेमंद होता है।
धीमा जहर हैं आंखों को लुभाने वाले आर्टिफिशियल फूड कलर्स, सेहत पर पड़ सकता है भारी

धीमा जहर हैं आंखों को लुभाने वाले आर्टिफिशियल फूड कलर्स, सेहत पर पड़ सकता है भारी

धीमा जहर हैं आंखों को लुभाने वाले आर्टिफिशियल फूड कलर्स, सेहत पर पड़ सकता है भारी

रंग-बिरंगे फूड आइटम भले ही आंखों को सुहाते हों लेकिन सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं। कुछ आर्टिफिशिल कलर्स जोकि फूड में इस्तेमाल होने के लिए नहीं बने उन्हें भी चोरी-छुपे फूड आयटम्स को कलरफुल बनाने के लिए डाला जाता है। इनसे बचने का एक ही तरीका है जितना हो सके आर्टिफिशियल कलर वाले फूड से बचें।

फूड्स में आर्टिफिशियल रंग सेहत के लिए कितना खतरनाक? (Picture Credit- Freepik)

 आंखों को लुभाने वाली कैंडी, अलग-अलग फ्लेवर की आइसक्रीम में रंगों का एक ऐसा मायाछाला बिछाया जाता है, जो दिखने में तो खूबसूरत लगते हैं, लेकिन हकीकत उससे उलट होती है।

चाहे पैकेटबंद फूड आयटम हों या फिर रेस्टोरेंट्स में बनने वाली डिशेज इन सबमें फूड डाई या कलर्स का इस्तेमाल होता है। भारत ही नहीं दुनियाभर में इन आर्टिफिशियल फूड कलर्स को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है। आइए रंगों के इस कारोबार को समझते हैं और उनसे सेहत को होने वाले नुकसान के बारे में जानते हैं।



ये फूड डाई होते हैं सबसे ज्यादा इस्तेमालरेड डाई 40: चाहे कैंडी हो, बेक्ड फूड, सॉफ्ट ड्रिंक या दवाइयां, इस फूड डाई का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। कई स्टडीज यह बताती है कि रेड डाई 40 के लगातार शरीर में जाने से बच्चों में हाइपएक्टिविटी और एकाग्रता से जुड़ी परेशानियां हो जाती हैं, खासकर ADHD से पीड़ित बच्चों में।

येलो डाई 5 (टेट्राजीन) और येलो डाई 6 (सनसेट येलो): ये डाई सबसे ज्यादा प्रोसेस्ड फूड्स में इस्तेमाल होते हैं, जिनमें बेक्ड चीजें, कैन में बंद सब्जियां और सॉफ्ट ड्रिंक्स आते हैं। इस ड्राई की वजह से भी बिहेवियर संबंधी समस्याएं होती हैं, खासकर बच्चों में।
ब्लू डाई 3: इस कलर का इस्तेमाल कैंडीज, बेक्ड चीजों और सॉफ्ट ड्रिंक में होता है। चूहों पर की गई रिसर्च में यह बात सामने आई कि इस ड्राई की वजह से ब्रेन और ब्लेडर का ट्यूमर हो सकता है।
सिट्रस रेड 2: इसे ऑरेंज और ग्रेपफ्रूट जूसेस में डाला जाता है। इस डाई को लेकर भी एनिमल स्टडीज में यह बात सामने आई है कि इससे ब्लेडर और अन्य अंगों में ट्यूमर होने का खतरा बढ़ जाता है।
बच्चे होते हैं सबसे ज्यादा प्रभावित

आर्टिफिशियल फूड डाई का खतरा सबसे ज्यादा बच्चों की सेहत को होता है। उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर कलर्स में इस्तेमाल होने वाले केमिकल काफी बुरा असर डालते हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का कहना है कि पेरेंट्स को अपने बच्चों को आर्टिफिशियल कलर्स वाले फूड से दूर रखने की कोशिश करनी चाहिए, खासकर जिन बच्चों को पहले से ही कोई बीमारी है।

नेचुरल फूड कलर्स

काफी सारे फलों, सब्जियों और मसालों में नेचुरल कलर होता है और इनका इस्तेमाल खाने के रंग को निखारने के लिए किया जा सकता है। वैसे काफी सारी ऐसी कंपनियां हैं जोकि प्लांट बेस्ड एक्स्ट्रैक्ट का इस्तेमाल फूड कलरिंग में कर रहे हैं। ये एक्सट्रैक्ट फल, सब्जियों और पेड़ों के दूसरे हिस्सों से तैयार किया जाता है और तुलनात्मक रूप से सुरक्षित माना जाता है।

भारत में इन कलर्स के फूड प्रोडक्ट्स पर है बैनमेलेनिल येलो- रेस्पेरेटरी सिस्टम और स्किन के लिए नुकसानदायक है। इसकी वजह से फर्टिलिटी पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
रोडामाइन बी- यह कलर किडनी, लिवर को डैमेज करने और पेट के कैंसर के लिए खतरा माना जाता है। यह फूड कलर नहीं है और इंसानी शरीर के लिए टॉक्सिक है।
सूडान डाई- भारत में कुछ राज्यों में यह खतरनाक डाई मिर्च पाउडर, कई प्रकार के करी पावडर में पाए जाने से खलबली मच गई। यह ड्राई लिवर और ब्लेडर कैंसर का कारण बन सकता है।
इन 5 बुरी आदतों से कर लें क‍िनारा, वरना बढ़ सकता है हेपेटाइटिस का खतरा!

इन 5 बुरी आदतों से कर लें क‍िनारा, वरना बढ़ सकता है हेपेटाइटिस का खतरा!

इन 5 बुरी आदतों से कर लें क‍िनारा, वरना बढ़ सकता है हेपेटाइटिस का खतरा!

वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे (World Hepatitis Day 2025) हर साल 28 जुलाई को मनाया जाता है जिसका उद्देश्य लोगों को हेपेटाइटिस के प्रति जागरूक करना है। हेपेटाइटिस लिवर की एक गंभीर बीमारी है जो आपकी कुछ आदतों के कारण ही होती हैं। इनके लक्षणों को पहचान कर समय पर इलाज करवाना जरूरी होता है।


ल‍िवर को नुकसान पहुंचाती हैं ये आदतें (Image Credit- Freepik)

हर साल 28 जुलाई को वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे (World Hepatitis Day 2025) मनाया जाता है। इस द‍िन लोगों को इस बीमारी के प्रत‍ि जागरुक क‍िया जाता है। Hepatitis लिवर से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जो अगर समय रहते न रोकी जाए तो लिवर फेलियर या कैंसर का रूप ले सकती है। सबसे चिंता की बात तो ये है क‍ि कई बार हम अपनी ही कुछ आदतों से जाने अनजाने में इस बीमारी को बढ़ावा दे देते हैं।

शराब का ज्‍यादा सेवन, बिना डॉक्टर की सलाह के दवाइयां लेना, साफ-सफाई की अनदेखी, खराब पानी या बासी खाना खाने जैसी कई खराब आदतें हमारे लिवर को नुकसान पहुंचाती हैं। साथ ही हेपेटाइटिस का कारण बन सकती हैं। कई मामलों में तो ये बीमारी शुरू में कोई खास लक्षण नहीं दिखाती है, इसलिए लोग इसे पहचान नहीं पाते हैं। इस कारण इसका इलाज सही समय पर नहीं हो पाता है।

आज हम आपको इस खास मौकों पर बताएंगे क‍ि आपकी कौन-सी खराब आदतें हैं जो आपके ल‍िवर को बुरी तरह से प्रभाव‍ित कर रही है, ज‍िससे हेपेटाइट‍िस का खतरा बढ़ जाता है? साथ ही इनके लक्षणों के बारे में भी जानेंगे। तो आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से -

ज्‍यादा शराब पीना

अगर आप कुछ ज्‍यादा ही शराब पीते हैं तो इससे ल‍िवर पर बुरा असर पड़ता है। ये लि‍वर की हेपेटाइटिस वायरस से लड़ने की क्षमता को कम कर देता है। इससे हेपेटाइटिस संक्रमण बढ़ता जाता है।
ओवरईट‍िंग

जब आप ओवरईट‍िंग करते ह‍ैं तो इससे आपका वजन बढ़ने लगता है। वहीं अल्‍ट्रा प्रॉसेस्‍ड फूड खाने से भी वजन तो बढ़ता ही है, साथ ही पेट के आसपास चर्बी बढ़ने से नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। हेपेटाइट‍िस का ये भी एक कारण है।

स्‍मोक‍िंग

स्‍मोक‍ करने से भी फैटी लि‍वर की समस्‍या बढ़ जाती है। ऐसा तब होता है जब लि‍वर में फैट जमा होने लगता है। ये ल‍िवर में सूजन को बढ़ावा देता है। कई बार सिरोसिस और लिवर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी आपको जकड़ सकती हैं।


दूष‍ित पानी पीना

आपको बता दें क‍ि हेपेटाइटिस का वायरस गंदे पानी में लंबे समय तक ज‍िंदा रहता है। ऐसे में अगर आप ये पानी पीते हैं तो इससे हेपेटाइट‍िस का खतरा बढ़ जाता है।
असुरक्षित तरीके से यौन संबंध बनाना

अगर एक से ज्यादा पार्टनर के साथ आप ब‍िना क‍िसी सेफ्टी के साथ शारीर‍िक संबंध बनाते हैं तो भी आप हेपेटाइटिस वायरस के संपर्क में आ सकते हैं। इस दाैरान आप कोश‍िश करें क‍ि प्रोटेक्‍शन का इस्‍तेमाल करें।

क्‍या हैं हेपेटाइट‍िस के लक्षण ?थकान
कमजोरी महसूस होना
पेट में दर्द बने रहना
मतली और उल्‍टी की समस्‍या होना
अचानक से बुखार आना
स्‍क‍िन पर खुजली होना
पेशाब का रंग बदलना
त्वचा और आंखों का पीला पड़ना
स्‍वाद में मीठे, फ‍िर भी ये 4 फल खा सकते हैं Diabetes के मरीज; कंट्रोल में रहेगा ब्‍लड शुगर

स्‍वाद में मीठे, फ‍िर भी ये 4 फल खा सकते हैं Diabetes के मरीज; कंट्रोल में रहेगा ब्‍लड शुगर

स्‍वाद में मीठे, फ‍िर भी ये 4 फल खा सकते हैं Diabetes के मरीज; कंट्रोल में रहेगा ब्‍लड शुगर

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों का खानपान सही नहीं है। इससे जहां मोटापे की समस्‍या बढ़ रही है वहीं डायबिटीज का खतरा भी बढ़ रहा है। डायबिटीज होने पर आपको कुछ खास फलों का सेवन करना चाह‍िए। ये फल ब्‍लड शुगर को कंट्रोल रखने में मदद करते हैं।

डायब‍िटीज के मरीजों के ल‍िए फायदेमंद हैं ये फल (Image Credit- Freepik)

 आजकल की भागदाैड़ भरी ज‍िंदगी में लोग अपनी सेहत का सही ढंग से ख्‍याल नहीं रख पा रहे हैं। इससे जहां लोग मोटापे का श‍िकार हो रहे हैं, तो वहीं द‍िल की बीमारी और डायब‍िटीज की समस्‍या भी देखी जा रही है। इसके पीछे की वजह खराब खानपान और अनहेल्‍दी लाइफस्‍टाइल काे माना जाता है। कहते हैं क‍ि अगर आपकी डाइट और रूटीन दोनों हेल्‍दी होते हैं तो इससे कई बीमार‍ियों का खतरा अपने आप कम हो जाता है।


डायब‍िटीज की बात करें तो इसमें आपको मीठा खाने की मनाही होती है। इसके अलावा अल्‍ट्रा प्रॉसेस्‍ड फूड और पैक्‍ड जूस को भी लेने से मना क‍िया जाता है। हालांक‍ि, कुछ फल ऐसे हैं ज‍िसे आप डायब‍िटीज की बीमारी हाेने पर भी आराम से खा सकते हैं। आज का हमारा लेख भी इसी व‍िषय पर है। हम आपको उन फलों के बारे में बताने जा रहे ह‍ैं ज‍िसे आप डायब‍िटीज होने पर भी खा सकते हैं। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से -


