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च्यवनप्राश है हर भारतीय की जिंदगी का हिस्सा, रोगों को कम करे और एनर्जी को बढ़ाए

च्यवनप्राश है हर भारतीय की जिंदगी का हिस्सा, रोगों को कम करे और एनर्जी को बढ़ाए

च्यवनप्राश है हर भारतीय की जिंदगी का हिस्सा, रोगों को कम करे और एनर्जी को बढ़ाए


च्यवनप्राश एक प्राचीन आयुर्वेदिक सप्लीमेंट है जो सर्दी-खांसी, कमजोर इम्युनिटी और श्वसन संबंधी समस्याओं से लड़ने में मदद करता है। यह ऊर्जा, स्टैमिना और ...और पढ़ें





बीमारियों से बचाने में रामबाण है च्यवनप्राश


 सर्दी-खांसी या इम्युनिटी का कमजोर होना, अब किसी खास आयु वर्ग की समस्या नहीं है। बच्चे, बुढ़े और जवान हर कोई इनसे प्रभावित है। मौसम की मार और बढ़ते प्रदूषण ने लोगों को शुद्ध और पौष्टिक आहार के सेवन के संबंध में सचेत कर दिया है। लोग अब जागरूक हो चुके हैं और उन्हें पता है कि उनके शरीर के लिए कौन सा आहार उत्तम है। सर्दियों के मौसम में श्वसन से जुड़ी समस्याएं बढ़ जाती हैं। एनर्जी और स्टैमिना का कम होना आम है। साथ ही, पाचन और ह्र्दय के रोग लगातार परेशान करते हैं। ऐसे में हमारा ध्यान कई महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों से बना च्यवनप्राश पर जाता है। क्योंकि इसका एंटी-एजिंग इफेक्ट और विटामिन, मिनरल व एंटीऑक्सीडेंट की पर्याप्त मौजूदगी हमें कई बीमारियों से दूर रखने में मदद करते हैं।


च्यवनप्राश प्राचीन काल से इस्तेमाल किए जाने वाला आहार सप्लीमेंट है। यह ऋग्वेद का आशीर्वाद है और हमारी विरासत भी। यह बढ़ती उम्र से लेकर खांसी और आम सर्दी तक, कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए एक रामबाण है। यह ताकत, स्टैमिना और स्फूर्ति को बढ़ाकर जीवन को उत्साह से भर देता है। पारंपरिक आयुर्वेद के चिकित्सक च्यवनप्राश को “एजलेस वंडर” कहते हैं। चरक संहिता के अनुसार, “यह सबसे अच्छा रसायन है, जो खांसी, अस्थमा और सांस की दूसरी बीमारियों को दूर करने में फायदेमंद है। यह कमजोर और खराब हो रहे टिश्यू को पोषण देता है। यह एंटी-एजिंग सप्लीमेंट है जो ताकत और एनर्जी को बढ़ाता है।"




च्यवनप्राश तीन दोषों—वात, पित्त और कफ को संतुलित करने में मदद करता है। इसका मतलब यह हुआ कि शरीर के ह्यूमर/ बायोएनर्जी शरीर की बनावट और बायोफंक्शन को रेगुलेट करते हैं। यहां जानना जरूरी है कि आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों के खास असर को माइक्रो एवं माइक्रोन्यूट्रिएंट्स सप्लीमेंट और मेटाबोलिक एवं टिश्यू न्यूट्रिशन के स्तर पर अच्छी तरह से पहचाना गया है, तभी हम सालों से इसका फायदा ले रहे हैं। आज जड़ी-बूटियों पर इस तरह का आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक रिसर्च डाबर च्यवनप्राश (Dabur Chyawanprash) में देखने को मिलता है। यह एक आयुर्वेदिक डेली हेल्थ सप्लीमेंट है, जिसमें पोषक तत्वों से भरपूर जड़ी-बूटियों और मिनरल्स की प्रचुरता है। यह सालों से हर भारतीय की जिंदगी का हिस्सा है, जो सर्दी-खांसी जैसी बीमारी को रोकने में मदद करता है, उर्जा बढ़ाता है और प्राकृतिक एंटी-एजिंग क्षमता से भरपूर है।


हर्बल फॉर्मूलेशन बनाने के लिए पर्याप्त रिसर्च और अनुभव की जरूरत होती है। क्योंकि, कॉम्पोनेंट्स को अलग करना, उसे पहचाना और उसकी मात्रा को निर्धारित करना, बिना तकनीक और इनोवेशन के संभव नहीं है। डाबर च्यवनप्राश की पूरी प्रक्रिया वैज्ञानिक रिसर्च पर आधारित होती है। इनके च्यवनप्राश के कम्पोजीशन में एक बड़ा हिस्सा आंवले का होता है, जो गैलिक एसिड और पॉलीफेनोल्स से भरपूर होता है। इस कम्पोजीशन के फेनोलिक कंपाउंड्स में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो च्यवनप्राश के रिजुविनेटिंग और टॉनिक गुणों में योगदान देते हैं।


च्यवनप्राश हमारे इम्यून सिस्टम को बढ़ाता है और यह इसका सबसे प्रमुख लाभ है। लेकिन इसके पीछे एंटीबॉडीज की मुख्य भूमिका होती है। जैसे इम्युनोग्लोबुलिन एंटीबॉडी पैथोजन्स से लड़ता है, तो वहीं IgG शरीर में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला एंटीबॉडी है, जो खून और शरीर के दूसरे फ्लूइड्स में होता है। यह इन्फेक्शन से लंबे समय तक सुरक्षा देता है और फीटस को बचाने के लिए प्लेसेंटा को क्रोस कर सकता है। वहीं, IgE एंटीबॉडी एलर्जिक रिएक्शन से जुड़ा है। जब शरीर किसी एलर्जेन के संपर्क में आता है तो IgE एंटीबॉडी मास्ट सेल्स से जुड़ जाती है, जिससे केमिकल्स (जैसे हिस्टामाइन) रिलीज होते हैं जो एलर्जी के लक्षण पैदा करते हैं। स्टडीज से पता चला है कि IgG और IgM ज्यादा बढ़ने और IgE के कम होने से हिस्टामाइन कम हुआ, जो इम्यूनोस्टिम्युलेटरी के असर को दिखाता है। एक एक्सपेरिमेंटल स्टडी से पता चला है कि डाबर च्यवनप्राश प्रीट्रीटमेंट से एलर्जेन और ओवलब्यूमिन से होने वाली एलर्जी के साथ प्लाज्मा हिस्टामाइन लेवल और सीरम इम्यूनोग्लोबुलिन E (IgE) रिलीज में काफी कमी आई, जो इसकी एंटीएलर्जिक क्षमता का संकेत देती है।


डाबर च्यवनप्राश अपने तरह का एक बैलेंस्ड फॉर्मूला है। इसे बनाने के लिए आयुर्वेदिक के साथ मॉडर्न तरीकों को अपनाया गया है, जो सुरक्षित होने के साथ इफेक्टिव भी है। इसमें इस्तेमाल होने वाले बोटैनिकल एक्सट्रैक्ट कई फाइटोन्यूट्रिएंट्स में मदद करते हैं। खास तौर पर गैलिक एसिड, फ्लेवोनॉयड्स, एल्कलॉइड्स, पिपेरिन, आंवले से मिलने वाले टैनिन (मुख्य सामग्री) और साथ ही 40+ दूसरी जड़ी-बूटियां जो च्यवनप्राश में एक्सट्रैक्ट के तौर पर इस्तेमाल होती हैं। इसके अलावा इसमें गाय का घी और तिल का तेल है जिसे आयुर्वेद में यमकद्रव्य कहते हैं। इसमें खुशबूदार बोटैनिकल पाउडर है जो एक प्रक्षेपद्रव्यस है, जिसमें पीपली, नागकेसर, इलायची, तमलपत्र, दालचिनी जैसे इंग्रीडिएंट्स शामिल है।
प्रदूषण में आयुर्वेद को बनाएं सुरक्षा कवच, डॉक्टर ने दी दिल और फेफड़ों को स्वस्थ रखने की खास सलाह

प्रदूषण में आयुर्वेद को बनाएं सुरक्षा कवच, डॉक्टर ने दी दिल और फेफड़ों को स्वस्थ रखने की खास सलाह

प्रदूषण में आयुर्वेद को बनाएं सुरक्षा कवच, डॉक्टर ने दी दिल और फेफड़ों को स्वस्थ रखने की खास सलाह

वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए लोग तमाम तरह के उपाय तो कर रहे हैं, लेकिन एक बार आयुर्वेदिक उपचारों को अपनी दिनचर्या में शामिल करके जरूर देखना चाहिए। आयुर्वेदिक शुद्धीकरण और आहार कैसे शरीर के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं। आइए जानें।




प्रदूषण के बीच कैसे रखें सेहत का ख्याल? (Picture Courtesy: AI Generated Image)


 वायु प्रदूषण के प्रभाव से बचने के लिए लोग घर के अंदर कीमती एयर प्यूरिफायर और इंडोर प्लांट्स लगा रहे हैं, लेकिन ये सारे केवल ऊपरी उपाय हैं, जिनका प्रभाव थोड़े समय के लिए ही रहता है। आयुर्वेद के पास ऐसे स्थायी समाधान हैं, जो आपके फेफड़ों और दिल को स्वस्थ रख सकते हैं। वायु से हमारा जीवन है। इससे शरीर को पोषण मिलता है, लेकिन जब वायु ही विषाक्त होने लगे, तब क्या किया जाए। आइए, श्वसन तंत्र की सुरक्षा के लिए कुछ प्रभावी आयुर्वेदिक उपायों पर नजर डालते हैं।

आयुर्वेदिक शुद्धीकरण (पंचकर्म)

प्रदूषण के कारण शरीर में विषाक्त पदार्थ जमा होने लगते हैं, जिन्हें समय-समय पर बाहर निकालना आवश्यक है। इसलिए सर्दियों में पंचकर्म करवाने की सलाह दी जाती है । आयुर्वेद की विषहरण चिकित्सा है पंचकर्म, इससे विषाक्त पदार्थ शरीर से बाहर निकाले जाते हैं।


वमन (उल्टी): श्वसन पथ से अतिरिक्त बलगम और प्रदूषकों को हटाने में मदद करता है।

विरेचन: इस प्रक्रिया से शरीर से विषाक्त पदार्थों को साफ करने और सूजन कम करने में मदद मिलती है।

स्टीम स्वेदना ( हर्बल थेरेपी ): यह वायुमार्ग और कफ को खोलने में मदद करती है।

बस्ती (एनीमा थेरेपी ): यह एक हर्बल एनीमा प्रक्रिया है, जो बृहदांत्र को साफ करके आंतों से विषाक्त पदार्थ बाहर निकालती है।
नास्य चिकित्सा

वायुजनित प्रदूषकों के विरुद्ध एक कवच का काम करती है नास्य चिकित्सा यह एक आयुर्वेदिक चिकित्सा हैं, जिसमें औषधीय तेलों को नाक में डाला जाता है। इससे नासिका की नली साफ करने में मदद मिलती है। आप चाहें तो घी का प्रयोग भी कर सकते हैं। प्रतिदिन सुबह नासिका में तेल की दो-तीन बूंदें डालें। गहरी सांस लें ताकि तेल नाक के मार्ग में समा जाए। इसे डालने के बाद तुरंत बाहर जाने से परहेज करें।