जामुन

ये फल डायब‍िटीज के मरीजों के ल‍िए वरदान से कम नहीं है। इसमें जंबोलिन और जंबोसिन नाम के कंपाउंड्स अच्‍छी मात्रा में पाए जाते हैं। इससे ब्लड शुगर तो कंट्रोल होता ही है, साथ ही इंसुलिन की कार्यक्षमता में भी सुधार होता है। इसे आप रोजाना एक कटोरी खा सकते हैं।


अमरूद

अमरूद को भी डायब‍िटीज के मरीजों के ल‍िए बेहद फायदेमंद माना जाता है। आपको बता दें क‍ि अमरूद में फाइबर की मात्रा ज्‍यादा पाई जाती है। इसे खाने से आपका पेट लंबे समय तक भरा रहता है, आप ओवरईट‍िंग से बचे रहते हैं। इससे वजन कम करना आसान हो जाता है। वहीं अमरूद खाने से ब्लड शुगर को भी कंट्रोल में रखा जा सकता है। साथ ही इसमें मौजूद विटामिन सी इम्युनिटी को बूस्‍ट करता है।


पपीता

कहते हैं डायबिटीज के मरीजों को पपीता जरूर खाना चाहिए। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स और फाइबर शरीर में सेल्स को डैमेज होने से रोकते हैं। इसमें कैलोरी भी कम होती है। इस कारण डायब‍िटीज के मरीजों काे वजन मेंटेन करने में आसानी होती है।

बेरीज

बेरीज जैसे ब्लूबेरी, स्ट्रॉबेरी और चेरी का सेवन डायब‍िटीज के मरीजों को जरूर करना चाह‍िए। ये एक तरह से सुपरफूड होते हैं। इनमें एंटीऑक्सिडेंट और फाइबर भी अच्‍छी मात्रा में पाए जाते हैं।
ड्रेस फि‍ट नहीं हुई तो हफ्तों तक स‍िर्फ सब्‍जि‍यां खाती रही ये लड़की, फिर जो हुआ सुनकर उड़ जाएंगे होश

ड्रेस फि‍ट नहीं हुई तो हफ्तों तक स‍िर्फ सब्‍जि‍यां खाती रही ये लड़की, फिर जो हुआ सुनकर उड़ जाएंगे होश

ड्रेस फि‍ट नहीं हुई तो हफ्तों तक स‍िर्फ सब्‍जि‍यां खाती रही ये लड़की, फिर जो हुआ सुनकर उड़ जाएंगे होश

चीन में एक 16 वर्षीय लड़की ने ड्रेस में फिट होने के लिए खतरनाक डाइट का पालन किया जिससे उसे हाइपोकैलेमिया हो गया। उसने दो हफ्ते तक बहुत कम सब्जि‍यां खाईं और लैक्सेटिव का इस्तेमाल किया। उसे कमजोरी और सांस लेने में तकलीफ हुई जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। 12 घंटे के इमरजेंसी ट्रीटमेंट के बाद उसकी जान बचाई जा सकी।

क‍िन कारण से होता है Hypokalemia (Image Credit-Freepik)


चीन की एक 16 साल की लड़की ने सिर्फ एक ड्रेस में फिट होने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी। उस लड़की का नाम मेई (Mei) बताया जा रहा है। उसने अपने बर्थडे पर एक ड्रेस पहनने की ज‍िद में दो हफ्ते तक बेहद सख्त डाइट फॉलो की, जिसमें वो केवल थोड़ी-सी सब्जियां खाती थी और वजन घटाने के लिए लैक्सेटिव (पेट साफ करने वाली दवाएं) का इस्तेमाल करती थी। इससे उसकी तब‍ीयत ब‍िगड़ती चली गई।


'साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट' की रिपोर्ट के मुताबिक, उसे अचानक हाथ और पैरों में कमजोरी महसूस हुई। उसकी सांसे भी उखड़ने लगीं। उसकी फैम‍िली बच्‍ची को लेकर हॉस्‍प‍िटल पहुंची जहां डॉक्टरों ने उसकी हालत को गंभीर बताया। र‍िपोर्ट के मुताब‍िक, मेई को 12 घंटे तक इमरजेंसी ट्रीटमेंट देना पड़ा ताकि उसकी जान बचाई जा सके।


जांच में पता चला कि उसके शरीर में पोटैशियम की कमी हो गई थी। इसे मेड‍िकल भाषा में हाइपोकैलेमिया (Hypokalemia) कहते हैं। फ‍िल्‍हाल अच्छी खबर ये है कि अब मेई पूरी तरह से ठीक हो चुकी है। उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। उसने वादा किया है कि वह दोबारा कभी वजन कम करने के लिए ऐसा खतरनाक कदम नहीं उठाएगी।



क्‍या है हाइपोकैलेमिया?

हाइपोकैलेमिया एक जानलेवा कंडीशन होती है। इसमें शरीर का पोटैशियम लेवल पूरा गिर जाता है। ऐसा होने पर मरीज काे सांस लेने में दिक्कत, मसल्‍स के कमजोर होने और यहां तक कि हार्ट अटैक तक का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसा तब होता है जब खराब डाइट रूटीन को फॉलो क‍िया जाए। शरीर में पानी की कमी के कारण भी Hypokalemia का खतरा बढ़ जाता है।



क्या है कारण?

क्‍लीवलैंड क्‍लीनि‍क के मुताबि‍क, जब शरीर को जरूरी पोषक तत्व और पानी नहीं मिलता है, तो पोटैशियम की कमी होने लगती है। इससे कई गंभीर बीमार‍ियों का खतरा बढ़ जाता है। शरीर में पोटैशियम की कमी को पूरा करने या बनाए रखने के ल‍िए आलू, केला, चिकन जैसे फूड आइटम्‍स को डाइट में शाम‍िल करना चाह‍िए। साथ ही शरीर को भी हाइड्रेट रखना चाह‍िए।

हाइपोकैलेमिया के लक्षण क्‍या हैं?

पोटैशियम एक जरूरी मिनरल है जो शरीर को ठीक से काम करने में मदद करता है। जब शरीर में पोटैशियम कम हो जाता है, तो ये लक्षण दिख सकते हैं -


पेट साफ होने में दिक्कत
दिल की धड़कनें तेज या अनियमित महसूस हो सकती हैं
बहुत ज्‍यादा थका हुआ महसूस करना
मांसपेशियों में कमजोरी और ऐंठन
हाथ पैरों में झुनझुनी और सुन्नपन
लो ब्लड प्रेशर
चक्कर आना या बेहोशी
बार-बार पेशाब लगना
ज्‍यादा प्यास लगना
चीन में हो चुकी हैं कई घटनाएं

आपको बता दें क‍ि चीन में ये कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी एक 26 साल का युवक इंटरमिटेंट फास्टिंग और भारी एक्सरसाइज के कारण हाइपोकैलेमिया का शिकार हो चुका है। इसके अलावा 2021 में एक 38 साल की महिला ने एक बार में 4 लीटर नमक वाला पानी पी लिया था, जिससे उसे वॉटर इंटॉक्सिकेशन हो गया था।
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के कारण जा सकती हैं 3.85 करोड़ लोगों की जान, स्टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

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एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के कारण जा सकती हैं 3.85 करोड़ लोगों की जान, स्टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

क्या आप भी खुद से ही एंटीबायोटिक दवाएं ले लेते हैं। अगर हां तो रुक जाइए। बिना डॉक्टर से पूछे एंटीबायोटिक दवाएं लेना या इनके ज्यादा इस्तेमाल के कारण एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस बढ़ रही है। एक स्टडी में इससे जुड़ी काफी खतरनाक बात सामने आई है। इस स्टडी के मुताबिक एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के कारण करोड़ों लोग अपनी जान गंवा सकते हैं।

खुद से दवाएं लेना हो सकता है खतरनाक! (Picture Courtesy: Freepik)

HIGHLIGHTSएंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के कारण दवाएं बैक्टीरिया को खत्म नहीं कर पाती हैं
ज्यादा एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल की वजह से यह समस्या हो सकती है
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट बैक्टीरिया को सुपरबग कहा जाता है

एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग और ज्यादा इस्तेमाल के कारण उत्पन्न एंटीबायोटिक- रेजिस्टेंट बैक्टीरिया, जिन्हें सुपरबग कहा जाता है, वैश्विक स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिरता के लिए एक गंभीर चुनौती बनते जा रहे हैं | थिंक टैंक सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट द्वारा किए गए एक अध्ययन एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति बढ़ते प्रतिरोध के कारण 2050 तक तीन करोड़ से अधिक लोगों की मृत्यु हो सकती है।


एंटीबायोटिक प्रतिरोध तब होता है जब बैक्टीरिया उन एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं जिनका इस्तेमाल उनके इलाज के लिए किया जाता था। इससे कुछ जीवाणु संक्रमणों का इलाज मुश्किल हो जाता है।

दोगुना महंगा इलाज

अध्ययन में बताया गया है कि एंटीबायोटिक- प्रतिरोधी बैक्टीरिया अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में वृद्धि कर सकते हैं। प्रतिरोधी संक्रमणों का इलाज उन संक्रमणों की तुलना में लगभग दोगुना महंगा है जिनके लिए एंटीबायोटिक्स प्रभावी हैं। इससे न केवल मृत्युदर बल्कि उपचार की लागत भी बढ़ सकती है।

निम्न व मध्यम आय वाले देशों पर प्रभाव अधिक

इसका प्रभाव विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अधिक स्पष्ट दिखेगा। इन देशों में संक्रमण की दर और एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भरता ज्यादा और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सीमित है।

मौतों में 60 प्रतिशत की वृद्धि

एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) के आर्थिक बोझ का अनुमान लगाने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया गया है। स्वास्थ्य बोझ के अनुमान इंस्टीट्यूट फार हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आइएचएमई) से लिए गए हैं जो बताते हैं कि 2050 तक एएमआर से होने वाली मौतें 60 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है।

आइएचएमई के स्वास्थ्य बोझ अनुमानों के अनुसार, यदि प्रतिरोध 1990 के बाद के रुझानों का अनुसरण करता है तो एएमआर के कारण 2025 2050 के बीच 3.85 करोड़ मौतें हो सकती हैं। वहीं एएमआर की प्रत्यक्ष स्वास्थ्य देखभाल लागत वर्तमान में 66 अरब डालर प्रति वर्ष से बढ़कर 2050 तक 159 अरब डालर प्रति वर्ष हो सकती है।

इसलिए यह बेहद जरूरी है कि बिना डॉक्टर से पूछे कभी भी एंटीबायोटिक्स नहीं लेने चाहिए। ऐसा लगता है कि खुद से एंटीबायोटिक दवाएं लेने से कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन इस स्टडी में सामने आई बातें कुछ और ही इशारा कर रही हैं। इसलिए जरूरी है कि किसी भी तरह की परेशानी होने पर डॉक्टर से पूछकर एंटीबायोटिक्स लें और उसकी डोज पूरी करना भी बेहद जरूरी है।
आंखों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं ये फूड्स, जा सकती है रोशनी; खाने से पहले 10 बार सोचें

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आजकल की व्यस्त जीवनशैली में हम अपनी आंखों का ठीक से ध्यान नहीं रख पाते हैं जिससे आंखों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। गलत खानपान भी हमारे आंखों की रोशनी को कमजोर कर सकते हैं। इससे आंखों से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है। इसलिए हेल्‍दी डाइट लेना जरूरी है।


कुछ फूड्स हमारी आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं। (Image Credit- Freepik)

 आज के समय में हम अपनी सेहत का सही ढंग से ख्‍याल नहीं रख पा रहे हैं। कई बार हम इतने ब‍िजी हो जाते हैं क‍ि हम अपनी आंखों की केयर करना भी भूल जाते हैं। आंखें हमारे शरीर का नाजुक ह‍िस्‍सा हाेती हैं। इसी से हम इस खूबसूरत दुन‍िया को देख पाते हैं। लेकिन भागदौड़ भरी जिंदगी में हम घंटों मोबाइल-लैपटॉप की स्क्रीन पर समय बिताते हैं। इससे हमारी आंखाें पर नकारात्‍मक असर देखने को म‍िल रहा है।