आयुर्वेदिक हर्ब्स

आयुर्वेदिक हर्ब्स स्वस्थ दिनचर्या बनाए रखने में मदद करते हैं। जैसे तुलसी सूजन कम करती है और वायुमार्ग साफ रखती है। मुलेठी गले को आराम देती है। हल्दी में करक्यूमिन होने के कारण यह लाभकारी है। आंवला विटामिन सी से भरपूर है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और श्वसन संक्रमण से बचाव होता है। शहद फेफड़ों से बलगम साफ करने में मदद करता है और खांसी में आराम देता है।


स्वस्थ आहार गर्म पानी से भांप लेने से गला और नाक दोनों साफ होते हैं। धूल और धुएं के कारण गले में खराश होने लगती है। गर्म पानी में नमक डालकर गरारे करने से गला साफ होता है। अदरक, तुलसी, हल्दी और शहद डालकर हर्बल टी बनाएं इसमें एंटीइन्फ्लेमेटरी और एंटीआक्सीडेंट्स के गुण समाए हुए हैं। विटामिन सी से भरपूर फल जैसे संतरा, आंवला, कीवी और अमरूद खाएं। हल्दी वाला दूध रात को लेने से शरीर की सूजन कम होती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।


डॉ. मेधा कुलकर्णी (प्रोफेसर, स्वस्थवृत्त, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, दिल्ली) बताती हैं कि इस मौसम में नए चावल और आलू आने शुरू हो जाते हैं। इसके सेवन से पाचन तंत्र मजबूत रहता है। ठंड के मौसम में तिल, गोंद, दूध, पनीर आदि खाने से शरीर में गर्माहट आती है और इम्युनिटी बढ़ती है। दालचीनी, अदरक, मेथी और गरम मसालों के प्रयोग से सूजनरोधी क्षमताएं बढ़ती हैं। साथ ही इस मौसम में हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, बथुआ, साग खानी चाहिए। इनमें कई तरह के मिनरल्स और विटामिंस पाए जाते हैं। ठंड में मांसपेशियों के दर्द से राहत के लिए गर्म पानी से नहाएं। सुबह उठकर योगासन और प्राणायम करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
बचपन के घातक कैंसर में गेम चेंजर साबित हो सकती है यह दवा, खत्म होगा एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का डर

बचपन के घातक कैंसर में गेम चेंजर साबित हो सकती है यह दवा, खत्म होगा एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का डर

बचपन के घातक कैंसर में गेम चेंजर साबित हो सकती है यह दवा, खत्म होगा एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का डर


कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज हो जाने के बाद भी अक्सर रोगी को लंबे समय तक तनाव में रखती है, खासकर तब जब इलाज के बाद यह बीमारी फिर से पनप उठती है। दोबारा होने वाले कैंसर के मामले अक्सर और भी घातक होते हैं क्योंकि ये पिछली दवाओं के प्रति रेजिस्टेंस हो जाते हैं, जिसके कारण मृत्यु दर बढ़ जाती है।



बचपन का कैंसर फिर पनपने पर होगा अधिक कारगर इलाज (Image Source: Freepik)

 कैंसर के मामलों में ऐसा अक्सर होता है कि इलाज के बाद रोगी स्वस्थ दिखने लगता है। लेकिन कुछ समय बाद वह रोग फिर से पनप जाता है और ऐसे में वह इलाज प्रतिरोधी भी होता है। इस कारण ऐसे मामलों में मौतें ज्यादा होती हैं। अब आस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी दवा की खोज की है जो बचपन में होने वाले घातक कैंसर न्यूरोब्लास्टोमा के उपचार में दवा प्रतिरोध की बाधा को पार करने में मदद कर सकती है। यह खोज न्यूरोब्लास्टोमा के उपचार में बड़ा सुधार ला सकती है। बता दें, न्यूरोब्लास्टोमा बच्चों में मस्तिष्क के बाहरी हिस्से में सबसे सामान्य ठोस ट्यूमर है, और वर्तमान में यह 10 में से नौ मरीजों की जान ले लेता है, जिनमें यह रोग फिर से पनपता है।

कैंसर सेल्स के डिफेंस सिस्टम को भेदने का दावा

चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार, आस्ट्रेलिया के गार्वन इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल रिसर्च के शोधकर्ताओं का दावा है कि यह दवा संयोजन उन कोशिकीय रक्षा तंत्रों को पार कर सकता है, जो ये ट्यूमर विकसित करते हैं और रोग की पुनरावृत्ति होती है।


शोधकर्ताओं के मुताबिक, लिंफोमा के लिए स्वीकृत वा रोमिडेप्सिन वैकल्पिक मार्गों के माध्यम से न्यूरोब्लास्टोमा कोशिका मृत्यु को प्रेरित करती है, जो रासायनिक चिकित्सा- प्रतिरोधी मामलों में सुधार के लिए अवरुद्ध मार्गों को बाइपास करती है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि मानक रासायनिक चिकित्सा दवाएं कोशिका मृत्यु के लिए जेएनके मार्ग "स्विच” पर निर्भर करती हैं। फिर से होने वाले ट्यूमरों में यह स्विच अक्सर काम करना बंद कर देता है, जिसका अर्थ है कि उपचार अब प्रभावी नहीं है।


पशु मॉडलों पर किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि रोमिडेप्सिन के साथ मानक कीमोथैरेपी ट्यूमर वृद्धि को वैकल्पिक कोशिका - मृत्यु मार्गों के माध्यम से रोकता है, जो प्रतिरोधी मामलों में सामान्य अवरुद्ध जेएनके मार्ग को बाइपास करता है।

बार-बार होने वाले कैंसर का नया इलाज

इस संयोजन ने ट्यूमर वृद्धि को कम किया, जीवनकाल को बढ़ाया और कम कीमोथैरेपी की सहुलियत मिली, जिससे छोटे बच्चों में दुष्प्रभावों को कम करने की संभावना बढ़ी है। यह शोध अध्ययन साइंस एडवांसेस में प्रकाशित किया गया है । गार्वन इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर डेविड क्राउचर ने बताया कि न्यूरोब्लास्टोमा के फिर से पनपने के उच्च जोखिम की प्रतिरोधी स्थिति को पार करने का एक तरीका खोजना मेरे प्रयोगशाला का एक प्रमुख लक्ष्य रहा है। ये ट्यूमर कीमोथैरेपी के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी हो सकते हैं। जब मरीज उस स्थिति में पहुंचते हैं तो परिवार के लिए आपदा साबित होते हैं।

रोमिडेप्सिन बन सकती है 'गेम चेंजर'

रोमिडेप्सिन पहले से ही अन्य कैंसर के लिए उपयोग के लिए स्वीकृत दवा है और बच्चों में सुरक्षा के लिए परीक्षण किया गया है, जो न्यूरोब्लास्टोमा के लिए एक नए उपचार विकल्प के रूप में दवा के विकास को तेज कर सकता है। हालांकि, किसी भी क्लीनिकल एप्लीकेशन के लिए दवाओं के संयोजन की सुरक्षा और प्रभावशीलता स्थापित करने के लिए आगे परीक्षण और क्लीनिकल परीक्षण आवश्यकता है।
क्या है इंटीग्रेटिंग पैलिएटिव केयर, जो गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए बन सकती है 'आशा की किरण'

क्या है इंटीग्रेटिंग पैलिएटिव केयर, जो गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए बन सकती है 'आशा की किरण'

क्या है इंटीग्रेटिंग पैलिएटिव केयर, जो गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए बन सकती है 'आशा की किरण'


जब कोई व्यक्ति लाइलाज या गंभीर बीमारी से जूझ रहा होता है, तो उसका जीवन असहनीय दर्द और दुख से भर जाता है। ऐसे समय में, केवल बीमारी का इलाज ही काफी नहीं होता, बल्कि जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना सबसे जरूरी होता है। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक नई और उभरती हुई चिकित्सा पद्धति सामने आई है, जिसे 'इंटीग्रेटिंग पैलिएटिव केयर' कहा जाता है।




गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए क्यों जरूरी है 'पैलिएटिव केयर' (Image Source: Freepik)


 किसी गंभीर या लाइलाज बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति के लिए इलाज सिर्फ दवाइयों तक सीमित नहीं होता, बल्कि उन्हें जरूरत होती है ऐसे सहारे की, जो उनके दर्द को कम करे, मन को शांत रखे और परिवार को भी इस कठिन समय में संभाल सके। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए आज दुनिया भर में 'इंटीग्रेटिंग पैलिएटिव केयर' पर जोर दिया जा रहा है। यह कोई अंतिम विकल्प नहीं, बल्कि एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है, जो मरीज का जीवन बेहतर और सहज बनाने पर ध्यान देती है।



क्या है इंटीग्रेटिंग पैलिएटिव केयर?

यह ऐसी स्वास्थ्य सेवा है जिसका उद्देश्य गंभीर और घातक बीमारियों से पीड़ित मरीजों को शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से राहत देना है। इसमें दर्द कम करने से लेकर भावनात्मक समर्थन तक सब शामिल होता है, ताकि मरीज और उनके परिवार, दोनों के जीवन की गुणवत्ता सुधर सके।

भारत में जरूरत बहुत, पहुंच बेहद कम

शोध के अनुसार भारत में करीब 70 लाख से 1 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें पैलिएटिव केयर की आवश्यकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि चार प्रतिशत से भी कम मरीज तक यह सुविधा पहुंच पाती है। यह अंतर बताता है कि देश की बड़ी आबादी इस महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा से वंचित है।

शोध क्या कहता है?

यह अध्ययन पुणे के एसोसिएशन फॉर सोशल्ली अप्लीकेबल रिसर्च (ASAR) द्वारा किया गया और इसका निष्कर्ष ई कैंसर मेडिकल साइंस में प्रकाशित हुआ।

अध्ययन का मुख्य उद्देश्य था- भारत में पैलिएटिव केयर की भौगोलिक पहुंच का आकलन करना और यह समझना कि यदि इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के हर स्तर में शामिल कर दिया जाए, तो इसकी पहुंच कितनी बढ़ सकती है
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बड़ा अंतर

अध्ययन में पाया गया कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच शहरी क्षेत्रों की तुलना में कहीं कमजोर है। राज्यों के बीच भी काफी असमानता देखी गई- कुछ राज्यों में यह सेवा बेहतर रूप से उपलब्ध है, जबकि कई राज्यों में इसकी पहुंच बेहद सीमित है।

एकीकरण से बदल सकती है तस्वीर

शोध का महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि जब पैलिएटिव केयर को स्वास्थ्य प्रणाली के हर स्तर- जिला अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, कम्युनिटी हेल्थ सेंटर आदि में शामिल किया गया, तो इसकी पहुंच में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई। इसका मतलब है कि अगर सरकार और स्वास्थ्य संस्थान मिलकर इसे स्वास्थ्य ढांचे का हिस्सा बना दें, तो पूरे देश में अधिक समान और सुलभ देखभाल सुनिश्चित की जा सकती है।

क्यों है पैलिएटिव केयर का विस्तार जरूरी?मरीजों को बेहतर जीवन गुणवत्ता मिलती है
दर्द और मानसिक तनाव में कमी आती है
परिवारों को भावनात्मक और सामाजिक सहयोग मिलता है
स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव कम होता है
समय रहते सही देखभाल मिलने से मरीज की स्थिति सुधरती है

इंटीग्रेटिंग पैलिएटिव केयर उन लाखों लोगों के लिए आशा की किरण है, जो गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। यह सिर्फ एक चिकित्सा सेवा नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं से भरा एक ऐसा प्रयास है, जिसके माध्यम से मरीजों को सम्मानजनक, सहज और बेहतर जीवन जीने में महत्वपूर्ण मदद मिल सकती है। अगर इसे पूरी तरह से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में शामिल कर दिया जाए, तो भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर बदलना बिल्कुल संभव है।
बच्चों को गुदगुदी करना बंद करें! डॉक्टर ने समझाया कैसे उनके लिए सजा बन सकता है आपका मजा

बच्चों को गुदगुदी करना बंद करें! डॉक्टर ने समझाया कैसे उनके लिए सजा बन सकता है आपका मजा

बच्चों को गुदगुदी करना बंद करें! डॉक्टर ने समझाया कैसे उनके लिए सजा बन सकता है आपका मजा

बचपन में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे दोस्तों या परिवार के हाथों गुदगुदी का एहसास न हुआ हो। अक्सर माता-पिता या बड़े अपने बच्चों को प्यार जताने या हंसाने के लिए गुदगुदी का सहारा लेते हैं, लेकिन क्या आपको मालूम है कि जिसे आप प्यार भरा खेल या मजा समझ रहे हैं, वह आपके बच्चे के लिए तनाव, बेचैनी और कभी-कभी 'सजा' जैसा बन सकता है? आइए, डॉ. मनन वोरा से जानते हैं इसके बारे में।




आज ही छोड़ दें बच्चों को गुदगुदी करने की आदत (Image Source: AI-Generated)

 हम अक्सर सोचते हैं कि बच्चों को गुदगुदाना एक मासूम, मजेदार और प्यारा-सा पल होता है। बच्चा हंस पड़ता है, पेरेंट्स भी खुश हो जाते हैं- जैसे सब ठीक ही चल रहा हो, लेकिन क्या हर हंसी वास्तव में खुशी ही होती है? शायद नहीं।


बच्चों को गुदगुदी करना जितना बाहर से क्यूट लगता है, अंदर से उनका शरीर कुछ और ही कहानी कह रहा होता है। कई बार यह हंसी खुशी की नहीं, बल्कि एक रिफ्लेक्स की होती है और जरूरी नहीं कि बच्चा वास्तव में मजे में हो।


गुदगुदी का सच

जब किसी छोटे बच्चे को गुदगुदाया जाता है, उसके शरीर में कुछ ऐसे बदलाव होते हैं जिन्हें हम अक्सर नोटिस नहीं करते:
हंसी एक रिफ्लेक्स है, हमेशा खुशी नहीं

बच्चा हंस जरूर देता है, लेकिन यह हंसी ज्यादातर ऑटोमेटिक प्रतिक्रिया होती है। शरीर इस तरह बना है कि कुछ जगहों को छूने पर वह अनायास हंस पड़ता है- भले ही भीतर से उसे अच्छा न लग रहा हो।

सांस रुकने जैसा एहसास

कई बच्चों की सांस एक पल को अटक सकती है। गुदगुदी से अचानक शरीर में तनाव जैसा महसूस होता है, जिससे उनका ब्रीथ पैटर्न बदल सकता है।
दिल की धड़कन तेज हो जाना

गुदगुदी को शरीर कभी-कभी फन के बजाय अचानक के डर की तरह लेता है। ऐसे में हार्ट रेट बढ़ सकती है।
मसल्स टाइट हो जाना

बच्चों का पूरा शरीर गुदगुदाने पर सिकुड़ जाता है। ये भी एक रिफ्लेक्स है, लेकिन यह असहजता भी पैदा कर सकता है।
स्ट्रेस हार्मोन बढ़ सकते हैं

हम सोचते हैं कि हम बच्चे को हंसा रहे हैं, लेकिन उसका शरीर इसे स्ट्रेस की तरह भी ले सकता है। कई बार उसे खुद समझ नहीं आता कि वो मजे में है या घबरा गया है।







(Image Source: AI-Generated)
फिर बच्चे हंसते क्यों हैं?

क्योंकि शरीर को गुदगुदी पर ऑटोमेटिक रूप से हंसने के लिए डिजाइन किया गया है। बच्चा ये नहीं बता पाता कि उसे गुदगुदी अच्छी लग रही है या वो सिर्फ रिएक्ट कर रहा है। यह हंसी उसकी सहमति नहीं होती।

क्या गुदगुदी करना गलत है?

गुदगुदी पूरी तरह बुरी नहीं, पर जोखिम तब बढ़ता है जब:लगातार और ज्यादा देर तक गुदगुदाया जाए
बच्चा ना कह रहा हो, लेकिन हंसने के कारण उसकी बात को हल्के में लिया जाए
उसे अपनी बॉडी पर कंट्रोल न महसूस हो
वह भागने की कोशिश करे लेकिन उसे रोका जाए
गुदगुदाने से वह चौंक जाए, बेचैन हो या चिड़चिड़ा दिखे

गुदगुदी बच्चे के लिए कभी-कभी ओवरस्टिमुलेशन का कारण भी बन सकती है- यानी इतनी ज्यादा उत्तेजना कि बच्चा खुद को सुरक्षित महसूस न करे।

कैसे समझें कि बच्चा असहज है?

हर बच्चा कुछ संकेत देता है, बस हमें उन्हें पढ़ना सीखना होता है:शरीर को पीछे खींचना
हाथों से रोकने की कोशिश
तेज सांस लेना
चेहरा सिकोड़ना या आंखें बड़ी होना
नजरें बचाना
अचानक चुप हो जाना
रुकने के लिए शरीर को टेढ़ा करना

अगर ये संकेत दिखें, तो तुरंत रुक जाएं- भले ही बच्चा हंस रहा हो।

बच्चे का ‘कंसेंट’ समझें

बच्चों को छोटी उम्र में ही यह महसूस होना चाहिए कि उनका शरीर उनका है।

अगर आप हर बार पूछकर गुदगुदाएं -
“क्या मैं गुदगुदाऊं?”
“बस हो गया?”
“और करूं या रुकूं?”

ये छोटा-सा कदम उन्हें बॉडी सेफ्टी और कंसेंट समझने में मदद करता है। यह आदत आगे चलकर उन्हें अपने लिए बोलने की ताकत देती है।
गुदगुदाने के सही तरीकेबहुत हल्की और छोटी गुदगुदी
हमेशा बच्चे की बॉडी लैंग्वेज देखें
बीच-बीच में रुककर पूछें कि वह ठीक है या नहीं
अगर बच्चा भागे तो उसे जाने दें
ऐसे गेम खेलें, जो बच्चे कंट्रोल कर सके, जैसे “किसने छुआ?” या “कहां छुआ?” जैसे फन टच गेम्स

बच्चों को मजा तभी आता है जब उन्हें चॉइस मिले, यानी कंट्रोल नहीं छीना जाए।

गुदगुदी का मजा तभी, जब बच्चा भी हो तैयार

गुदगुदाना गलत नहीं, लेकिन बेवजह, लंबे समय तक या बिना उनकी सहमति के गुदगुदाना उनके शरीर और दिमाग पर तनाव डाल सकता है।
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड' फूड बन रहा मोटापे और हार्मोनल इंबैलेंस की वजह, स्वाद के लिए सेहत से न करें समझौता

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड' फूड बन रहा मोटापे और हार्मोनल इंबैलेंस की वजह, स्वाद के लिए सेहत से न करें समझौता

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड' फूड बन रहा मोटापे और हार्मोनल इंबैलेंस की वजह, स्वाद के लिए सेहत से न करें समझौता


क्या आप जानते हैं कि आजकल शहरों में एक ऐसी चीज बहुत तेजी से फैल रही है जो हमारे बच्चों और युवाओं को अंदर से कमजोर कर रही है? जी हां, इसका नाम है जंक फूड। यह भले ही आपके स्वाद को भाता हो, मगर चुपके से आपकी सेहत को भी बिगाड़ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि राजधानी दिल्ली जैसे बड़े शहरों में, पैकेज्ड फूड की खपत बहुत तेजी से बढ़ रही है।




मोटापा, डायबिटीज और बीमारियों का बड़ा कारण बन रहा जंक फूड (Image Source: Freepik)

 आज के समय में सुविधाजनक और स्वादिष्ट दिखने वाला जंक फूड हमारी दिनचर्या में तेजी से जगह बना चुका है। खासकर दिल्ली जैसे बड़े शहरों में इसकी खपत इतनी तेजी से बढ़ रही है कि यह अब एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी है। चिप्स, नूडल्स, नमकीन, कोल्ड ड्रिंक, चॉकलेट और ब्रेकफास्ट सीरियल जैसी पैकेट बंद चीजें बच्चों और युवाओं की पहली पसंद बन गई हैं, लेकिन इनके पीछे छिपे खतरे बहुत गहरे हैं।



भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की बम्पर बिक्री

पिछले लगभग पंद्रह वर्षों में भारत में पैक्ड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की बिक्री कई गुना बढ़ गई है। द लांसेट की नई रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष इन उत्पादों का बाजार 50 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच सकता है। यह तेज बढ़ोतरी विशेषज्ञों के लिए बड़ी चिंता बन चुकी है, क्योंकि इसका सीधा संबंध बढ़ते मोटापे और उससे जुड़ी बीमारियों से है।


मोटापा और हार्मोनल असंतुलन

जंक फूड में पोषण का संतुलन लगभग गायब होता है। इनमें विटामिन, फाइबर या प्राकृतिक तत्वों की बजाय ज्यादा चीनी, नमक, तेल और आर्टिफिशियल रंग होते हैं। यही वजह है कि इन्हें खाने से पेट भरने के बावजूद शरीर को आवश्यक ऊर्जा नहीं मिलती, बल्कि ऐसी चीजें हमें बार-बार खाने की आदत डाल देती हैं। धीरे-धीरे यह आदत मोटापा, हार्मोनल असंतुलन और सेहत से जुड़ी अन्य समस्याओं को जन्म देती है।

कम समय में ही दोगुना बढ़ा मोटापा

देश में मोटापे की स्थिति चिंताजनक है। आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों में मोटापा 12 प्रतिशत से बढ़कर 23 प्रतिशत तक पहुंच गया है। वहीं महिलाओं में यह 15 प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत हो चुका है। यानी कुछ ही वर्षों में दोनों ही श्रेणियों में मोटापा लगभग दोगुना बढ़ा है। यह बढ़ोतरी विशेषज्ञों के मुताबिक उतनी ही खतरनाक है, जितनी प्रदूषण से फेफड़ों पर पड़ने वाली मार।

अब नहीं संभले तो कब?