साथ ही गलत खानपान का असर भी हमारी आंखों पर तेजी से पड़ता है। अक्‍सर लोग आंखों की देखभाल को नजरअंदाज कर देते हैं, खासकर जब बात खानपान की हो। हम जो कुछ भी खाते हैं, उसका असर सीधे हमारे शरीर के अंगों पर पड़ता है। इसमें आंखें भी शामिल हैं। कई बार हम ऐसे फूड्स का रोजाना सेवन करते हैं जो धीरे-धीरे आंखों की रोशनी को कमजोर करने लगते हैं। खासकर जंक फूड, बहुत ज्यादा मीठा या तला-भुना खाना, न सिर्फ शरीर को नुकसान पहुंचाता है बल्कि आंखों की हेल्थ के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।

आज का हमारा लेख भी इसी व‍िषय पर है। हम आपको बताएंगे क‍ि कौन से फूड आइटम्‍स आपकी आंखों पर बुरा असर डाल रहे हैं। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से -
मैदे से बने ब्रेड और पास्‍ता

मैदा न‍ स‍िर्फ हमारी सेहत को नुकसान पहुंचाता है। बल्‍क‍ि ये हमारी आंखों की सेहत के ल‍िए भी ठीक नहीं होते हैं। हम रोजाना ब्रेड को तो खाते ही हैं। साथ ही पास्‍ता भी बनाए जाते हैं। इनमें कार्बोहाइड्रेट भी होता है जो आसानी से डाइजेस्‍ट हो जाता है। ऐसे में इनमें मौजूद ब्लड शुगर तेजी से बढ़ता है। इससे हमारी आंखों को नुकसान पहुंचता है। आप ब्राउन ब्रेड या सूजी से बना पास्‍ता खा सकते हैं।



जंक फूड्स

आंखों के लिए सबसे खराब फूड्स की लिस्ट में जंक फूड्स शाम‍िल होते हैं। इसमें मौजूद ऑयल न स‍िर्फ सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्‍क‍ि आंखों के लि‍ए भी हानि‍कारक हैं। आपको बता दें क‍ि जंक फूड्स कोलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं। ऐसे में Arteries ब्‍लॉक हो जाती हैं। इससे स्‍ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही आंखों की रोशनी भी जा सकती है।


स्‍वीट ड्र‍िंक्‍स

अगर आप इन ड्र‍िंक्‍स को पीते हैं तो इससे कई तरह की बीमारियां बढ़ जाती हैं। इनसे वजन तो बढ़ता ही है, साथ ही डायबिटीज का खतरा भी बढ़ जाता है। इसके अलावा आंखों से जुड़ी बीमारी रेटिनोपैथी के होने के चांसेज रहते हैं।



रेड मीट

ज्‍यादातर लोग रेट मीट खाते हैं। ये भले ही आपको टेस्‍टी लगे लेक‍िन ये आपके शरीर के लिए ब‍िल्‍कुल भी अच्छा नहीं है। ये डायब‍िटीज को बढ़ावा देता है, डायब‍िटीज होने से आंखों की रोशनी पर भी असर पड़ता है।
जिम जाएं या न जाएं, डाइट में शामिल करेंगे ये फूड्स; तो कमाल की बनेगी बॉडी- दूर होगी Protein की कमी

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जिम जाएं या न जाएं, डाइट में शामिल करेंगे ये फूड्स; तो कमाल की बनेगी बॉडी- दूर होगी Protein की कमी

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में खराब खानपान और अनहेल्दी लाइफस्टाइल के कारण लोगों में प्रोटीन की कमी हो रही है। इस कमी को पूरा करने के लिए अंडे के अलावा भी कई विकल्प मौजूद हैं। अगर आप वेज‍िटेर‍ियन हैं तो आपको इन्‍हें अपनी डाइट में जरूर शाम‍िल करना चाह‍िए।

प्रोटीन की कमी को पूरा करेंगे ये फूड्स (Image Credit- Freepik)

 आजकल की भागदौड़ भरी ज‍िंदगी में लोगाें को कई तरह की बीमार‍ियां घेर रही हैं। खराब खानपान और अनहेल्‍दी लाइफस्‍टाइल के कारण माेटापे की समस्‍या तो बढ़ ही रही है, साथ ही डायब‍िटीज और द‍िल की बीमार‍ियाें का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। वहीं शरीर में पोषक तत्‍वाें की कमी भी देखने को म‍िल रही है। प्रोटीन भी उन्‍हीं में से एक है। अगर हमारे शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाए तो आपके शरीर में कई संकेत नजर आने लगते हैं।


इनकी कमी को पूरा करना जरूरी होता है। वरना समय से पहले आपकी हड्ड‍ियां कमजोर हो सकती हैं। साथ ही आपकी त्‍वचा भी फीकी पड़ सकती है। आमतौर पर अगर शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाए तो अंडे खाने की सलाह दी जाती है। लेकिन अगर आप अंडा नहीं खाते हैं, तो भी आप कुछ चीजों को डाइट में शाम‍िल कर इसकी कमी को पूरा कर सकते हैं। इससे आपके मसल्‍स भी मजबूत होंगे। ब‍िना जि‍म जाए आप फ‍िट रहेंगे।


आज का हमारा लेख भी इसी व‍िषय पर है। हम आपको बताएंगे क‍ि आप अंडे के अलावा डाइट में और क‍िन चीजों को शाम‍िल कर सकते हैं ज‍िससे प्रोटीन की कमी को पूरा क‍िया जा सके। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से -


प्रोटीन की कमी के लक्षणनाखूनों का कमजोर होना
मसल्‍स का कमजोर होना
हड्ड‍ियों में दर्द
थकान
कमजोरी
भूख न लगना
बालों का कमजोर होना
त्‍वचा में सूजन आना
इन चीजों में पाया जाता है अंडे से ज्‍यादा प्रोटीनआपको बता दें क‍ि ब्रोकली एक ऐसा सुपरफूड है ज‍िसमें अंडे से ज्‍यादा प्रोटीन पाया जाता है। आप इसे सलाद के रूप में खा सकते हैं। या तो इसका जूस बनाकर भी पी सकते हैं। इससे आपकी इम्‍युन‍िटी भी स्‍ट्राॅन्‍ग होती है। साथ ही प्रोटीन की कमी को भी पूरा क‍िया जा सकता है।
कद्दू के बीज में भी प्रोटीन की अच्‍छी मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा ये जिंक, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम, पोटैशियम और सेलेनियम का भी बढ़ि‍या स्‍त्रोत है। इसे आप स्‍मूदी या फ‍िर ड्राई रोस्‍‍ट करके सलाद में म‍िलाकर खा सकते हैं।
चने में भी प्रोटीन का भंडार छ‍िपा होता है। इसके अलावा इसमें फाइबर की भी अच्‍छी मात्रा पाई जाती है। अगर आप इसे खाते हैं तो भूख को कंट्रोल करना आसान हो जाता है। इससे वजन संतुलित रहता है।
प्रोटीन की कमी को पूरा करने के ल‍िए आप डाइट में क्विनोआ काे भी शाम‍िल कर सकते हैं। ये वजन घटाने का सबसे असरदार तरीका है।
बॉडी बनाने वालों के ल‍िए पीनट बटर एक बेहतरीन ऑप्‍शन है। ये प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत होता है। आप इसे ब्राउन ब्रेड पर लगाकर खा सकते हैं। इसके अलावा इसे ओटमील, स्मूदी और शेक्स के साथ भी ल‍िया जा सकता है।
विटामिन-B12 को बढ़ाने में मदद करेगा किचन में रखा ये मसाला, शरीर को कमजोरी भी हो जाएगी दूर

विटामिन-B12 को बढ़ाने में मदद करेगा किचन में रखा ये मसाला, शरीर को कमजोरी भी हो जाएगी दूर

विटामिन-B12 को बढ़ाने में मदद करेगा किचन में रखा ये मसाला, शरीर को कमजोरी भी हो जाएगी दूर

विटामिन-बी12 शरीर के विकास और स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। यह रेड ब्लड सेल्स के उत्पादन और नर्वस सिस्टम के कार्य में मदद करता है। चिकन और अंडे इसके अच्छे स्रोत हैं लेकिन जीरा (cumin for Vitamin B12) जैसे मसाले भी इसे बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। जीरा शरीर को विटामिन-बी12 सोखने में मदद करता है।


किचन में मौजूद इस मसाले से दूर करें विटामिन बी12 की कमी! (Picture Credit- Freepik)

HIGHLIGHTSविटामिन- बी12 हमारे शरीर के सही विकास के बहुत जरूरी है।
हालांकि, कई वजहों से शरीर में इसकी कमी होने लगती है।
ऐसे में किचन में रखा एक मसाला इसे बढ़ाने में मदद कर सकता है।


 विटामिन-बी12 हमारे शरीर के सही विकास और स्वस्थ रहने के लिए बेहद जरूरी माना जाता है। यह रेड ब्लड सेल्स के प्रोडक्शन, नर्वस सिस्टम के सही तरीके से काम करने और डीएनए सिंथसिस में अहम भूमिका निभाता है। इतना ही नहीं विटामिन-बी12 (how to increase Vitamin B12) खाने को एनर्जी में बदलने में भी मदद करता है।


इसलिए शरीर में इसकी कमी होने पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में जरूरी है कि आप समय रहते इसकी कमी को पहचाने, ताकि इसे दूर करने के लिए सही कदम उठाए जा सके। आमतौर पर चिकन-अंडे को इस विटामिन का बेहतरीन सोर्स माना जाता है, लेकिन आपके किचन में मौजूद कुछ ऐसे मसाले भी हैं, जो इसकी कमी को पूरी करने में मदद करते हैं। आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको बताते हैं ऐसे ही एक मसाले के बारे में-


विटामिन -बी12 की कमी के लक्षणथकान
हड्डियों में दर्द
जोड़ों में विकृति
डिप्रेशन या स्ट्रेस
झुकी हुई या मुड़ी हुई हड्डियां
मांसपेशियों में कमजोरी, दर्द या ऐंठन
इस मसाले से दूर करें कमी

अगर आप वेजिटेरियन या वीगन है, तो आपके अंदर विटामिन-बी12 की कमी होने की संभावना ज्यादा है। दरअसल, नॉन-वेजिटेरियन फूड्स को इस विटामिन का बेहतरीन सोर्स माना जाता है, इसलिए वेजिटेरियन में इसकी कमी होने का खतरा ज्यादा होता है। लेकिन अब चिंता की कोई बात नहीं है। आप अपने किचन में मौजूद एक मसाले की मदद से भी इसकी कमी को दूर कर सकते हैं।


जीरा होगा मददगार

विटामिन-बी12 की कमी को दूर करने के लिए आप जीरे का इस्तेमाल कर सकते हैं। दरअसल, जीरा शरीर की विटामिन-बी12 सोखने में मदद करता है। हालांकि, यह खुद इस विटामिन का सोर्स नहीं है। यह बस शरीर की इसे अब्जॉर्ब करने में मदद करता है। इसकी कमी को पूरा करने के लिए अपनी डाइट में फोर्टिफाइड फूड्स शामिल कर सकते हैं और जीरा इसमें से विटामिन-बी12 सोखने में मदद करेगा।


कैसे करें जीरा को डाइट में शामिल

आप जीरे (jeera health benefits) को कई तरह से डाइट का हिस्सा बना सकते हैं। इसका इस्तेमाल तड़के में करने में अलावा आप जीरे के पाउडर को हल्दी, दही, या सूप में डालकर खा सकते हैं। साथ ही आप सुबह खाली पेट जीरे का पानी भी पी सकते हैं। इससे अन्य कई फायदे भी मिलते हैं, जिसमें पाचन बेहतर करना, वेट लॉस करना और शरीर को डिटॉक्स (cumin nutrition benefits) करना शामिल हैं।
कच्चा, पाउडर या फ‍िर सूखा आंवला: सेहत के लिए क्या है सबसे बेहतर? यहां दूर करें कन्‍फयूजन

कच्चा, पाउडर या फ‍िर सूखा आंवला: सेहत के लिए क्या है सबसे बेहतर? यहां दूर करें कन्‍फयूजन

कच्चा, पाउडर या फ‍िर सूखा आंवला: सेहत के लिए क्या है सबसे बेहतर? यहां दूर करें कन्‍फयूजन