इन सभी बातों से साफ है कि जंक फूड का बढ़ता बाजार सिर्फ स्वाद का मामला नहीं, बल्कि एक व्यापक स्वास्थ्य चुनौती बन चुका है। जरूरत है कि लोग जागरूक हों, बच्चों में सही खान-पान की आदतें विकसित की जाएं और घर में स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों को प्राथमिकता दी जाए। अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में मोटापा और उससे जुड़ी बीमारियां और भी अधिक तेजी से बढ़ सकती हैं।
महिलाओं से ज्यादा पुरुष हो रहे हैं कैंसर का शिकार, ब्रेस्ट और ओरल कैंसर के मामलों में भी हुई बढ़ोतरी

महिलाओं से ज्यादा पुरुष हो रहे हैं कैंसर का शिकार, ब्रेस्ट और ओरल कैंसर के मामलों में भी हुई बढ़ोतरी

महिलाओं से ज्यादा पुरुष हो रहे हैं कैंसर का शिकार, ब्रेस्ट और ओरल कैंसर के मामलों में भी हुई बढ़ोतरी


भारत में ओरल और ब्रेस्ट कैंसर सहित कैंसर के मामलों में जीवनशैली, तंबाकू और देर से निदान के कारण लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जो एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। डॉ. मैमन चांडी के अनुसार, ओरल कैंसर की मृत्यु दर और डीएएलवाई में वृद्धि हुई है, और पुरुषों में इसके मामले अधिक हैं।



कैंसर के मामलों में तेजी से हो रही है वृद्धि (Picture Courtesy: Freepik)



महिलाओं में 1990 से 2016 के बीच ब्रेस्ट कैंसर में 40 प्रतिशत वृद्धि


 देश में कैंसर विशेष रूप से ओरल और ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। यह जीवनशैली में बदलाव, तंबाकू के उपयोग, देर से निदान और पर्यावरणीय कारकों के कारण हो रहा है। यह बात प्रसिद्ध हेमेटोलजिस्ट और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित डा. मैमन चांडी ने कही। चांडी ने कहा कि ये प्रवृत्तियां देश के लिए प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती प्रस्तुत करती हैं।

ओरल कैंसर के बढ़ रहे मामले

उन्होंने कहा कि 1990 से 2021 के बीच भारत में ओरल कैंसर की मृत्यु दर 5.32 से बढ़कर 5.92 प्रति एक लाख हो गई और दिव्यांगता समायोजित जीवन वर्ष (डीएएलवाई) दर 152.94 से बढ़कर 163.61 हो गई।


पुरुषों में कैंसर के ज्यादा मामले

चांडी ने कहा कि पूर्वानुमान बताते हैं कि 2022 से 2031 के बीच ओरल कैंसर के मेट्रिक्स में वृद्धि की प्रवृत्ति है, जिसमें एएसपीआर ( आयु- मानकीकृत घटना दर ) 2031 तक 10.15 प्रति 100,000 और मृत्यु दर (एएसपीआर) 29. 38 प्रति 100,000 तक पहुंचने की उम्मीद है। कोलकाता के टाटा मेडिकल सेंटर के पूर्व निदेशक ने कहा कि पुरुषों में महिलाओं की तुलना में लगातार उच्च दरें देखी जाती हैं।


ब्रेस्ट और ओरल कैंसर के मामले बढ़े

चांडी ने कहा कि वैश्विक स्तर पर ब्रेस्ट कैंसर अब महिलाओं में सबसे सामान्य कैंसर बन गया है, जो फेफड़े कैंसर को पार कर गया है। चांडी ने कहा कि भारत में महिलाओं में एएसपीआर 1990 से 2016 के बीच लगभग 40 प्रतिशत बढ़ गया है। हर राज्य में ब्रेस्ट कैंसर में वृद्धि रिपोर्ट की गई है। ब्रेस्ट कैंसर के मुख्य कारणों में जीवनशैली के कारक, मोटापा, शराब का सेवन, देर से गर्भधारण और बेहतर निदान शामिल हैं।

आईआईटी मद्रास में कैंसर जीनोम एटलस को लांच किया

उन्होंने कहा कि भारत वर्तमान में दो पूरक माडलों का पालन करता है। एक निजी क्षेत्र, जहां मरीजों को मल्टी स्पेशलिटी या तृतीयक अस्पतालों में भेजा जाता है और दूसरा सार्वजनिक क्षेत्र, जहां मरीजों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर देखा जाता है और राज्य कैंसर अस्पतालों में भेजा जाता है। शोध और जीनोमिक्स पर चांडी ने आइआइटी मद्रास द्वारा लांच किए गए भारत कैंसर जीनोम एटलस (बीसीजीए) को उजागर किया। यह अग्रणी पहल भारत में प्रचलित कैंसरों के आनुवंशिक परिदृश्य को मानचित्रित करती है। वर्तमान में यह मुख्य रूप से डाटा संग्रह का काम है।

कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज

उन्होंने डोस्टारलिमैब - जीएक्सली (जेम्परली) नामक पीडी - 1 दवाओं का उल्लेख किया, जिसने निष्क्रिय ट्यूमर वाले कोलोरेक्टल आइआइटी मद्रास में कैंसर जीनोम एटलस कैंसर के मरीजों के एक छोटे समूह में 100 प्रतिशत पूर्ण प्रतिक्रिया प्राप्त की । उन्होंने कहा कि यह अद्भुत है, लेकिन यह केवल चार-पांच प्रतिशत मरीजों पर लागू होता है। बाकी को सर्जरी और कीमोथेरेपी की आवश्यकता है।

इम्यूनोथेरेपी दवा से मिलती है मदद

डोस्टारलिमैब - जीएक्सली (जेम्परली) इम्यूनोथेरेपी दवा है जो टी-कोशिकाओं पर पीडी - 1 प्रोटीन को अवरुद्ध करती है। ताकि उन्हें कैंसर कोशिकाओं पर हमला करने में मदद मिल सके। रूस द्वारा एमआरएनए कैंसर वैक्सीन की घोषणा पर उन्होंने कहा, इस बारे में अभी तक कोई प्रकाशित क्लिनिकल डाटा नहीं है। चांडी ने कहा कि हम हर साल 10 लाख से अधिक कैंसर के नए मामलों का सामना कर रहे हैं। महिलाओं में ब्रेस्ट, गर्भाशय और अंडाशय के कैंसर सबसे सामान्य हैं, पुरुषों में फेफड़ों, ओरल और प्रोस्टेट कैंसर प्रमुख हैं।
सिर्फ क्लीनिक पर ही निर्भर न रहें, घर पर खुद से भी बीपी जांचना है जरूरी; सही इलाज में मिलेगी मदद

सिर्फ क्लीनिक पर ही निर्भर न रहें, घर पर खुद से भी बीपी जांचना है जरूरी; सही इलाज में मिलेगी मदद

सिर्फ क्लीनिक पर ही निर्भर न रहें, घर पर खुद से भी बीपी जांचना है जरूरी; सही इलाज में मिलेगी मदद


ब्लड प्रेशर की समस्या सेहत के लिए एक गंभीर खतरा है। हाई ब्लड प्रेशर को साइलेंट किलर भी कहा जाता है, क्योंकि इसके कोई लक्षण नहीं होते हैं। इसलिए इसकी नियमित जांच करना भी जरूरी है। हालांकि, ज्यादातर लोग क्लीनिक में अपना बीपी जंचवाते हैं, लेकिन प्रो. नरसिंह वर्मा (इंडियन सोसाइटी आफ हाइपरटेंशन) बता रहें हैं कि रोज घर पर भी बीपी मापना बेहद जरूरी है।




क्यों जरूरी है रोज बीपी जांचना? (Picture Courtesy: Freepik)


21% लोगों का बीपी घर में ठीक, पर अस्पताल में बढ़ जाता है


कुमार संजय, नई दिल्ली। क्या अस्पताल में जब कोई आपका ब्लड प्रेशर मापता है तो वह अधिक होता है, लेकिन घर में सामान्य रहता है। ऐसी स्थिति को व्हाइट कोट हाइपरटेंशन कहा जाता है। हृदय रोग विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह होप एशिया नेटवर्क ने नई गाइडलाइन जारी की है, जिसमें क्लीनिक, घर की माप तथा 24 घंटे की निगरानी, तीनों को समान महत्व दिया गया है।


यह गाइडलाइन 22 देशों के संस्थानों के सहयोग से हुए शोध के बाद जारी की गई है, जिसमें लखनऊ का किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) भी शामिल है।

इस अध्ययन के मुताबिक भारत में 21.1 प्रतिशत लोगों को 'व्हाइट कोट हाइपरटेंशन' है, वहीं 18.9 प्रतिशत को 'मास्क्ड हाइपरटेंशन (यानी क्लीनिक में सामान्य, घर पर हाइ) की समस्या है, जिससे बीपी के गलत आकलन की आशंका रहती है। 42 प्रतिशत मरीजों में गलत आकलन का खतरा रहता है, इससे ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट की परेशानी की आशंका रहती है।


क्यों है घर पर वीपी मापना जरूरी

बीपी के सही आकलन के लिए क्लीनिक, घर और 24 घंटे की निगरानी से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर इलाज तय किया जाना चाहिए। घर पर सुबह-शाम कम से कम चार दिन इसकी माप जरूरी है। इससे सही दवाओं के चयन में मदद मिलती है।

रक्तचाप मापने का सही तरीका

मापने से पहले पांच मिनट शांत बैठें। कुर्सी पर सीधे बैठें, पैर जमीन पर हों और उन्हें क्रास न करें। हाथ दिल की ऊंचाई पर रहे। मापते समय न बोलें और न हिलें । आस्तीन चढ़ाकर मापने से गलत परिणाम आते हैं। सटीकता के लिए एक-दो मिनट के अंतर से दो बार मापें ।


ब्लड प्रेशर की निगरानी के लिए 24 घंटे का ब्लड प्रेशर मापने वाली मशीन काइस्तेमाल करना बेहद जरूरी है। इस उपाय से दवाइयों का सही प्रयोग और स्वास्थ्य पर ज्यादा प्रभावी नियंत्रण संभव होगा ।
रक्तचाप नियंत्रण के उपायदैनिक भोजन में नमक को कम करें। पैक्ड खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें।
आहार में ताजे फल, सब्जियां, दालें, जई, बाजरा, ज्वार, राजमा, चना, बादाम, अखरोट और सलाद शामिल करें।
प्रतिदिन 30 मिनट तेज चलने का प्रयास करें, योग और प्राणायाम करें।
धूमपान, तंबाकू और शराब से दूरी रखें।
तनाव कम करें और पर्याप्त नींद लें।
रक्तचाप से जुड़ी भ्रांतियांकेवल बुजुर्गो को होता है- यह गलत है। आधुनिक जीवनशैली, तनाव व मोटापे के कारण युवा भी बड़ी संख्या में प्रभावित हैं।
यह कोई बीमारी नहीं- अत्यधिक कम रक्तचाप भी चक्कर, कमजोरी और बेहोशी का कारण बन सकता है ।
इसकी दवा कभी बंद नहीं होती- यह भ्रांति है। यदि व्यक्ति नमक कम करे, व्यायाम, प्राणायाम करे, वजन कम करे और तनाव नियंत्रित रखे तो रक्तचाप इतना स्थिर हो जाता है कि चिकित्सक धीरे-धीरे दवा कम या पूरी तरह बंद भी कर सकते हैं।
सेहत' की गारंटी है रसोई का यह 'सीक्रेट' मसाला, फायदे जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

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सेहत' की गारंटी है रसोई का यह 'सीक्रेट' मसाला, फायदे जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान


जीरा, भारतीय रसोई का एक ऐसा साधारण मसाला है जिसे हम रोज इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अक्सर लोग इसके अद्भुत फायदों से अनजान रहते हैं। जी हां, यह सिर्फ खाने का स्वाद नहीं बढ़ाता, बल्कि सेहत से जुड़ी कई समस्याओं का एक घरेलू इलाज भी है। आइए, जानते हैं इसके कुछ गजब फायदों के बारे में।





कई बीमारियों का इलाज है यह किचन का यह जादुई मसाला (Image Source: AI-Generated)


 इंडियन किचन में कई ऐसे मसाले हैं, जो सिर्फ खाने का स्वाद नहीं बढ़ाते, बल्कि सेहत के लिए किसी खजाने से कम नहीं हैं। इन्हीं मसालों में एक है– जीरा। जी हां, यह छोटा-सा बीज सदियों से हमारी दादी-नानी के घरेलू नुस्खों का अहम हिस्सा रहा है। अगर आप इसके फायदों (Cumin Benefits) को जान लेंगे, तो इसे अपनी डाइट में शामिल किए बिना नहीं रह पाएंगे।




(Image Source: AI-Generated)
क्यों फायदेमंद है जीरा?
पाचन तंत्र का सच्चा दोस्त

जीरा मुख्य रूप से आपके पाचन तंत्र के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। अगर आपको अपच, गैस या पेट फूलने जैसी समस्याएं हैं, तो जीरा आपके लिए रामबाण है। यह पाचन एंजाइम्स को एक्टिव करता है, जिससे भोजन को पचाना आसान हो जाता है। खाने के बाद एक चुटकी भुना हुआ जीरा चबाना या जीरा पानी पीना तुरंत राहत दे सकता है।


वजन घटाने में मददगार

अगर आप वजन कम करने की कोशिश कर रहे हैं, तो जीरा को अपनी डाइट में ज़रूर शामिल करें। जीरा शरीर के मेटाबॉलिज्म को तेज करने में मदद करता है। रोज सुबह खाली पेट जीरा पानी पीने से शरीर की चर्बी तेजी से कम होती है। यह न सिर्फ आपको लंबे समय तक भरा हुआ महसूस कराता है, बल्कि टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में भी मदद करता है।

आयरन का खजाना

जीरा आयरन का एक बेहतरीन सोर्स है, जो हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है। आयरन की कमी से अक्सर थकान और कमजोरी महसूस होती है, जिसे एनीमिया कहते हैं। खासकर महिलाओं के लिए, जो अक्सर आयरन की कमी से जूझती हैं, जीरा का नियमित सेवन खून की कमी को पूरा करने और शरीर में ऊर्जा बनाए रखने में बहुत फायदेमंद है।

अच्छी नींद का उपाय

कई शोधों में यह पाया गया है कि जीरा अनिद्रा या नींद न आने की समस्या को दूर करने में भी सहायक है। इसमें कुछ ऐसे ऑयल और कंपाउंड्स पाए जाते हैं जो मन को शांत करते हैं और तनाव को कम करते हैं। अगर आप रात को सोने से पहले एक गिलास गुनगुने पानी में जीरे का पाउडर मिलाकर पीते हैं, तो आपको गहरी और अच्छी नींद आ सकती है।

त्वचा को बनाए चमकदार

जीरा के अंदर विटामिन ई और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं, जो आपकी त्वचा के लिए चमत्कार कर सकते हैं। यह त्वचा को फ्री-रेडिकल्स से बचाता है और त्वचा को चमकदार और स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है। इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण मुंहासों और त्वचा की जलन को भी कम करते हैं।

कैसे करें इस्तेमाल?

जीरे का इस्तेमाल करने के कई आसान तरीके हैं:जीरा पानी: एक चम्मच जीरा रात भर पानी में भिगो दें और सुबह उबालकर पी लें।
भुना हुआ जीरा: इसे भूनकर पाउडर बना लें और दही या छाछ में मिलाकर खाएं।
तड़का: दाल और सब्जियों में तड़का लगाने के लिए इसका रोजाना इस्तेमाल करें।

जीरा सिर्फ एक मसाला नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक औषधि है। इस छोटे से 'सीक्रेट' को अपनी रसोई और अपने जीवन का हिस्सा बनाकर आप सेहत की गारंटी पा सकते हैं।
दिल की बीमारी का खतरा कम करते हैं लाल रंग के ये 5 सुपरफूड्स, आज ही करें डाइट में शामिल

दिल की बीमारी का खतरा कम करते हैं लाल रंग के ये 5 सुपरफूड्स, आज ही करें डाइट में शामिल

दिल की बीमारी का खतरा कम करते हैं लाल रंग के ये 5 सुपरफूड्स, आज ही करें डाइट में शामिल


आजकल के भागदौड़ भरे लाइफस्टाइल और खान-पान की गलत आदतों की वजह से दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ गया है, लेकिन प्रकृति ने हमें कुछ ऐसे लाल रंग के 'सुपरफूड्स' दिए हैं, जो हमारे दिल के लिए किसी सुरक्षा कवच से कम नहीं हैं। इन लाल फलों और सब्जियों में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो नसों को साफ रखते हैं और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखते हैं।



हार्ट डिजीज के खतरे को कम करने के लिए डाइट में शामिल करें 5 फूड्स (Image Source: Freepik)


 आज की तेज रफ्तार जिंदगी में, गलत खान-पान और तनाव के कारण दिल की बीमारियों का खतरा एक भयानक चुनौती बन गया है। हम अक्सर महंगे सप्लीमेंट्स या विदेशी डाइट की तरफ देखते हैं, लेकिन इसका समाधान हमारे किचन में ही, कुछ चमकीले लाल रंग के सुपरफूड्स में छिपा है।


ये साधारण दिखने वाले लाल फल और सब्जियां, एंटीऑक्सीडेंट्स और जरूरी पोषक तत्वों का खजाना हैं। ये आपकी नसों को साफ करेंगे, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करेंगे और आपके दिल को हमेशा जवान और मजबूत रखेंगे। आइए जानते हैं इन 5 'रेड हीरोज' (Red Superfoods for Heart Health) के बारे में।



टमाटर

टमाटर सिर्फ सब्जी का स्वाद नहीं बढ़ाता, बल्कि यह आपके दिल का भी सच्चा दोस्त है। इसका लाल रंग लाइकोपीन नामक एक एंटीऑक्सीडेंट के कारण होता है। यह लाइकोपीन खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) को कम करने में मदद करता है, जिससे आपकी धमनियों में रुकावट आने का खतरा कम हो जाता है।


कैसे खाएं: इसे सलाद में कच्चा खाएं, या फिर सूप या जूस बनाकर पिएं। पकने के बाद भी लाइकोपीन की शक्ति बनी रहती है।
अनार

अनार अपने दानों में कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स जैसे पॉलीफिनॉल्स और एंथोसायनिन छुपाए रखता है। ये तत्व ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाते हैं और ब्लड वेसल्स की दीवारों को नुकसान से बचाते हैं। रिसर्च बताती है कि अनार का सेवन करने से नसों में जमा प्लाक कम हो सकता है, जिससे ब्लॉकेज का खतरा घटता है।


कैसे खाएं: सुबह खाली पेट इसके दाने खाएं, या फिर बिना चीनी का अनार का जूस पिएं। इसे सलाद या दही में मिलाकर भी खाया जा सकता है।
स्ट्रॉबेरी

छोटी, मीठी और रसीली स्ट्रॉबेरी हेल्दी हार्ट के लिए एक बेहतरीन सुपरफूड है। इसमें एंथोसायनिन और फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं। एंथोसायनिन शरीर में होने वाली सूजन को कम करते हैं, जो दिल की बीमारियों का एक बड़ा कारण है। साथ ही, फाइबर खराब कोलेस्ट्रॉल को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है।


कैसे खाएं: नाश्ते में दही, ओट्स या स्मूदी में मिलाकर खाएं। ये एक बेहतरीन और हेल्दी स्नैक भी है।
चुकंदर

चुकंदर का गहरा लाल रंग ही इसकी खासियत है। इसमें नाइट्रेट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। हमारा शरीर इस नाइट्रेट को नाइट्रिक ऑक्साइड में बदल देता है, जो ब्लड वेसल्स को आराम देता है और उन्हें चौड़ा करता है। इस प्रक्रिया से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और दिल पर पड़ने वाला तनाव कम होता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम होता है।


कैसे खाएं: इसका सलाद बनाएं, या इसका जूस पिएं। इसे उबालकर या भूनकर भी खाया जा सकता है।
लाल अंगूर

लाल अंगूर में एक शक्तिशाली कंपाउंड होता है जिसे रेसवेराट्रोल कहते हैं। यह कंपाउंड रक्त वाहिकाओं को लचीला बनाए रखने में मदद करता है और नसों में रक्त के थक्के बनने से रोकता है। यह कोलेस्ट्रॉल लेवल को भी कम करता है, जिससे दिल की सेहत बनी रहती है।


कैसे खाएं: इन्हें सीधे स्नैक के रूप में खाएं। लाल अंगूर का सेवन करना रेड वाइन पीने से ज्यादा फायदेमंद होता है (शराब का सेवन हानिकारक हो सकता है)।
जीन एडिटिंग का कमाल, थेरेपी से खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स में आई 50% तक की कमी

जीन एडिटिंग का कमाल, थेरेपी से खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स में आई 50% तक की कमी

जीन एडिटिंग का कमाल, थेरेपी से खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स में आई 50% तक की कमी


ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने जीन एडिटिंग थेरेपी CTX310 का पहला सफल मानव परीक्षण किया है, जो ANGPTL3 जीन को बंद करके खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) और ट्राइग्लिसराइड्स को आधा कर देता है। इस एकल-खुराक उपचार से LDL में औसतन 50% और ट्राइग्लिसराइड्स में 55% की कमी देखी गई, जिसमें केवल हल्के दुष्प्रभाव थे।




थेरेपी ले कम होगा कोलेस्ट्रॉल? (Picture Courtesy: Freepik)

आस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने एक सफल जीन एडिटिंग थेरेपी के लिए पहली बार मानव परीक्षण का नेतृत्व किया है, जो मुश्किल से इलाज लिपिड विकारों वाले लोगों में खराब कोलेस्ट्राल और ट्राइग्लिसराइड्स को आधा कर देता है।

परीक्षण में सीटीएक्स 310 का परीक्षण किया गया, जो एक बार इस्तेमाल होने वाली सीआरआइएसपीआर-सीएएस9 जीन एडिटिंग थेरेपी है जो सीआरआइएसपीआर संपादन उपकरणों को लीवर में ले जाने के लिए वसा आधारित कणों का उपयोग करती है, जिससे एएनजीपीटीएल 3 जीन बंद हो जाता है।


आस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय द्वारा एक बयान के अनुसार, इस जीन को बंद करने से एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्राल व ट्राइग्लिसराइड्स कम हो जाते हैं, जो हृदय रोग से जुड़े दो रक्त वसा हैं। मोनाश विश्वविद्यालय के साथ साझेदारी में मोनाश हेल्थ द्वारा संचालित विक्टोरियन हार्ट हास्पिटल ने आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन में आयोजित वैश्विक परीक्षण के पहले चरण में मुश्किल से इलाज लिपिड विकारों से पीड़ित 18-75 वर्ष की आयु के 15 रोगियों में से तीन का इलाज किया।