आंवला सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है क्योंकि इसमें विटामिन C और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में होते हैं। कच्चा आंवला आंवला पाउडर और सूखा आंवला तीनों के अपने-अपने फायदे हैं। सूखा आंवला फाइबर से भरपूर होता है और पाचन को बेहतर बनाता है लेकिन इसमें चीनी नहीं मिलानी चाहिए।

क‍िस तरह से Amla को डाइट में करें शाम‍िल? (Image Credit- Freepik)

 सेहतमंद रहने के ल‍िए खानपान का सही होना जरूरी है। इसके ल‍िए लोगों को एलोवेरा जूस या आंवला जूस पीते हैं। आज हम आंवला पर बात करेंगे। आंवाला हमारी सेहत के ल‍िए बेहद फायदेमंद होता है। इसमें विटामिन-C और एंटीऑक्सीडेंट्स की अच्‍छी मात्रा पाई जाती है। इसे गर्मियों में आपको जरूर अपनी डाइट में शाम‍िल करना चाह‍िए।


ये आपको अंदर से ठंडा और तरोताजा रखता है। हालांक‍ि, अक्सर लोग इस बात को लेकर कन्फ्यूज रहते हैं क‍ि कच्चा आंवला, पाउडर या फ‍िर ड्राई आंवला, इन तीनों में क‍िसे खाना सेहत के ल‍िए फायदेमंद होगा। अगर आप भी इस बात को लेकर दुव‍िधा में ह‍ैं तो आपको ये लेख जरूर पढ़ना चाह‍िए। हम आपको इस लेख में इन तीनों से सेहत को म‍िलने वाले फायदों के बारे में बताने जा रहे हैं। साथ ही ये भी बताएंगे क‍ि इन तीनों में से सबसे ज्यादा बेहतर क्‍या है। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से -


कच्चा आंवला खाने के फायदेइसमें विटामिन C की मात्रा सबसे ज्‍यादा होती है। ये इम्युनिटी को मजबूत करता है और त्वचा को निखारता है।
फाइबर से भरपूर होने के कारण ये डाइजेशन को बेहतर बनाता है। साथ ही कब्ज से भी राहत दिलाता है।
एंटीऑक्सीडेंट्स की भरपूर मौजूदगी बालों को झड़ने से रोकती है। इससे आपके बाल भी मजबूत होते हैं।
ये हमारे दिल की सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है। दरअसल, ये कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में मदद करता है।
क्‍या हैं इसकी कम‍ियां

इसके फायदे तो बहुत हैं लेक‍िन हम आपको बता दें क‍ि कच्चा आंवला खाने में बहुत खट्टा होता है, जिससे कुछ लोग इसे खाना पसंद नहीं करते हैं। साथ ही इसे लंबे समय तक स्टोर भी नहीं किया जा सकता है।


आंवला पाउडर के फायदेये आसानी से पानी, शहद या स्मूदी में मिलाकर लिया जा सकता है।
ये मेटाबॉलिज्‍म को भी बढ़ाने का काम करता है। जि‍ससे वजन कम करना आसान हाे जाता है।
ये आपकी स्किन और बालों की खूबसूरती बढ़ाने के ल‍िए भी कारगर है।
आंवला पाउडर का सेवन करने से लिवर डिटॉक्स हाेता है।
क्‍या हैं इसकी कमियां

आपको बता दें क‍ि इसे सुखाने और पीसने के बाद कुछ मात्रा में विटामिन C नष्ट हो जाते हैं। इसलिए ये कच्चे आंवले की तुलना में थोड़ा कम असरदार होता है।

सूखा आंवला खाने के फायदेइसमें मौजूद फाइबर डाइजेशन को बेहतर बनाता है।
साथ ही ये शरीर में आयरन को बेहतर तरीके से सोखता है।
आप इसे स्नैक की तरह खा सकते हैं।
इसकी कमियां भी जानें

अगर इसमें चीनी मिलाई गई हो, तो ये फायदे से ज्‍यादा आपको नुकसान कर सकता है। साथ ही विटामिन C भी कम हो जाते हैं।

कौन है सबसे बेहतर?

अब आप सोच रहे होंगे क‍ि इन तीनों में से क‍िसे लेना सबसे ज्‍यादा बेहतर होगा। तो हम आपको बता दें क‍ि कच्चा आंवला सबसे अच्‍छा ऑप्‍शन है। लेकिन अगर उसका खट्टापन या जल्दी खराब हो जाने का डर है, तो आंवला पाउडर भी एक बढ़िया विकल्प हो सकता है। ड्राई आंवला तब बेहतर है जब उसमें चीनी न म‍िली हो।
स‍िर्फ महिलाओं में नजर आते हैं Fatty Liver के ये 5 लक्षण, चुपचाप बढ़ सकता है खतरा; न करें नजरअंदाज

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लिवर हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है और फैटी लिवर एक गंभीर समस्या है जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित कर सकती है। महिलाओं में इसके कुछ विशेष लक्षण दिखाई देते हैं जैसे कि लगातार थकान पेट में भारीपन। अगर आप इनमें से कोई भी लक्षण अनुभव करती हैं तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।


महिलाओं में फैटी लिवर के कई संकेत देखने को मिल सकते हैं (image credit- freepik)

 लिवर हमारे शरीर का जरूरी ह‍िस्‍सा होता है। जब ये ठीक से काम नहीं कर पाता है तो फैटी लिवर की समस्‍या बढ़ने का खतरा रहता है। ये स्‍थ‍ित‍ि तब पैदा होती है जब आपके लिवर में फैट जमा होने लगता है। अगर समय से इलाज न म‍िले तो ये स्‍थ‍ित‍ि गंभीर हो सकती है। कई बार तो लिवर फेलियर भी हो जाता है।


अगर हमारे शरीर में कोई बीमारी हो जाती है तो उसके लक्षण पहले से नजर आने लगते हैं। आमतौर पर ये समस्‍या पुरुषों में ज्‍यादा देखने को म‍िलती है। लेक‍िन ऐसा ब‍िल्‍कुल भी नहीं है क‍ि मह‍िलाएं इसकी चपेट में नहीं आती हैं। फैटी ल‍िवर के कुछ लक्षण ऐसे हैं जो स‍िर्फ मह‍िलाओं में ही नजर आते हैं। आज का हमारा लेख भी इसी व‍िषय पर है। हम आपको फैटी ल‍िवर के उन लक्षणों के बारे में बताने जा रहे हैं जो स‍िर्फ मह‍िलाओं में नजर आती हैं। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से-


हमेशा बनी रहती है थकान

अगर मह‍िलाएं हमेशा थकी हुई महसूस करती हैं, वो भी तब जब उन्‍होंने अच्‍छी नींद भी ली हो और आराम क‍िया हो तो ये फैटी लिवर का संकेत हो सकता है। इससे मह‍िलाओं के शरीर में एनर्जी की कमी हो जाती है।

पेट में भारीपन और सूजन

महिलाओं में अक्सर हार्मोनल बदलाव या डाइट के कारण सूजन हो जाती है, लेकिन अगर ये सूजन पेट के दाईं ओर यानी क‍ि राइट साइड ऊपर बनी रहे, तो ये भी लिवर से जुड़ी द‍िक्‍कत का संकेत है। दरअसल, जब लिवर में फैट जमा होती है, तो वो फूलने लगता है और आसपास के अंग पर दबाव पड़ता है, जिससे भारीपन या हल्का दर्द महसूस हो सकता है।

वजन कम न होना

लाख काेश‍िशों के बावजूद अगर आपका वजन कम नहीं हो रहा है तो ये भी फैटी ल‍िवर का संकेत ह‍ै। लिवर जब फैट से भरा होता है, तो वह शरीर के फैट को सही तरीके से मेटाबोलाइज नहीं कर पाता। इससे ल‍िवर से जुड़ी समस्‍याएं बढ़ जाती हैं।


जी मचलाना

ये लक्षण सुनने में हल्‍का लग रहा है लेक‍िन फैटी ल‍िवर के संकेतों में से एक है। अगर आप अक्सर खाना खाने के बाद मतली या उलझन महसूस करती हैं तो आपको सावधान हो जाना चाह‍िए।
गर्दन या अंडरआर्म्स का काला होना

अगर आपकी गर्दन या अंडर आर्म्‍स काली हो गई है, तो ये इंसुलिन रेजिस्टेंस का संकेत हो सकता है। ये भी फैटी लिवर का एक बड़ा कारण है। ये खासकर उन महिलाओं में ज्‍यादा देखने को म‍िलता है जिन्हें PCOS या डायबिटीज क‍ी समस्‍या हो।
अचानक नहीं हैं ये हार्ट अटैक! रोज की आदतें ही बनाती हैं दिल को बीमार, डॉक्टर ने बताए बचने के तरीके

अचानक नहीं हैं ये हार्ट अटैक! रोज की आदतें ही बनाती हैं दिल को बीमार, डॉक्टर ने बताए बचने के तरीके

अचानक नहीं हैं ये हार्ट अटैक! रोज की आदतें ही बनाती हैं दिल को बीमार, डॉक्टर ने बताए बचने के तरीके

30-35 वर्ष उम्र का स्वस्थ दिखने वाला कोई व्यक्ति चलते- फिरते अचानक बेहोश हो जाए और इमरजेंसी रूम से हार्ट अटैक (Heart Attack) से निधन की सूचना आए तो हैरानी स्वाभाविक है। लेकिन अब ऐसी खबरें लगातार आ रही है। युवाओं को कैसे चपेट में ले रहा है साइलेंट हार्ट अटैक और क्यों नहीं दिखते हैं इसके लक्षण आइए जानते हैं विशेषज्ञों से।

क्यों बढ़ रहे हैं हार्ट अटैक के मामले? (Picture Courtesy: Freepik)


 हार्ट अटैक (Heart Attack) मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति होती है। इसमें रक्तसंचार बाधित होने के कारण हृदय की मांसपेशियां नष्ट होने लगती हैं अगर समय रहते इसका उपचार नहीं हुआ, तो यह जानलेवा साबित होता है।


डॉ. भुवन चंद्र तिवारी (विभागाध्यक्ष, कार्डियोलॉजी, डीआरआरएमएल आइएमएस, लखनऊ) बताते हैं कि आमतौर पर इस तरह की समस्या 50 वर्ष की उम्र के बाद होती है, लेकिन अब 20-30 वर्ष के लोगों की इसके कारण मौत हो रही है। इसका सामान्य सा कारण है- धमनियों में जमा होता कोलेस्ट्राल।


यह पहले भी होता था और अब भी हो रहा है, पर एक अंतर है कि कोलेस्ट्रॉल की समस्या पहले अनियंत्रित नहीं थी, लेकिन अब हमारी खराब जीवनशैली और खानपान की बेलगाम आदत ने इसे गंभीर बना दिया है। जंक फूड का चलन, आरामदेह मगर तनावभरी दिनचर्या, निद्रा की कमी, धूमपान जैसे कारण अब बच्चों की भी धमनियों में कोलेस्ट्रॉल एकत्र कर रहे हैं।


अपने नंबरों को पहचानें दिल रहेगा दुरुस्त

जैसे आप हर वक्त बैंक में अपने जमा रकम के नंबर को जानने को उत्सुक रहते हैं, उसी तरह अपनी सेहत के नंबरों को भी जानना आवश्यक है। जैसे-दिनभर में कितने कदम पैदल चले, यह भी जानें प्रतिदिन 30 मिनट पैदल चलने का अभ्यास करना चाहिए। प्रतिदिन प्रयास करे कि 10 हजार कदम जरूर चले ।
सोने के घंटे पता होने चाहिए। प्रयास करे कि प्रतिदिन 7-8 घंटे अच्छी नींद ले।
कमर का आकार कितना है, कही वह बढ़ तो नहीं रहा है। ध्यान रखे पुरुषों की 90 सेटीमीटर से कम और महिलाओं में 80 सेमी. से कम कमर होनी चाहिए।
ब्लडप्रेशर कभी जांचा ही नहीं है, परिवार में किसी को है या नहीं, यह तो पता होना ही चाहिए | रक्तचाप को 120-80 के बीच रखें।
खराब कोलेस्ट्रॉल एलडीएल का स्तर जरूर जाने। साथ ही एनबीएसी का स्तर क्या है, यह सब पता होना चाहिए।