लगभग 60 प्रतिशत की कमी आई

जांच के बाद बताया गया कि उच्चतम खुराक पर सीटीएक्स310 के साथ एकल कोर्स उपचार के परिणामस्वरूप एलडीएल कोलेस्ट्राल में औसतन 50 प्रतिशत और ट्राइग्लिसराइड्स में 55 प्रतिशत की कमी आई, जो उपचार के दो सप्ताह बाद कम से कम 60 दिनों तक कम बना रहा। विभिन्न खुराकों के साथ सभी प्रतिभागियों में एलडीएल कोलेस्ट्राल और ट्राइग्लिसराइड्स में लगभग 60 प्रतिशत की कमी आई, केवल हल्के, अल्पकालिक दुष्प्रभावों की सूचना मिली।


सीटीएक्स 310 पहली ऐसी थेरेपी है जो एक ही समय में एलडीएल कोलेस्ट्राल और ट्राइग्लिसराइड्स दोनों में बड़ी कमी हासिल करती है। न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन में प्रकाशित परीक्षण के अनुसार, मिश्रित लिपिड विकारों वाले लोगों के लिए एक संभावित सफलता को चिह्नित करती है, जिनमें दोनों में वृद्धि होती है।

स्वास्थ्य प्रणाली के लिए कारगर

विक्टोरियन हार्ट हास्पिटल के निदेशक और अध्ययन के प्रमुख अन्वेषक स्टीफन निकोल्स ने कहा कि स्थायी प्रभावों के साथ एकल कोर्स उपचार की संभावना हृदय रोग को रोकने के तरीके में एक बड़ा कदम हो सकती है। निकोल्स ने कहा, इससे उपचार आसान हो जाता है, चल रही लागत कम हो जाती है।


स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव कम हो जाता है, और साथ ही व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। उन्होंने सीटीएक्स 310 के भविष्य के परीक्षणों में बड़ी और अधिक विविध रोगी आबादी पर ध्यान केंद्रित करने की योजना पर जोर दिया।
क्यों 10 नवंबर को ही मनाया जाता है World Immunization Day? क्या है इस खास दिन का महत्व

क्यों 10 नवंबर को ही मनाया जाता है World Immunization Day? क्या है इस खास दिन का महत्व

क्यों 10 नवंबर को ही मनाया जाता है World Immunization Day? क्या है इस खास दिन का महत्व


टीके यानी वैक्सीन सिर्फ व्यक्ति के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए जरूरी हैं। इसलिए टीकों के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 10 नवंबर को World Immunization Day मनाया जाता है। टीके कई जानलेवा बीमारियों के खिलाफ हमें इम्युनिटी देते हैं, जो बीमारियों से बचाव में हमारी मदद करते हैं। आइए जानें इस दिन को मनाने की शुरुआत कैसे हुई।




क्यों मनाया जाता है World Immunization Day? (Picture Courtesy: Freepik)


 नई दिल्ली। हर साल 10 नवंबर को World Immunization Day यानी विश्व टीकाकरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य लोगों में टीकाकरण के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है। टीके (Vaccines) हमारे शरीर को गंभीर बीमारियों से बचाने की सबसे असरदार उपायों में से एक हैं।


ये न केवल व्यक्ति बल्कि समाज को भी सुरक्षित रखते हैं, क्योंकि जब ज्यादा से ज्यादा लोग टीका लगवाते हैं तो “हर्ड इम्यूनिटी” विकसित होती है, जिससे बीमारियों का फैलाव रुकता है। इसलिए टीकाकरण न सिर्फ व्यक्ति के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए जरूरी है।




(Picture Courtesy: Freepik)
विश्व टीकाकरण दिवस का इतिहास

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2012 में World Immunization Day की शुरुआत की थी। यह दिन 1974 में लॉन्च हुए Expanded Programme on Immunization (EPI) की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है। इस प्रोग्राम का उद्देश्य दुनिया भर के सभी लोगों, खासतौर से बच्चों तक जीवनरक्षक टीकों की पहुंच सुनिश्चित करना था।


इस पहल की बदौलत चेचक जैसी खतरनाक बीमारी का पूरी तरह खात्मा हो गया, जबकि पोलियो और खसरा जैसी बीमारियां लगभग समाप्ति की ओर हैं।

टीकाकरण का इतिहास 18वीं सदी से जुड़ा है, जब एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके की खोज की थी। यह खोज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की दिशा बदलने वाली साबित हुई। समय के साथ, टीकों ने टिटनेस, डिप्थीरिया, खसरा, और हाल ही में COVID-19 जैसी बीमारियों से लाखों लोगों की जान बचाई है।

टीकाकारण का महत्व

टीकाकरण केवल इन्फेक्शन से बचाव का उपाय नहीं, बल्कि एक ऐसा कदम है जो आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य देता है। WHO के अनुसार, हर साल लाखों बच्चों की जान केवल टीकाकरण की वजह से बचाई जाती है।


वैक्सीन हेल्थ केयर सिस्टम पर बोझ कम करते हैं, क्योंकि वे बीमारी को शुरू होने से पहले ही रोक देते हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं और बेहतर तरीके से काम कर पाती हैं।
सभी आयु वर्गों के लिए टीकाकरण

पहले टीकाकरण को केवल बच्चों तक सीमित समझा जाता था, लेकिन अब एक्सपर्ट्स वयस्कों के लिए भी टीकों को उतना ही जरूरी मानते हैं। इन्फ्लुएंजा और टिटनेस जैसी बीमारियों के खिलाफ समय-समय पर लगाए जाने वाले टीके वयस्कों के लिए भी उतने ही जरूरी हैं।


World Immunization Day हमें याद दिलाता है कि टीके केवल व्यक्तिगत सुरक्षा का साधन नहीं हैं, बल्कि स्वास्थ्य की नींव हैं। टीकाकरण के माध्यम से हम न केवल बीमारियों से लड़ते हैं, बल्कि एक स्वस्थ और सुरक्षित दुनिया की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।
मोटापा रोकने के लिए नई दवाएं 'चमत्कारी इलाज’ नहीं, वेट लॉस के लिए जीवनशैली में बदलाव भी है जरूरी

मोटापा रोकने के लिए नई दवाएं 'चमत्कारी इलाज’ नहीं, वेट लॉस के लिए जीवनशैली में बदलाव भी है जरूरी

मोटापा रोकने के लिए नई दवाएं 'चमत्कारी इलाज’ नहीं, वेट लॉस के लिए जीवनशैली में बदलाव भी है जरूरी


मोटापा 21वीं सदी की एक बड़ी चुनौती है, जो विश्व स्तर पर एक अरब से ज्यादा लोगों को प्रभावित करता है। 1990 से 2022 के बीच इसके मामले दोगुने हो गए हैं। हालांकि, ऐसे में कई लोग मोटापे की दवा को चमत्कारी इलाज मान बैठे हैं। लेकिन एक्सपर्ट्स का कुछ और ही कहना है। आइए जानें इस बारे में विशेषज्ञ क्या कहते हैं।




सिर्फ दवाओं से कम किया जा सकता है मोटापा? (Picture Courtesy: Freepik)

 इक्कीसवीं सदी में मोटापा सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनकर उभरा है। यह एक दीर्घकालिक रोग है जो शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से कई जटिलताएं पैदा करता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 1990 से 2022 के बीच मोटापे का वैश्विक प्रसार दोगुना हो गया और अब यह दुनिया भर में 88 करोड़ वयस्क और 16 करोड़ बच्चों सहित एक अरब से अधिक लोगों को प्रभावित कर रहा है।


हाल में विकसित नई दवाएं ग्लूकागन लाइक पेप्टाइड 1 (जीएलपी - 1) एनालाग्स- चिकित्सकों के लिए नई उम्मीदें लेकर आई हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि केवल इन दवाओं के भरोसे मोटापे पर काबू नहीं पाया जा सकता। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अधिक वजन और मोटापा शरीर में असामान्य या अत्यधिक वसा संचय है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।

25 से अधिक बाडी मास इंडेक्स (बीएमआई) को अधिक वजन और 30 से अधिक को मोटापा माना जाता है। अब तक मोटापे के इलाज में जीवनशैली सुधार, संतुलित आहार, शारीरिक गतिविधि, मनोवैज्ञानिक सहयोग और जटिलताओं की रोकथाम मुख्य उपाय रहे हैं। गंभीर मामलों में बेरिएट्रिक सर्जरी भी विकल्प रही है।




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मोटापे की ये दवाएं हैं कारगर

मोटापे की पुरानी दवाओं जैसे डेक्सफेनफ्लुरामीन (आइसोमेराइड) और बेनफ्लुओरेक्स (मेडिएटर) को हृदय और फेफड़ों पर गंभीर दुष्प्रभावों के कारण बाजार से हटा लिया गया था। अब चिकित्सकों के पास नई श्रेणी की दवाएं हैं जीएलपी - 1 एनालाग्स, जो इंसुलिन स्राव को बढ़ाकर ब्लड शुगर नियंत्रण में मदद करती हैं, भूख कम करती हैं और पेट खाली होने कौ धीमा करती हैं।


इनमें लिराग्लूटाइड (ब्रांड नाम सैक्सेंडा, विक्टोजा), सेमाग्लूटाइड (वेगोवी, ओजेम्पिक) और टिरजेपाटाइड (माउंजारो) शामिल हैं। हफ्ते में एक बार इंजेक्शन के रूप में दी जाने वाली ये दवाएं टाइप-2 डायबिटीज के इलाज में पहले से उपयोग की जाती हैं। कई बड़े क्लिनिकल परीक्षणों में पाया गया कि जब इन दवाओं का उपयोग नियंत्रित आहार और शारीरिक गतिविधि के साथ किया गया, तो वजन में उल्लेखनीय कमी आई। साथ ही हृदय और मेटाबोलिज्म संबंधी मानकों में भी सुधार देखा गया।

कई रासायनिक पदार्थों को मोटापा बढ़ाने वाला माना गया

शोध से स्पष्ट है कि मोटापा केवल कैलोरी सेवन और खर्च के असंतुलन का परिणाम नहीं है। इसके पीछे आनुवंशिक, हार्मोनल, औषधीय, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कारण भी होते हैं। पर्यावरण में मौजूद कई रासायनिक पदार्थों को 'ओबेसोर्जेनिक' यानी मोटापा बढ़ाने वाला माना गया है, जो हार्मोन संतुलन बिगाड़ सकते हैं, आंतों के सूक्ष्मजीव तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं और जीन स्तर पर बदलाव ला सकते हैं। कई बार इन प्रभावों के परिणाम वर्षों बाद या अगली पीढ़ियों में दिखाई देते हैं।

मोटापे को पूरी तरह से 'ठीक' नहीं कर सकतीं ये दवाएं

अध्ययनों के अनुसार, जीएलपी- 1 एनालाग्स मोटापे को 'ठीक' नहीं कर सकते, वे केवल वजन घटाने में सहायक हैं। उदाहरण के लिए, एसटीईपी3 अध्ययन में सेमाग्लूटाइड लेने वाले प्रतिभागियों का वजन 68 सप्ताह में औसतन 15 प्रतिशत कम हुआ, जबकि प्लेसीबो समूह में यह केवल पांच प्रतिशत था।