ये नंबर आपको सेहतमंद और जागरूक रखने के लिए आवश्यक हैं।


धमनियों से शुरू होती है हार्ट की समस्या

जब ब्लडप्रेशर बढ़ने या तनाव की वजह से हृदय की धमनियों में जमा कोलेस्ट्रॉल में हल्का सा ब्रेक या कट लग जाए, तो शरीर को इंजरी महसूस होती है। चूंकि, धमनियां दो से तीन मिमी. बारीक होती है, ऐसे में अवरोध होना या रक्त का थक्का बनना रक्तसंचार में बाधक हो जाता है। जैसे हाथ में कट लगने के बाद कुछ देर में वहां पपड़ी बन जाती है और रक्तस्राव रुक जाता है, ठीक उसी तरह हार्ट के अंदर ब्लीडिंग रोकने के लिए प्लेटलेट्स इकट्ठा होते हैं और क्लाटिंग हो जाती है।


इससे हृदय की मांसपेशियों को रक्त नहीं पहुंच पाता। इससे सीने में दर्द शुरू हो जाता है और आगे चलकर यही हार्ट अटैक में बदल जाता है। जब 90 प्रतिशत से अधिक रुकावट हो, तो सोने में भारीपन, दर्द महसूस होता है और जब ब्लाकेज 100 प्रतिशत हो जाए तो हृदयाघात हो जाता है। चूंकि यह समस्या अचानक आती है, इसलिए तुरंत उपचार आवश्यक है। हार्टअटैक में 50 प्रतिशत लोगों की एक घंटे में ही मौत हो जाती है, वे अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते हैं।



कोविड और खराब जीवनशैली ने बटाया जोखिम

खराब जीवनशैली के अलावा ड्रग्स का ओवरडोज, हार्मोनल थेरेपी जैसे कारण भी हृदय रोग के लिए जिम्मेदार हैं कोविड संक्रमण के बाद कम उम्र के लोगों में हार्टअटैक देखा जा रहा है। हालांकि, अनेक शोध में कोचिड वैक्सीन को इसके लिए जिम्मेदार नहीं माना गया है।


अनेक अध्ययन बताते हैं कि कोविड संक्रमण के दौरान अधिकांश मौतें फेफड़ों और हृदय में रक्त का थक्का बनने के कारण हुई थीं। यही कारण हैं कि संक्रमण होने पर दो से चार हफ्तों तक खून पतला करने वाली दवाएं दी जाती रहीं। उसके बाद सुधार तो हुआ, पर शिथिलता भरी जीवनशैली और खानपान की खराब आदत बनी रही, जो अब भारी पड़ रही है।



दो-तीन वर्षों से बचों बढ़ गया है हार्टअटैक

बीते दो-तीन वर्षों से हार्टअटैक बढ़ने का मुख्य कारण है कि हमारे देश में बीते 25-30 वर्षों में जंक फूड काफी लोकप्रिय हुआ है। जिन बच्चों ने उस दौर में जंक फूड खाना शुरू किया और शारीरिक रूप से निष्क्रिय होते गए, उन लोगों में यह परेशानी देखने में आ रही है। ऐसा नहीं है कि आज बर्गर खाया और हार्टअटैक आ गया। पहले यह बच्चों के मोटापे का कारण बना, फिर बीमारियों ने घेरा और फिर वही मौत का कारण बना।


मान लीजिए आज कोई 35-40 वर्ष का व्यक्ति बर्गर-पिज्जा खा रहा है और एक 5-6 साल का बच्चा भी वही खा रहा है तो दोनों का पाचन तंत्र बिल्कुल अलग-अलग होता है बच्चे का पाचन तंत्र विकास के चरण में होता है। मान लें बच्चे ने फ्रेंचाइ खाया और इससे उसके शरीर में गया ट्रांस फैट कम उम्र में ही धमनियों में जमना शुरू हो गया। 35 वर्ष के व्यक्ति का पाचन तंत्र विकसित होने के कारण नुकसान अपेक्षाकृत कम होगा। बच्चे को 5-6 वर्ष की उम्र में लगी जंक फूड की आदत उसे जवान होने पर बीमार ही बनाएगी, इसमें कोई शक नहीं है।

बच्चों की बदल गई दिनचर्या

बच्चे पहले पैदल या साइकिल से स्कूल जाया करते थे। स्कूलों में उनके लिए खेल का मैदान होता था । लेकिन, आज हम बच्चों को चाहकर भी पैदल स्कूल नहीं भेज सकते। स्कूलों में उनके खेलने के मैदान की व्यवस्था ही सत्म हो गई है। माता-पिता खुद भी व्यस्त जीवनशैली के अधीन हैं, वे बच्चों को बाहर ले नहीं जा सकते। ऐसे अनेक कारण हैं, जो नई पीढ़ी की सेहत को जोखिम में डाल रहे हैं।

जंक फूड पिछले 20-25 वर्षों से हमारे खानपान का हिस्सा बना हुआ है। चूंकि यह 25 साल पहले शुरू हुआ था, इसलिए 25-30 साल के लोगों में हार्टअटैक नजर आ रहा है। अगर यही आदत जारी रही तो आने वाले समय में 10 से 15 वर्ष के बच्चों में हार्ट अटैक की समस्या देखने को मिलेगी।


हार्ट की कराते रहें जांच कम रहेगा जोखिम

डा. विवेक कुमार (वाइस चेयरमैन कार्डियक राज मेक्स अस्पताल, नई दिल्ली) बताते हैं कि हृदय की सेहत जानने के लिए हमे दो-तीन बातो का ध्यान 'रखना होगा। पहला, क्या पहले से कोई रिस्क फैक्टर है? जैसे परिवार में किसी को क्या हार्ट की बीमारी हो चुकी है ?

दूसरा, अगर ब्लडप्रेशर, डायबिटीज जैसी समस्या है, तो वह नियंत्रण में है या नहीं। हमें ध्यान रखना होगा कि जिनकी दिनचर्या ही हाई रिस्क पर है, उन्हें हार्ट की बीमारी होने की प्रबल आशंका रहती है। आमतौर पर 40 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों और 50 की उम्र के बाद ही महिलाओं में हार्ट की समस्या होने का जोखिम रहता है।

शुरुआती जांच बहुत महत्त्वपूर्ण

जिन लोगों में दो या इससे अधिक रिस्क फैक्टर होते हैं, जैसे डायबिटीज और बडप्रेशर के साथ- साथ धूम्रपान जैसी आदतें भी है, उन लोगों के हृदय की जांच बहुत आवश्यक है खासकर, लिपिड प्रोफाइल, इको और ईसीजी करके सही स्थिति का आकलन अवश्य करना चाहिए। आवश्यकता होने पर एजियोग्राफी या सीटी एजियोग्राफी की जा सकती है।


चूंकि, सबका सीटी करना संभव नहीं है तो शुरुआती जांच के बाद ही आगे की स्थिति जान सकते है। अगर माता-पिता दोनों को हार्ट की समस्या हो चुकी है तो बच्चे में भी आशंका रहती है। इसी तरह अनियंत्रित डायबिटीज, कोलेस्ट्राल, ब्लडप्रेशर हार्ट को जोखिम में डाल सकता है। आजकल भारतीयों में देखा गया है कि अगर लाइपोप्रोटीन बढ़ा हुआ है तो हार्ट से जुड़ी समस्या हो सकती है।

लक्षण दिखाने पर बरसें सतर्कता

अगर धमनियों में ब्लाकेज आती है तो पैदल चलने, व्यायाम करने पर सीने में दर्द, भारीपन और दोनों हाथों में दर्द बढ़ने जैसी समस्याएं | होती है और बैठने पर राहत मिल जाती है। इसका दूसरा लक्षण होता है पैदल चलने पर सांस फूलना डायबिटीज के मरीजों को सीने में दर्द नहीं होता, उन्हें सांस फूलने की समस्या हो सकती है। अगर नसों मे ब्लाकेज है या कोई कलाट फंस गया है, तो यह जानलेवा भी हो सकता है।


एक्यूट हार्ट अटैक में एक तिहाई लोग अस्पताल भी नहीं पहुंच पाते। इसका विडो पीरियड एक से तीन घंटे का ही होता है। इससे अधिक होने पर हार्ट तेजी से डैमेज होता है और 24 घंटे के बाद काम करना बंद कर देता है। ऐसे में पंजियोप्लास्टी और बाइपास का भी लाभ नहीं मिलता।


इसलिए शुरुआती लक्षण पर गौर करना जरूरी है, जैसे कई लोगों में हाथों और पैरो मे दर्द या जलन की तरह महसूस होता है। कुछ लोगों को जबड़ों मे कुछ भारीपन लगता है। यह हेटिस्ट के पास चले जाते हैं, लेकिन ये हार्ट की समस्या के लक्षण होते हैं। हालांकि, ये लक्षण 10 प्रतिशत से कम लोगों में देखने में आता है।

सेहत को लेकर सावधानी

मान लीजिए कोई व्यक्ति पहले पांच कि.मी. आसानी से चलता था, लेकिन उसे सांस फूलने और कान होने लगे, तो यह खराब होती सेहत के संकेत हो सकते हैं। लोगो को लगता है कि उम्र बढ़ने से ऐसा हो रहा है। लेकिन, इसके पीछे हार्ट की समस्या भी हो सकती है। अगर शुरुआती जांच के बाद ही सही उपचार शुरू जाए, तो वह सामान्य व्यक्ति की तरह ही जीवन जी सकता है।


अगर हार्टअटैक के बाद हृदय कमजोर हो गया है, तो आगे चलकर परेशानी बढ़ सकती है। बचाव उपचार से बेहतर है, इसी फार्मूले को ध्यान में रखते हुए स्वस्थ जीवनशैली, सही और उपयुक्त आहार के नियम का पालन करना चाहिए।


प्रतिदिन 10-15 हजार कदम चलना, रनिंग, स्वीमिंग या साइकिलिंग कुछ भी कर सकते हैं। सफेद चीनी, आलू, चावल, बटर का नियंत्रित सेवन करना चाहिए। फाइबर युक्त आहार, सब्जियां जितना खाएंगे, हृदय की बीमारी होने की आशंका उतनी ही कम रहेगी।

क्या अलग होते हैं महिलाओं और पुरुषों में हार्टअटैक के लक्षण!

हार्टअटैक होने पर पुरुषों में सीने में दर्द, भारीपन जैसे लक्षण होते हैं। लेकिन, महिलाओं, बुजुर्गों और डायबिटीज वालों को जी मिचलाने, उल्टी महसूस होने, एसिडिटी, हार्टबर्न, उलझन बेचैनी जैसी समस्याएं हो सकती है। कई बार लगता है कि मिर्च-मसाला या गोलगप्पे खा लेने के कारण ऐसा होता है। दोनों के हृदयरोग और उपचार में भी बड़ा अंतर है।


महिलाएं 45 - 50 वर्ष की उम्र तक हार्मोनल बदलावों के कारण सुरक्षित रहती है। लेकिन, अब वह अंतर नही दिख रहा है। अब 25-30 वर्ष की महिलाओं में एजियोग्राफी में गंभीर बीमारियां दिख रही है। दूसरा, महिलाओं मे हार्टअटैक थोड़ा कम तो होता है, पर मौते अधिक होती हैं। इसका कारण है कि उन्हें सही समय पर उपचार नहीं मिल पाता।


पुरुष अक्सर आफिस या ऐसी जगहों पर होते हैं, जहा अस्पताल पहुंचाना आसान होता है। लेकिन, महिलाएं घरो मे या गांवों में होती हैं और पति के बाहर होने या किसी की सहायता नहीं मिल पाने के कारण उन्हें सही समय पर उपचार नहीं मिल पाता। कई बार वे खुद भी छिपा लेती हैं। थोड़ा राहत मिल जाने पर अस्पताल जाने से बचती हैं। इससे हार्ट की बीमारी गंभीर हो सकती है। जब भी लक्षण उभरे तो तुरंत इसकी जानकारी स्वजनों को देनी चाहिए। अब छोटे शहरों और कस्बों में भी सामान्य जांच और उपचार की व्यवस्था उपलब्ध है। केवल खून पतला करने की दवाई देने से भी जान बच सकती है।

किस तरह की जांच जरूरी

स्ट्रेस, इको, ईसीजी, ट्रेडमिल टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल, लिपोप्रोटीनए पंजियोग्राफी, सीटी कैल्शियम स्कोरिंग की जाती है। इससे पता चलता है कि हार्ट की नसों में ब्लाकेज होने की आशंका है या नहीं।
जीवनशैली का तय हो नियमजंक फूड नहीं खाना है।
धूम्रपान, तंबाकू से दूर रहना है।
स्वजन और मित्रों के साथ समय बिताएं।
आरामतलब होने से बचना है।
प्रतिदिन 30 मिनट व्यायाम जरूर करना है। बस इतना ही करें। दिल की सेहत के लिए इतना ही पर्याप्त है।
खाना खाने से पहले या बाद में? क्या है फल खाने का सही समय, फिटनेस एक्सपर्ट से जानें सही जवाब

खाना खाने से पहले या बाद में? क्या है फल खाने का सही समय, फिटनेस एक्सपर्ट से जानें सही जवाब

खाना खाने से पहले या बाद में? क्या है फल खाने का सही समय, फिटनेस एक्सपर्ट से जानें सही जवाब

क्या आपके मन में भी सवाल आता है कि फल किस समय खाना चाहिए? सुबह या शाम को? खाने से पहले या बाद में? किस समय फल खाना सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है? अगर हां तो आपके इन सवालों का जवाब फिटनेस एक्सपर्ट ने इस आर्टिकल में दिए हैं। आइए जानें।


किस समय खाने चाहिए फल? (Picture Courtesy: Freepik)

एक कहावत है- खाली पेट जल भरा पेट फल...मतलब खाली पेट पानी पिएं और भरे पेट फल खाएं। लेकिन क्या चिकित्सा विज्ञान इसे सही मानता है ? फल खाने का सही समय क्या है (Right Time to Eat Fruits), रात, सुबह या दिन ? खाने से पहले या खाने के बाद?