हालांकि यह सुधार महत्वपूर्ण है, फिर भी मरीज मोटापे की श्रेणी में बने रहते हैं। साथ ही, लंबे समय तक उपचार जारी रखना और व दुष्प्रभाव (जैसे मांसपेशियों में कमी या वजन वापस बढ़ना) चिंताएं हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जीएलपी - 1 दवाएं केवल रोग विकसित होने के बाद इस्तेमाल की जाती हैं यानी यह उपचारात्मक दृष्टिकोण है, न कि निवारक।
प्रदूषण के कारण अगर वॉक छूट गई है, तो सिर्फ 10 मिनट की ये 5 आदतें रखेंगी आपको फिट

प्रदूषण के कारण अगर वॉक छूट गई है, तो सिर्फ 10 मिनट की ये 5 आदतें रखेंगी आपको फिट

प्रदूषण के कारण अगर वॉक छूट गई है, तो सिर्फ 10 मिनट की ये 5 आदतें रखेंगी आपको फिट



अगर आप रोजाना मॉर्निंग या इवनिंग वॉक के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं, तो निराश होने की जरूरत नहीं। कुछ आसान आदतों को अपनाकर भी आप फिट और एक्टिव रह सकते हैं। जैसे दिनभर में थोड़ा-थोड़ा चलना, सीढ़ियों का इस्तेमाल करना, फोन पर बात करते समय टहलना या घरेलू काम खुद करना। खुद से होने वाली थोड़ी सजगता से भी हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाई जा सकती है।




वॉक नहीं कर पा रहे हैं? ये आसान तरीके रखेंगे आपको फिट (Picture Credit-


 आजकल हवा का स्तर लगातार खराब हो रहा है। तेजी से खराब हो रही हवा सेहत पर बुरा असर डाल सकती है। ऐसे में डॉक्टर भी लोगों को घरों के अंदर रहने की सलाह दे रहे हैं। इसकी वजह से नियमित मॉर्निंग या इवनिंग वॉक करना मुश्किल हो रहा है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप फिट और एक्टिव नहीं रह सकते।


कुछ स्मार्ट और आसान आदतों को अपनाकर आप अपनी फिजिकल एक्टिविटी को बढ़ा सकते हैं और वॉक न कर पाने की कमी को काफी हद तक पूरा कर सकते हैं। आइए जानें ऐसी कुछ सरल लेकिन असरदार आदतों के बारे में, जो बिना वॉक के भी आपको फिट और एनर्जेटिक बनाए रखेंगी।


लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करें

ऑफिस या अपार्टमेंट में लिफ्ट की बजाय सीढ़ियां चढ़ें। ये आपकी टांगों की अच्छी एक्सरसाइज है और कैलोरी बर्न करने में मदद करती है।
हर घंटे थोड़ा चलें

अगर आप ऑफिस या घर पर लंबे समय तक बैठे रहते हैं, तो हर घंटे में कम से कम 5 मिनट चलने की आदत डालें। इससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है।
फोन पर बात करते समय चलें

फोन पर बात करते समय कुर्सी पर बैठने की बजाय टहलने की आदत डालें। इससे बिना एक्स्ट्रा समय दिए भी एक्टिव रह सकते हैं।
घरेलू कामों को खुद करें

झाड़ू-पोंछा, बर्तन धोना, कपड़े सुखाना जैसे काम खुद करने से शरीर की अच्छी एक्सरसाइज होती है।
स्क्वैट्स और स्ट्रेचिंग को दिनचर्या में शामिल करें

सुबह उठने के बाद या शाम को कुछ मिनट के लिए स्क्वैट्स और स्ट्रेचिंग करें। ये मांसपेशियों को सक्रिय रखती हैं।
खाने के बाद थोड़ी देर चलें

खाने के बाद 5-10 मिनट की वॉक पाचन के लिए अच्छी होती है और आलस्य दूर करती है।
बैठने का पॉश्च्र चेंज करें

लंबे समय तक एक ही पॉश्चर में न बैठें। पॉश्चर बदलते रहें जिससे रीढ़ और जोड़ों पर दबाव न पड़े।
ज्यादा पानी पिएं

पानी ज्यादा पीने से आपको बार-बार वॉशरूम जाना पड़ेगा, जिससे चलने का मौका मिलेगा और शरीर डिटॉक्स भी होगा।
टीवी या मोबाइल देखते समय एक्टिव रहें

टीवी देखते समय स्ट्रेचिंग या जगह में ही हल्की चाल से चल सकते हैं।
वीकेंड पर एक्टिविटीज प्लान करें

वीकेंड में हाइकिंग, डांसिंग, गार्डनिंग या साइकलिंग जैसी एक्टिविटीज प्लान करें जिससे शरीर की एक्सरसाइज हो।

इन आदतों को अपनाकर आप मॉर्निंग या इवनिंग वॉक के बिना भी एक्टिव, हेल्दी और एनर्जेटिक बने रह सकते हैं। बस जरूरत है थोड़े से डिसिप्लीन और स्मार्ट प्लानिंग की।
स्ट्रेस कम करने में काफी मददगार साबित हो सकती है आर्ट थेरेपी, बेचैन मन को मिलती है शांति

स्ट्रेस कम करने में काफी मददगार साबित हो सकती है आर्ट थेरेपी, बेचैन मन को मिलती है शांति

स्ट्रेस कम करने में काफी मददगार साबित हो सकती है आर्ट थेरेपी, बेचैन मन को मिलती है शांति



क्या आप जानते हैं आर्ट भी आपके दिमाग को शांत करने और भावनाओं को जाहिर करने में मदद कर सकती है? जी हां, इसे आर्ट थेरेपी (Art Therapy) कहते हैं, जो स्ट्रेस और एंग्जायटी से राहत दिलाने में काफी मदद करती है। आज की जिंदगी में जहां तनाव हमारा साथी बन चुका है, आर्ट थेरेपी काफी कारगर साबित हो सकती है।




माइंड को शांत करने में मदद करती है आर्ट (Picture Courtesy: Freepik)


 तेजी से भागती इस जिंदगी में स्ट्रेस लगभग हर किसी की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। कुछ लोग इसे मैनेज करने के लिए मेडिटेशन या योग का सहारा लेते हैं, तो कुछ लोग अपनी क्रिएटिविटी में सुकून ढूंढते हैं। बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा भी उन्हीं में से एक हैं, जिनके लिए पेंटिंग सिर्फ एक शौक नहीं, बल्कि एक तरह की थेरेपी (Art Therapy) है।


जी हां, एक इंटरव्यू में सोनाक्षी ने बताया कि जब भी वह उदास होती थीं, तो पेंटिंग करने लगती थीं। पेंटिंग करने से उनका दिमाग पूरी तरह शांत हो जाता था (Art Therapy Benefits)। उन्हें ऐसा लगता था जैसे मैं किसी और दुनिया में पहुंच गई हूं। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि अपने पति से मिलने के बाद उन्होंने पेंटिंग करना छोड़ दिया, लेकिन उनके पति जहीर इकबाल उन्हें बार-बार याद दिलाते हैं कि उन्हें फिर से ब्रश उठाना चाहिए, क्योंकि यही उनकी असली थेरेपी है।


क्या है आर्ट थेरेपी?

आर्ट थेरेपी एक ऐसी थेरेप्यूटिक प्रोसेस है, जिसमें कला का इस्तेमाल भावनाओं को जाहिर करने और समझने के लिए किया जाता है। यह केवल कलाकारों के लिए नहीं होती। यहां फोकस आर्ट की परफेक्शन पर नहीं, बल्कि उसे बनाने की प्रक्रिया पर होता है। यानी चाहे आप रंगों से खेलें या कुछ लिखें। इसका मकसद मन के बोझ को हल्का करना होता है।



आर्ट थेरेपी स्ट्रेस कम करने में कैसे मदद करती है?

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार, आर्ट थेरेपी शरीर और मन के बीच बैलेंस बनाकर तनाव को कम करने में मदद करती है। ट्रेडिशनल “टॉक थेरेपी” की तरह इसमें शब्दों पर नहीं, बल्कि भावनाओं की अभिव्यक्ति पर जोर दिया जाता है। जब कोई व्यक्ति आर्ट बनाता है, तो उसका ध्यान अपनी चिंताओं से हटकर उस आर्ट पर फोकस होता है, जिससे मानसिक शांति मिलती है।


कला के जरिए से व्यक्ति अपने भीतर के इमोशन्स को बाहर लाता है, जिन्हें शब्दों में कहना मुश्किल होता है। रंगों, धुनों या कहानियों के जरिए वह अपने मन की गहराइयों में झांकता है और यही प्रक्रिया तनाव को धीरे-धीरे कम करती है। यह सेल्फ अवेयरनेस बढ़ाती है, आत्मविश्वास मजबूत करती है और मेंटल बैलेंस को बेहतर बनाती है।

मन को सुकून देने वाली प्रक्रिया

कई अध्ययनों में पाया गया है कि आर्ट थेरेपी न केवल मूड सुधारती है, बल्कि नींद, कॉन्सनट्रेशन और इमोशनल बैलेंस बनाने में भी मदद करती है। जब व्यक्ति अपनी क्रिएटिविटी से जुड़ता है, तो उसके दिमाग में डोपामाइन जैसे “फील-गुड” हार्मोन रिलीज होते हैं, जो तनाव और उदासी को कम करते हैं।
सिर्फ 10 मिनट में तैयार होगा नाश्ता, सुबह की भागदौड़ में खाएं 5 सुपर-हेल्दी डिशेज; बनी रहेगी एनर्जी

सिर्फ 10 मिनट में तैयार होगा नाश्ता, सुबह की भागदौड़ में खाएं 5 सुपर-हेल्दी डिशेज; बनी रहेगी एनर्जी

सिर्फ 10 मिनट में तैयार होगा नाश्ता, सुबह की भागदौड़ में खाएं 5 सुपर-हेल्दी डिशेज; बनी रहेगी एनर्जी

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में पौष्टिक भोजन बनाना मुश्किल है। सब्जियों में फाइबर और विटामिन्स होते हैं, इसलिए उन्हें डाइट में शामिल करना जरूरी है। यहां कुछ ऐसी रेसिपीज हैं जो 15 मिनट में बन सकती हैं, जैसे मिक्स वेज स्टिर फ्राई, बेसन चीला और मिक्स वेज उपमा। ये डिशेज स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहतमंद भी हैं और झटपट तैयार हो जाती हैं।




15 मिनट में बनाएं स्वादिष्ट और सेहतमंद व्यंजन (Picture Credit- AI Generated)

आज की तेज रफ्तार जिंदगी में अक्सर लोगों के पास इतना समय नहीं होता कि वे लंबा-चौड़ा खाना बना सकें, लेकिन सेहत के लिए पौष्टिक और घर का बना खाना जरूरी होता है। खासतौर पर सब्जियों को अपने आहार में शामिल करना बेहद आवश्यक है, क्योंकि इनमें फाइबर, विटामिन्स, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर होते हैं।


ऐसे में जरूरत है ऐसी रेसिपीज की जो स्वादिष्ट भी हों, पौष्टिक भी और जल्दी भी बन जाएं। यहां कुछ ऐसी ही सब्जियों से भरपूर डिशेज, जो आप 15 मिनट या उससे भी कम समय में तैयार कर सकती हैं कि जानकारी दी गई है। आइए जानते हैं इनके बारे में