कुछ लोग रात को फल नहीं खाते हैं। कई लोग दोपहर के भोजन के बाद फल खाना पसंद करते हैं। क्या भोजन के बीच में फल खाना चाहिए या फल अकेले खाना चाहिए। इस तरह के सवालों से आप भी घरे रहते होंगे। दरअसल, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि कब फल खाना ज्यादा फायदेमंद होता है।


सात्विक भोजन में सुबह खाएं फल

सात्विक जीवनशैली में फल खाने का सबसे अच्छा समय सुबह का माना गया है। आपके शरीर को रात भर आराम मिलता है तो सुबह उसे फौरन एनर्जी देने की जरूरत होती है। फल आसानी से पचने लायक होते हैं और महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर भी। इसलिए आपको हमेशा अपनी दैनिक गतिविधियों को शुरू करने के लिए ऊर्जा की जरूरत से ठीक पहले फल खाना चाहिए, ताकि पूरे दिन में फल हजम भी हो जाए।

इंटरनेट मीडिया के आधार पर फल खाने का समय निर्धारित ना करें। फलों में इतने न्यूट्रिशन, मिनरल, फाइबर, कैल्शियम और विटामिन होते हैं कि उनके सेवन से आपके शरीर में किसी न किसी कमी की पूर्ति होती है। इसलिए जब समय मिले और पेट हल्का भरा हो तो आप फल खा सकते हैं।


फिटनेस एक्सपर्ट डिनाज वरवतवाला बताती हैं कि फल खाने का कोई निश्चित समय नहीं है। किसी भी समय जब आपका मन हो, तब आप फल खा सकते हैं। जैसे बड़े बुजुर्ग खाने के बाद फल खाया करते थे या कई लोग सुबह नाश्ते के बाद फल खाते थे और स्वस्थ भी रहते थे। अगर हम उनकी जीवनशैली फालो करें तो कभी बीमार नहीं पड़ेंगे। भागती- दौड़ती इस जिंदगी में किसी के पास कुछ भी करने का निर्दिष्ट समय नहीं होता, इसलिए जब समय मिलता है, वे खा लेते हैं। मेरा सुझाव है कि फल खाने से आपको किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी। इसके लिए किसी नियम में बंधने की जरूरत नहीं है। आप अपने हिसाब से इनका सेवन कर सकते हैं।

रात में फल खाने के नियम

कुछ लोगों का मानना है कि अगर रात में फल खाते हैं तो नींद खराब होती है और पाचन प्रभावित होता है। वहीं, कुछ लोग रात को फल खाने को बिल्कुल ठीक बताते हैं । अगर आप रात में फल खाते हैं तो इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि सोने से कम से कम 3 घंटे पहले ही फल खा लें, ताकि वह समय पर हजम हो जाए। रात में आप कम कैलोरी वाले फल खा सकते हैं। जामुन, सेब, नाशपाती का चयन शानदार विकल्प हो सकता है। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि रात को फल खाने शुगर लेवल बढ़ जाता है।
क्‍या होती है Hula Hoop एक्‍सरसाइज, ज‍िसे करने से सिर्फ पेट ही नहीं; कमर का फैट भी होता है कम

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क्‍या होती है Hula Hoop एक्‍सरसाइज, ज‍िसे करने से सिर्फ पेट ही नहीं; कमर का फैट भी होता है कम

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में फिटनेस का ट्रेंड बढ़ रहा है। हुला हूप एक्सरसाइज जो एक गोल छल्ले से की जाती है तेजी से फेमस हो रही है। यह पेट और कमर की चर्बी कम करने में मददगार साब‍ित हो सकती है। इसे घर पर आसानी से किया जा सकता है।

Hula Hoops Exercise करने के फायदे (Image Credit- Freepik)

आज कल की भागदौड़ भरी ज‍िंदगी में लोग कई तरह की बीमार‍ियों का श‍िकार हो रहे हैं। इस कारण लोग फ‍िटनेस को लेकर जागरूक हाे रहे हैं। अब तो फिटनेस का ट्रेंड भी तेजी से बदलने लगा है। लोग जिम में जाकर घंटों पसीना बहाते हैं। भारी-भरकम डंबल उठाकर वर्कआउट करते हैं। लेक‍िन इन द‍िनाें इन बाेर‍िंग वर्कआउट से हटकर एक मजेदार और असरदार एक्सरसाइज तेजी से वायरल हो रही है।

इसका फन एक्सरसाइज का नाम है हुला हूप। हुला हूप एक गोल रिंग यानी क‍ि छल्ले से की जाती है। इसे कमर पर घुमाना होता है। ये द‍िखने में भले ही बच्‍चों के खेलने वाली गेम जैसे द‍िखती है, लेक‍िन इसके फायदे ऐसे हैं क‍ि हर कोई हैरान रह जाएगा। ये एक्‍सरसाइज खासतौर पर पेट और कमर की चर्बी को कम करती है। साथ ही शरीर को लचीला बनाने और मसल्स को टोन करने में भी मदद करती है।

आपको बता दें क‍ि इस एक्‍सरसाइज में आपको इस बात पर पूरा ध्‍यान देना होता है क‍ि छल्‍ला नीचे न ग‍िरने पाए। ये कार्डियो वर्कआउट की तरह काम करता है। आप इसे घर पर आसानी से कर सकते हैं। आज का हमारा लेख भी इसी व‍िषय पर है। हम आपको हुला हूप एक्‍सरसाइज करने के फायदों के बारे में बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं विस्‍तार से-

कोर मसल्‍स को बनाए मजबूत

हुला हूप करने से आपके कोर मसल्‍स मजबूत होते हैं। इसको करने से आपके पेट और पीठ, दोनों के ही मसल्स एक्टिव हो जाते हैं। इससे मसल्स मजबूत बनते ह‍ैं। साथ ही हमारी बॉडी भी बैलेंस होती है। आपको बता दें क‍ि इससे बॉडी पेन से भी राहत म‍िलती है।

फोकस भी बढ़ाए

आपकाे बता दें क‍ि हुला हूप एक्‍सरसाइज करने से आपको फोकस लगाना पड़ता है। ऐसे में इससे फोकस तो बढ़ता ही है, साथ ही आपका दिमाग भी शांत रहता है। अगर आपके मन में नेगेटिव थॉट्स आते हैं ताे आपको ये एक्‍सरसाइज जरूर करनी चाह‍िए।


वजन कम करे

इस एक्‍सरसाइज से आपको वजन कम करने में भी आसानी होती है। हुला हूप एक फुल बॉडी वर्कआउट है, इसे करने से कैलोरी तेजी से बर्न हाेती है। अगर अराप लगातार इसे करते हैं तो आपको 15 द‍िन में ही असर देखने को मिलेगा।


हड्ड‍ियों को बनाए मजबूत

हुला हूप एक्‍सरसाइज करने से आपकी हड्ड‍ियों को मजबूती म‍िलती है। इसके साथ ही कंधे और कमर के मसल्‍स भी मजबूत होते हैं। आप इसे रोजाना कर सकते हैं।
स्‍ट्रेस भी करे कम

ये मेंटल हेल्‍थ के ल‍िए भी बेहतरीन एक्‍सरसाइज मानी जाती है। इस वर्कआउट को करने से डोपामिन हार्मोन रिलीज होता है। इससे मूड अच्‍छा होता है। साथ ही ये स्‍ट्रेस को भी कम करने में मददगार है।
Monsoon में फ‍िट और हेल्‍दी रहने के ल‍िए जरूर खाएं ये 5 फल, कमजोर इम्युनिटी होगी मजबूत

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मानसून में सेहत का ख्याल रखना बहुत जरूरी होता है। इस मौसम में पाचन और मौसमी बीमारियों से बचने के लिए डाइट का खास ख्याल रखना चाह‍िए। अगर आपके शरीर की रोग प्रति‍रोधक क्षमता कमजोर हुई तो आप जल्‍दी ही माैसमी बीमार‍ियों की चपेट में आ सकते हैं। कुछ ऐसे फल हैं ज‍िन्‍हें मानसून में खाने से इम्युनिटी को मजबूत क‍िया जा सकता है।

बरसात के मौसम में जरूर खाएं ये फल (Image Credit- Freepik)



 मानसून की एंट्री हो गई है। इस दौरान माैसम जहां सुहावना हाे जाता है, तो वहीं ये मौसम अपने साथ ढेर सारी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं लेकर आता है। बरसात के मौसम में वायरल इन्‍फेक्‍शन, एलर्जी, डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसी कई मौसमी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। हवा में भी काफी नमी होती है, ये आपके डाइजेशन के ल‍िए ठीक नहीं होती है।


इस मौसम में सेहत का ख्‍याल रखना सबसे ज्‍यादा जरूरी होता है। ऐसे में पाचन और मौसमी बीमारियों से बचने के ल‍िए आपको अपनी डाइट का खास ख्‍याल रखना चाह‍िए। कहते ह‍ैं क‍ि बार‍िश के मौसम में इम्‍युन‍िटी का मजबूत होना सबसे ज्‍यादा जरूरी होता है। शरीर की रोग प्रत‍िरोधक क्षमता को मजबूत करने के ल‍िए जरूरी है क‍ि आप कुछ हेल्‍दी फ्रूट्स का सेवन करें। इन फलों का सेवन करने से डाइजेशन ताे अच्‍छा रहता ही है, साथ ही इम्‍युन‍िटी भी मजबूत होती है।

आज का हमारा लेख इसी व‍िषय पर है। हम आपकाे कुछ ऐसे फलों के बारे में बताने जा रहे हैं जो मानसून में आपको जरूर खाना चाह‍िए। इससे आपके शरीर को भी सभी जरूरी पोषण म‍िल सकेगा। आइए उन फलों के बारे में जानते हैं व‍िस्‍तार से -


जामुन

कहते हैं क‍ि मानसून में जामुन को अपनी डाइट में जरूर शाम‍िल करना चाह‍िए। ये खाने में स्‍वाद‍िष्‍ट तो होता ही है, साथ ही ये हमारी सेहत को भी जबरदस्‍त फायदे पहुंचाता है। इसमें व‍िटाम‍िन सी के साथ ही आयरन और एंटीऑक्सीडेंट भी भरपूर मात्रा में पाई जाती है। ये आपके डाइजेशन के लिए अच्‍छा होता है। साथ ही ये आपके शरीर की रोग प्रत‍िरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है।



अनार

अनार सेहत के ल‍िए क‍िसी वरदान से कम नहीं है। इसे खाने से आपके शरीर में खून की कमी दूर हाेती है। इसमें विटामिन-बी और फोलेट की अच्‍छी मात्रा पाई जाती है। मानसून में अगर आप इस फल को अपनी डाइट में शाम‍िल करते हैं तो इससे रेड ब्‍लड सेल्‍स की संख्‍या बढ़ती है। अगर आप हाई बीपी के मरीज हैं तो आपको अनार का सेवन जरूर करना चाह‍िए।


सेब

सेब में विटामिन सी के साथ-साथ फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स भी भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। इसे खाने से शरीर की रोग प्रत‍िरोधक क्षमता मजबूत होती है। साथ ही एनर्जी भी म‍िलती है। बार‍िश के मौसम में सेब खाने से वायरल इन्‍फेक्शन का खतरा कम होता है।



पपीता

पपीता भी आपकी सेहत के ल‍िए बेहद गुणकारी है। इसे मानसून में जरूर खाना चाहिए। दरअसल, पपीता में मिलने वाला पपैन एंजाइम डाइजेशन को बेहतर बनाने का काम करता है। साथ ही इसे खाने से इम्‍युन‍िटी भी स्‍ट्रॉन्‍ग होती है। आपको बता दें क‍ि इसमें व‍िटाम‍िन ए और सी अच्‍छी मात्रा में पाया जाता है।

नाशपाती

नाशपाती में विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाई जाती है। ये इम्युनिटी को स्‍ट्रॉन्‍ग बनाने का काम करती है। इसे मानसून में जरूर खाना चाह‍िए। ये आपके डाइजेशन के लि‍ए भी जरूरी है।
Vitamin-D की कमी दूर करने में सप्लीमेंट्स भी नहीं आएंगे काम! अगर आप भी दबाकर खा रहे हैं 5 फूड्स

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विटामिन डी ( Vitamin D deficiency causes) हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है और इम्युनिटी को बढ़ाता है। इसलिए शरीर में इसकी कमी को पूरा करने के लिए कई लोग सप्लीमेंट्स भी लेते हैं। हालांकि कुछ फूड्स ऐसे हैं जो इसकी कमी को पूरा करने में रोकते हैं। आइए जानते हैं उन फूड्स के बारे में।


Vitamin-D की कमी पूरी नहीं होने देंगे 5 फूड्स (Picture Credit- Freepik)

 विटामिन्स और मिनरल्स हमारे शरीर को स्वस्थ और सही विकास में मदद करते हैं। विटामिन-डी इन्हीं जरूरी विटामिन्स में से एक है, जो सेहत को दुरुस्त रखने में मदद करते हैं। यह एक ऐसा विटामिन है, जो शरीर के सभी फंक्शन को सही तरीके से करने के लिए जरूरी होता है।

यह हमारी हड्डियों को मजबूत रखने, इम्युनिटी को बढ़ावा देने और पूरे स्वास्थ्य को बेहतर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक्सपर्ट की मानें, यह मांसपेशियों की ताकत बनाए रखने और कमजोरी को रोकने में भी मदद करता है। इसलिए शरीर में इस विटामिन को होना बहुत ज्यादा जरूरी माना जाता है, क्योंकि इसकी कमी (Vitamin D deficiency causes) होने पर न सिर्फ हड्डियां कमजोर होती हैं, बल्कि इम्युनिटी भी वीक होती है।


इन दिनों शरीर में इसकी कमी होना एक आम समस्या बन चुकी है और इसे दूर करने के लिए लोग कई सारे तरीके अपनाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे फूड्स (foods that reduce Vitamin D absorption) है, जो चाहकर भी आपको इस कमी को दूर करने नहीं देंगे। अगर आप भी उन लोगों में से हैं, जो इन फूड्स को जमकर खाते हैं, तो आज ही इनके नाम जरूर जान लें।

प्रोसेस्ड फूड्स

प्रोसेस्ड फूड्स हर तरीके से सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं। सोडा और पैकेज्ड फूड्स में फॉस्फेट का हाई लेवल होता है, जो कैल्शियम मेटाबॉलिज्म में बाधा पैदा कर सकता है। चूंकि कैल्शियम और विटामिन डी शरीर में एक साथ काम करते हैं, इसलिए यह असंतुलन होने पर विटामिन डी की प्रभावशीलता को कम कर सकता है। डाइट में बहुत ज्यादा फॉस्फेट होने से हड्डियों में कैल्शियम की कमी होने लगती है और अन्य सोर्सेस से पर्याप्त विटामिन डी लेने के बाद भी इसकी कमी पूरी नहीं होती है।



शराब

शराब के हानिकारक प्रभावों के बारे में कई डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट्स लगातार चेतावनी देते रहते हैं। इससे न सिर्फ कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ता है, बल्कि यह विटामिन डी का अवशोषण यानी अब्जॉर्प्शन को भी कई तरह बाधित करता है। दरअसल, विटामिन-डी को सही रूप से इस्तेमाल करने में लिवर अहम भूमिका निभाता है और शराब पीने से लिवर की फंक्शनिंग प्रभावित होती है, जिससे विटामिन डी सहित अन्य पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है।



कैफीन

कैफीन भी शरीर को विटामिन-डी सोखने से रोकता है। आमतौर पर चाय और कॉफी में पाया जाने वाला फैफीन यूं तो सुरक्षित होता है, लेकिन ज्यादा मात्रा में कॉफी या चाय पीने से विटामिन डी के अवशोषण में बाधा आ सकती है। इसलिए अगर आप नियमित रूप से कई कप कॉफी या मजबूत चाय पीते हैं, तो विटामिन डी सप्लीमेंट्स लेते समय थोड़ा गैप रखें, ताकि शरीर में बेहतर तरीके से विटामिन डी अवशोषण में मदद मिले।



हाई ऑक्सालेट फूड्स

हाई ऑक्सालेट फूड्स जैसे पालक और चुकंदर के पत्ते से कैल्शियम की कम हो जाती है। चूंकि विटामिन डी हड्डियों को मजबूत करने के लिए कैल्शियम के साथ मिलकर काम करता है, इसलिए कम कैल्शियम होने से अप्रत्यक्ष रूप से विटामिन डी के लेवल को प्रभावित करता है। इसका मतलब ये नहीं कि आप इन्हें खाना ही छोड़ दें। बस ऐसे फूड्स के साथ इन्हें न खाएं, जो विटामिन डी या कैल्शियम से भरपूर हों।



लो फैट डाइट

विटामिन-डी फैट में घुलनशील विटामिन है, जिसका मतलब है कि आपके शरीर को इसे ठीक से अवशोषित करने के लिए कुछ फैट की जरूरत होती है। इसलिए, बहुत लो फैट वाली डाइट या बिना फैट वाले फूड्स को खाने से शरीर के लिए विटामिन डी को सोखना और इसका इस्तेमाल करना कठिन हो सकता है।
1 जुलाई को ही क्‍यों मनाया जाता National Doctor's Day? जानें इसका महत्व और इस साल की थीम

1 जुलाई को ही क्‍यों मनाया जाता National Doctor's Day? जानें इसका महत्व और इस साल की थीम

1 जुलाई को ही क्‍यों मनाया जाता National Doctor's Day? जानें इसका महत्व और इस साल की थीम

नेशनल डॉक्टर्स डे हर साल 1 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिन डॉक्टरों को सम्मानित करने और उनके काम की सराहना करने के लिए मनाया जाता है। 1 जुलाई को ही प्रसिद्ध फिजीशियन डॉ. बिधान चंद्र राय का जन्म हुआ था और इसी दिन उनका निधन भी हुआ था। उनके योगदान को सम्मान देने के लिए यह दिन मनाया जाता है।

क्‍या है National Doctor's Day मनाने का इत‍िहास? (Image Credit- Freepik)


 जब भी हम बीमार होते हैं तो सबसे पहले द‍िमाग में डॉक्‍टर का नाम ही आता है। डॉक्‍टर को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है। इस बात में कोई शक नहीं है क‍ि भगवान ही हमें ज‍िंदगी देते हैं। लेक‍िन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है क‍ि डॉक्‍टर हमें दोबारा नई ज‍िंदगी देने का काम करते हैं। डॉक्‍टर ही हमें बड़ी से बड़ी बीमार‍ियों से बाहर न‍िकालते हैं।



जीवन को आसान बनाने के ल‍िए शरीर का स्‍वस्‍थ रहना सबसे ज्‍यादा जरूरी होता है। अगर आप बीमार‍ियों से दूर रहेंगे तो जि‍ंदगी के हर एक पल को खुशी-खुशी जी पाएंगे। डॉक्‍टर ही हमें बीमार‍ियों से दूर रखते हैं। आज के समय में दुन‍िया की आधे से ज्‍यादा जनसंख्‍या क‍िसी न क‍िसी बीमारी की ग‍िरफ्त में है। ऐसे में डॉक्‍टर ही हमारे पास एकमात्र सहारा हैं। डॉक्टरों को सम्मानित करने और उनके काम की सराहना करने के ही उद्देश्‍य से हर साल एक जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctor's Day 2025) मनाया जाता है।


लेक‍िन क्‍या आपने कभी सोचा है क‍ि डॉक्‍टर्स डे मनाने के ल‍िए एक जुलाई की तारीख ही क्‍यों चुनी गई। अगर नहीं, तो आपको ये लेख जरूर पढ़ना चाह‍िए। हम आपको बताएंगे क‍ि भारत में एक जुलाई को नेशनल डॉक्‍टर्स डे क्‍यों मनाया जाता है। इसका महत्‍व क्‍या है और इस साल ये द‍िन क‍िस थीम के साथ सेल‍िब्रेट क‍िया जा रहा है। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से -


क्‍यों एक जुलाई को मनाया जाता है डॉक्‍टर्स डे?


आपको बता दें क‍ि पूरी दुनि‍या में डॉक्टर्स डे अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता है। भारत में एक जुलाई को ही नेशनल डॉक्‍टर्स डे सेलिब्रेट किया जाता है। बताया जाता है क‍ि इस द‍िन को सेल‍िब्रेट करने के ल‍िए एक जुलाई की तारीख इसल‍िए चुनी गई क्‍योंक‍ि इसी द‍िन यानी क‍ि 1 जुलाई 1882 में इंडिया के फेमस फिजीशियन डॉ. बिधान चंद्र राय का जन्म हुआ था। उनका निधन भी एक जुलाई को ही 1962 में हुआ था।


क्‍या है इसका मकसद?फिजीशियन डॉ. बिधान चंद्र राय का मेडि‍कल फील्ड में अहम योगदान रहा है। उनके योगदान को सम्मान देने के ल‍िए ही हर साल एक जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे मनाने की शुरुआत हुई। इस द‍िन को मनाने का मकसद डॉक्टरों को सम्‍मान‍ित करना है। साथ ही उनके काम की सराहना करनी है। इस दिन हॉस्‍प‍िटल्‍स में कई तरह के कार्यक्रम आयोज‍ित क‍िए जाते हैं।

इस साल की थीम क्‍या है?
आपको बता दें क‍ि हर साल डॉक्टर्स डे को एक खास थीम के साथ मनाया जाता है। साल 2025 में नेशनल डॉक्टर्स डे की थीम है- “Behind the Mask: Who Heals the Healers?”
मानसून में बढ़ जाता है Eye Infection का खतरा, बचाव के लिए अपनाएं ये 5 जरूरी टिप्स

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मानसून में आंखों में इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। नमी और गंदगी के कारण रेडनेस जलन और खुजली जैसी समस्याएं होती हैं। वायरल कंजंक्टिवाइटिस और एलर्जिक रिएक्शन जैसे इन्फेक्शन फैलते हैं। आंखों को बचाने के आपको कुछ बातों का ध्‍यान रखना होगा। आप कुछ ट‍िप्‍स अपनाकर Eye Care कर सकते हैं।

कैसे करें आंखों की देखभाल (Image Credit- Freepik)

HIGHLIGHTSमानसून का मौसम आते ही गर्मी से राहत मिलती है।
इन दिनों आंखों से जुड़ी समस्याएं भी आम हो जाती हैं।
Eye Infection भी उन्‍हीं समस्‍याओं में से एक है।
लाइफस्‍टाइल डेस्‍क, नई द‍िल्‍ली। मानसून में मौसम भले ही सुहावना हो जाता है, लेकिन इस दौरान कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। आपको कई मौसमी बीमार‍ियां घेर लेती हैं। ऐसे तें हिर जाता है क‍ि आपको सेहत का कुछ ज्‍यादा ही ख्‍याल रखने की जरूरत होती है। वहीं, एक और द‍िक्कत बढ़ जाती है और वो है आंखों में इन्‍फेक्‍शन की समस्‍या। दरअसल, हवा में नमी और आसपास की गंदगी के कारण आंखों में इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।



कई बार बारिश का पानी या गंदे हाथ काे आंखों में लगाने से रेडनेस, जलन, खुजली या पानी आने जैसी समस्‍याएं शुरू हो जाती हैं। वायरल कंजंक्टिवाइटिस, एलर्जिक रिएक्शन और स्टाई जैसे इंफेक्शन इस मौसम में जल्दी फैलते हैं। खासकर तब, जब आसपास साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है। ऐसे में जरूरी है कि हम मानसून के दौरान अपनी आंखों की देखभाल जरूर करें।


अगर आप भी बरसात के मौसम में अपनी आंखों को बचाए रखना चाहते हैं तो ये लेख आपके ल‍िए ही है। आज हम आपको अपने इस लेख में कुछ ऐसे ट‍िप्‍स देने जा रहे हैं जो आपके आंखों की सुरक्षा करेंगे। तो आइए ब‍िना देर क‍िए जानते हैं-

Eye Infection के लक्षण

आंखों का लाल होना
आंखों में दर्द या खुजली होना
आंख से पानी आना
धुंधला द‍िखाई देना\

ऐसे करें आंखों की देखभाल

मानसून में हाथों को साफ रखें। हाथों को सैनिटाइज करें। हो सके ताे कुछ भी छूने पर हैंडवॉश जरूर करें। ऐसा इसलिए क्‍योंक‍ि हवा में नमी के कारण बैक्‍टीर‍िया तेजी से फैलते हैं। इससे इन्फेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है।
कोश‍िश करें क‍ि हाथों को अपनी आंखों में न लगाएं। इससे भी इन्‍फेक्‍शन का खतरा बढ़ जाता है। इसके साथ ही आंखों को मसलने से भी बचना चाहि‍ए। इससे कॉर्निया डैमेज हो सकता है।
बारिश में जब भी बाहर न‍िकलें तो चश्मा जरूर पहनें। इसके अलावा, स्विमिंग पूल में कॉन्टैक्ट लेंस का इस्तेमाल न करें। पूल में पानी से बचाने वाला चश्मा पहनें। इससे आपकी आंखों को संक्रमण से बचाया जा सकता है।
आई मेकअप करते समय ब्रश, आईलाइनर और मस्कारा को डिसइंफेक्टेंट करना न भूलें। कोश‍िश करें क‍ि इन्‍हें क‍िसी से भी शेयर न करें। कई लोगों के इस्‍तेमाल करने से आंखों में इन्‍फेक्‍शन की समस्‍या बढ़ सकती है।
अपना तौलिया किसी से शेयर न करें। पर्सनल चीजों पर बैक्‍टीर‍िया जल्‍दी अटैक करते हैं। ऐसे में आई इन्फेक्शन से बचने के ल‍िए अपनी पर्सनल चीजों को दूसरों से न बांटें।
अचानक से बढ़ गया है Blood Pressure, तो 3 तरीकों से नेचुरली कंट्रोल करें बीपी; तुरंत दिखेगा असर

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अचानक से बढ़ गया है Blood Pressure, तो 3 तरीकों से नेचुरली कंट्रोल करें बीपी; तुरंत दिखेगा असर

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हाई ब्लड प्रेशर एक गंभीर समस्या बन गई है, जो युवाओं को भी प्रभावित कर रही है। इसे तुरंत नियंत्रित करना जरूरी है। यह लेख बिना दवा के बीपी कंट्रोल करने के कुछ आसान और नेचुरल तरीके बताता है। ये तरीके ब्‍लड प्रेशर को सामान्य करने में सहायक हो सकते हैं।



बीपी कंट्रोल करने के तरीके (Image Credit- Freepik)


हाई Blood Pressure की समस्या से कई लोग परेशान हैं।


इसे कंट्रोल करने के ल‍िए कुछ आसान टिप्स फॉलो कर सकते हैं।


High BP से कई बीमार‍ियों का खतरा बढ़ जाता है।


 आजकल की भागदौड़ भरी ज‍िंदगी में लोग अपनी सेहत का सही ढंग से ख्‍याल नहीं रख पा रहे हैं। ऐसे में उन्‍हें कई तरह की द‍िक्‍कतों का सामना करना पड़ रहा है। खराब खानपान और अनहेल्‍दी लाइफस्‍टाइल के कारण ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या भी बढ़ गई है। हाई ब्लड प्रेशर एक गंभीर बीमारी है। कई बार इसके लक्षण पता भी नहीं चलते हैं। अगर इसे समय पर कंट्रोल नहीं किया गया, तो कई गंभीर बीमार‍ियों का खतरा बढ़ सकता है।


आज के समय में ये सिर्फ बड़े उम्र के लोगों को नहीं, बल्कि युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है। इसलिए आपको पता होना चाहिए कि ब्‍लड प्रेशर के हाई होने पर आपको ऐसा क्या करना चाहिए कि इसे तुरंत कंट्रोल क‍िया जा सके। अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं और अचानक आपका बीपी हाई हो गया है तो आप कुछ नेचुरल तरीके अपना सकते हैं।

आज का हमारा लेख भी इसी वि‍षय पर है। हम आपको कुछ ऐसे टि‍प्‍स देने जा रहे हैं ज‍िससे आप बिना किसी दवा और डॉक्‍टर के हाई बीपी को तुरंत कंट्रोल कर सकते हैं। आइए जानते हैं वि‍स्‍तार से-

डीप ब्रीद‍िंग एक्‍सरसाइज करें

डीप ब्रीद‍िंग एक्‍सरसाइज करने से आपका पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम एक्‍ट‍िव हो जाता है। इसे हार्ट रेट धीमी हो जाती है और blood vessels को भी आराम मि‍लता है। कुछ म‍िनट तक इसको करने से बढ़ा हुआ blood pressure जल्दी और नेचुरली तरीके से कंट्रोल हो जाता है।


चेहरे को ठंडे पानी से धोएं

अगर अचानक से आपका बीपी बढ़ जाए तो आपको तुरंत ठंडे पानी से चेहरे को धो लेना चाह‍िए। इसके अलावा कुछ देर के ल‍िए पैरों को ठंडे पानी में भिगोने से ब्‍लड वेसेल्‍स सिकुड़ती हैं। ऐसा करने से दिल की धड़कनाें और ब्‍लड प्रेशर को कम करने में मदद म‍िलती है। ये चिंता और तनाव को भी कम करता है।


नींबू पानी प‍िएं

जब भी आपका ब्‍लड प्रेशर बढ़ जाए तो आपको नींबू पानी पीना चाह‍िए। ध्‍यान रखें क‍ि इसमें आपको चीनी या फ‍िर नमक भूल से भी नहीं म‍िलाना है। दरअसल, सादा नींबू पानी पीने से आपके शरीर में पोटैशियम की कमी पूरी होती है। पोटैशियम से सोडियम को कंट्राेल क‍िया जा सकता है। साथ ही ब्‍लड वेसेल्‍स को भी आराम म‍िलता है। ये ब्‍लड प्रेशर को नॉर्मल करने में सहायक होती है।
ड्रग्स लेना है जानलेवा! इन लक्षणों से पहचानें कहीं Drug Abuse की चपेट में तो नहीं आ गया आपका बच्चा

ड्रग्स लेना है जानलेवा! इन लक्षणों से पहचानें कहीं Drug Abuse की चपेट में तो नहीं आ गया आपका बच्चा

ड्रग्स लेना है जानलेवा! इन लक्षणों से पहचानें कहीं Drug Abuse की चपेट में तो नहीं आ गया आपका बच्चा

ड्रग अब्यूज के मामले आए दिन न्यूज में देखने को मिल जाते हैं। नशे की लत में आए युवा ड्रग्स के पीछे अपनी जिंदगी बर्बाद कर देते ैहैं। कई मामलों में इसके कारण व्यक्ति की जान भी जा सकती है। इसलिए नशा मुक्ति के महत्व को समझाने के लिए हर साल 26 जून को International Day Against Drug Abuse and Illicit Trafficking मनाया जाता है।



 आज के दौर में ड्रग एब्यूज (नशीली दवाओं का दुरुपयोग) युवाओं के लिए एक गंभीर समस्या बन चुका है। टीनेज और युवावस्था में व्यक्ति नई चीजों को आजमाने के लिए उत्सुक रहता है, लेकिन कई बार यह जिज्ञासा या गलत दोस्तों की संगत उसे ड्रग्स की लत की ओर धकेल देती है। इसलिए ड्रग्स लेने की लत के दुष्परिणामों के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए हर साल 26 जून को International Day Against Drug Abuse and Illicit Trafficking मनाया जाता है।

माता-पिता, परिवार के दूसरे सदस्य और शिक्षकों के लिए जरूरी है कि वे युवाओं में ड्रग एब्यूज के शुरुआती संकेतों (Signs of Drug Abuse) को पहचानें, ताकि समय रहते उन्हें ड्रग अब्यूज की लत से बचाया जा सके। ड्रग एब्यूज के संकेत इमोशनल-सोशल और फिजिकल दोनों तरह के हो सकते हैं। आइए जानें ड्रग अब्यूज के संकेत कैसे होते हैं।

भावनात्मक और सामाजिक संकेत (Emotional-Social Signs)मूड में अचानक बदलाव- युवा बिना किसी साफ कारण के चिड़चिड़े, अग्रेसिव, गुस्सैल या उदास हो सकते हैं।
झूठ बोलना और चोरी करना- ड्रग्स की लत पड़ने पर युवा अक्सर पैसों के लिए झूठ बोलते हैं या चोरी करने लगते हैं।
ड्रग्स के नुकसान से इनकार- वे ड्रग्स के हानिकारक प्रभावों को स्वीकार नहीं करते और अपनी आदत को जस्टिफाई करने लगते हैं।
पुराने दोस्तों से दूरी बनाना- ड्रग एब्यूज करने वाले युवा अक्सर उन लोगों से दूर भागते हैं, जो उनके व्यवहार पर सवाल उठा सकते हैं।


सीक्रेसी बढ़ना- वे अपने फोन कॉल्स या मैसेज को लेकर बहुत सीक्रेटिव हो जाते हैं और अपनी लोकेशन के बारे में झूठ बोलते हैं।
नए और संदिग्ध दोस्त- उनके ऐसे दोस्त हो सकते हैं जिनके बारे में वे आपसे बात नहीं करना चाहते या उनसे मिलने से मना कर देते हैं।
मोटिवेशन की कमी- पढ़ाई, खेल या दूसरी एक्टिविटीज में रुचि खोने लगते हैं और स्कूल या कॉलेज में अब्सेंट रहते हैं।

शारीरिक संकेत (Physical Signs)थकान और सुस्ती- ड्रग्स का सेवन करने वाले युवा अक्सर थके हुए या नींद में डूबे नजर आते हैं।
कंपकंपी और आंखें लाल होना- उनके हाथ कांप सकते हैं, आंखें लाल हो सकती हैं या पुतलियां फैली हुई (Dilated Pupils) दिख सकती हैं।
साफ-सफाई न करना- पर्सनल हाइजीन और कपड़ों की ओर ध्यान देना कम कर देते हैं।
बोलने में क्लैरिटी न होना- ड्रग्स के प्रभाव में उनकी बोलचाल धीमी हो जाती है या शब्दों का उच्चारण सही तरीके से नहीं कर पाते हैं।
भूख में बदलाव- कभी बहुत ज्यादा खाने लगते हैं, तो कभी बिल्कुल नहीं खाते, जिससे वजन तेजी से घट सकता है।
बैलेंस की कमी- चलते समय लड़खड़ाना या फिजिकल बैलेंस बनाए रखने में दिक्कत होना।
अनियमित नींद- रात भर जागना और दिन में सोना, या बहुत ज्यादा या बहुत कम नींद लेना।
बार-बार बीमार पड़ना- ड्रग्स की वजह से इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, जिससे सर्दी-खांसी और दूसरी बीमारियां बार-बार होती हैं।