मिक्स वेज स्टिर फ्राई

एक नॉन-स्टिक पैन में ऑलिव ऑयल गरम करें, उसमें बारीक कटी गाजर, शिमला मिर्च, बेबी कॉर्न, ब्रोकोली और प्याज डालें। हाई फ्लेम पर 5–7 मिनट तक भूनें। सोया सॉस, नमक और काली मिर्च डालें। हेल्दी और क्रंची मिक्स वेज रेडी है।

बेसन वेज चीला



बेसन में कटी हुई प्याज, टमाटर, हरी मिर्च और पालक मिलाएं। थोड़ा पानी डालकर घोल बनाएं। तवे पर थोड़ा तेल लगाकर चीला सेंक लें। टेस्टी और हेल्दी ब्रेकफास्ट तैयार।
मिक्स वेज उपमा

सूजी को ड्राय रोस्ट कर लें। प्याज, गाजर, मटर, टमाटर के साथ हल्का सा भूनें। मसाले डालें और फिर पानी मिलाकर पकाएं। यह फाइबर और पोषण से भरपूर झटपट डिश है।
पालक टोफू भुर्जी



टोफू को मैश करें और पालक को बारीक काट लें। लहसुन-अदरक के साथ दोनों को तेल में हल्के मसालों के साथ पकाएं। 10 मिनट में तैयार होने वाली प्रोटीन रिच डिश
शिमला मिर्च-टमाटर की भुजिया

तेल गरम करके उसमें शिमला मिर्च और टमाटर डालें। हल्का नमक, लाल मिर्च और हल्दी मिलाएं। 8–10 मिनट में झटपट तैयार होने वाली सब्जी।
मूंग दाल वेज खिचड़ी



पहले से भीगी मूंग दाल और चावल में कटे आलू, गाजर और मटर डालें। थोड़ा नमक और हल्दी मिलाकर कुकर में 2 सीटी लगाएं।टेस्टी और हेल्दी खिचड़ी तैयार है।
वेज टोस्ट या सैंडविच

उबली सब्जियों का मसाला (आलू, गाजर, मटर) बनाकर ब्रेड पर फैलाएं। तवे या टोस्टर पर सेकें। चाय के साथ या बच्चों के टिफिन के लिए बेहतरीन ऑप्शन है।



इन डिशेज को आप सुबह के नाश्ते, लंच या हल्के डिनर के तौर पर भी ले सकती हैं। ये समय की बचत के साथ-साथ आपकी सेहत का भी ध्यान रखती हैं।
चूहों के सेल्स की मदद से अब लैब में उगाए जा रहे हैं असली दांत, लंदन में विकसित हुई नई तकनीक

चूहों के सेल्स की मदद से अब लैब में उगाए जा रहे हैं असली दांत, लंदन में विकसित हुई नई तकनीक

चूहों के सेल्स की मदद से अब लैब में उगाए जा रहे हैं असली दांत, लंदन में विकसित हुई नई तकनीक



किंग्स कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों ने लैब में असली दांत (Lab Grown Tooth) उगाने में सफलता हासिल की है। वहां की टीम ने एक खास हाइड्रोजेल विकसित किया है, जिसमें दांत जैसी संरचना तैयार की गई है। यह तकनीक दांतों के इलाज में क्रांति ला सकती है, जिससे मरीजों के अपने सेल्स से प्राकृतिक दांत उगाए जा सकेंगे।





लैब में उगाया जाएगा असली दांत (Picture Courtesy: Freepik)


 दांतों की समस्याएं आज दुनिया भर में आम हो चुकी हैं। उम्र बढ़ने, खराब खानपान या किसी चोट की वजह से दांतों का टूटना या गिरना कोई नई बात नहीं। फिलहाल ऐसे मामलों में दांत निकलवाकर इम्प्लांट लगवाना ही एकमात्र समाधान माना जाता है, लेकिन यह प्रक्रिया न केवल लंबी और महंगी होती है बल्कि दर्दनाक भी।


हालांकि, अब इस क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने एक ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जो डेंटल साइंस की तस्वीर ही बदल सकती है। जी हां, अब लैब में असली दांत (Lab Grown Teeth) उगाए जा रहे हैं।
असली दांत किया लैब में तैयार

ब्रिटेन के किंग्स कॉलेज लंदन की प्रोफेसर एना एंजेलोवा वोलपोनी और उनकी टीम पिछले दो दशकों से इस दिशा में शोध कर रही है। हाल ही में उनकी टीम ने एक नई स्टडी में अहम प्रगति की है। इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने एक खास हाइड्रोजेल विकसित किया है जो मुंह के अंदर दांत बनने के प्राकृतिक माहौल जैसा काम करता है। इसी हाइड्रोजेल में दांत जैसी संरचना सफलतापूर्वक तैयार की गई। यह हाइड्रोजेल इम्पीरियल कॉलेज लंदन के साथ मिलकर तैयार किया गया है।




(AI Generated Image)
इससे पहले भी हुआ है ऐसा परी क्षण?

यह कोई पहली बार नहीं है जब वोलपोनी की टीम ने ऐसा प्रयोग किया हो। साल 2013 में भी उन्होंने इंसानी मसूड़ों की कोशिकाओं और चूहे के भ्रूण से ली गई दांत कोशिकाओं को मिलाकर एक जैविक दांत उगाने में सफलता पाई थी। नई स्टडी उस रिसर्च का ही अगला कदम है।

कैसे तैयार किया जाता है लैब में दांत?

प्रक्रिया की शुरुआत चूहे के भ्रूण से सेल्स लेकर की जाती है। इन सेल्स को इंसानी मसूड़ों के सेल्स के साथ मिलाया जाता है, जिससे एक “सेल पेलेट” बनता है। इस पेलेट को तैयार किए गए हाइड्रोजेल में इंजेक्ट किया जाता है और लगभग आठ दिनों तक उसे बढ़ने दिया जाता है। इस दौरान हाइड्रोजेल के अंदर धीरे-धीरे दांत जैसी संरचना बनने लगती है। पहले किए गए प्रयोगों में इस संरचना को चूहे के शरीर में ट्रांसप्लांट किया गया, जहां यह जड़ और इनैमल सहित एक असली दांत में विकसित हो गई।

भविष्य में कैसे बदलेगा डेंटल ट्रीटमेंट?

अगर वैज्ञानिक इस तकनीक को इंसानों पर सफलतापूर्वक लागू करने में कामयाब हो जाते हैं, तो दांतों के इलाज का तरीका हमेशा के लिए बदल सकता है। किसी मरीज की अपने सेल्स से असली दांत उगाया जाएगा, जिससे रिजेक्शन या इंफेक्शन का खतरा लगभग खत्म हो जाएगा। साथ ही यह दांत बिल्कुल असली की तरह महसूस होगा।


जहां मौजूदा इम्प्लांट्स में दांत जबड़े की हड्डी से आर्टिफिशियल रूप से जुड़ते हैं, वहीं जैविक दांत खुद हड्डी से प्राकृतिक तरीके से जुड़ जाएंगे। इससे वे ज्यादा मजबूत, टिकाऊ और शरीर के लिए कम्पैटिबल होंगे।
वायु प्रदूषण पहुंचा रहा है आंखों को नुकसान, सुरक्षित रहने के लिए अपनाएं ये 7 आसान तरीके

वायु प्रदूषण पहुंचा रहा है आंखों को नुकसान, सुरक्षित रहने के लिए अपनाएं ये 7 आसान तरीके

वायु प्रदूषण पहुंचा रहा है आंखों को नुकसान, सुरक्षित रहने के लिए अपनाएं ये 7 आसान तरीके


वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर सिर्फ हमारे फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि हमारी आंखों को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इसके कारण आंखों में जलन, खुजली, रेडनेस और इन्फेक्शन का खतरा (Side Effects of Air Pollution) रहता है। ऐसे में जरूरी है कि हम प्रदूषण की मार से अपनी आंखों को सुरक्षित रखें। आइए जानें प्रदूषण से आंखों को सुरक्षित रखने के तरीके।




प्रदूषण से आंखों को होता है नुकसान (Picture Courtesy: Freepik)

HIGHLIGHTS

वायु प्रदूषण के कारण आंखों को नुकसान पहुंचता है


इसके कारण आंखों में जलन और खुजली की समस्या हो सकती है


वायु प्रदूषण के कारण आंखों में इन्फेक्शन का रिस्क भी रहता है

 नई दिल्ली। आज के समय में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो हमारे स्वास्थ्य पर कई तरह से बुरा प्रभाव डाल रहा है। हमारी आंखें शरीर का सबसे सेंसिटिव हिस्सा है और प्रदूषण का सीधा असर उन पर पड़ता है। धूल, धुआं, और जहरीली गैसों के कारण आंखों में जलन, खुजली, रेडनेस, ड्राईनेस और एलर्जी जैसी समस्याएं (Air Pollution Side Effects on Eyes) आम हो गई हैं।


ऐसे में आंखों की सुरक्षा बेहद जरूरी है। आइए जानें वायु प्रदूषण से अपनी आंखों को सुरक्षित (Tips to Keep Eyes Safe) रखने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
वायु प्रदूषण से कैसे बचाएं आंखें?धूप के चश्मे का इस्तेमाल- बाहर निकलते समय हमेशा धूप का चश्मा पहनें। यह न सिर्फ सूरज की हानिकारक किरणों से बचाता है, बल्कि धूल और धुएं के सीधे संपर्क में आने से भी रोकता है। एंटी-ग्लेर और यूवी प्रोटेक्शन वाले चश्मे सबसे अच्छे रहते हैं।
आंखों को धोएं- दिन भर के बाद आंखों को ठंडे और साफ पानी से जरूर धोएं। इससे आंखों में जमे प्रदूषण के कण निकल जाते हैं और आंखें साफ रहती हैं। हालांकि, आंखों को रगड़ें नहीं।
कॉन्टेक्ट लेंस से सावधानी- प्रदूषण भरे माहौल में कॉन्टेक्ट लेंस पहनने से बचें, क्योंकि इन पर धूल के कण चिपक सकते हैं और आंखों में इन्फेक्शन पैदा कर सकते हैं। अगर पहनना जरूरी हो, तो साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें और चश्मे के ऊपर से लगा सकने वाले प्रोटेक्टिव गॉगल्स का इस्तेमाल करें।
आंखों को मलने से बचें- आंखों में खुजली या जलन होने पर उन्हें मलने की गलती न करें। इससे प्रदूषण के कण आंखों के अंदर घुसकर नुकसान पहुंचा सकते हैं। बेहतर है कि आंखों को साफ पानी से धो लें या डॉक्टर से सलाह लेकर आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल करें।
स्वच्छता का ध्यान रखें- आंखों को छूने से पहले हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोएं। गंदे हाथों से आंखों को छूने पर इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
हाइड्रेशन जरूरी- शरीर में पानी की कमी आंखों की ड्राईनेस का कारण बन सकती है। इसलिए भरपूर मात्रा में पानी पिएं और आंखों को नम रखने के लिए आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल करें, लेकिन डॉक्टर की सलाह के बाद।
घर के अंदर की हवा शुद्ध रखें- घर के अंदर की हवा को शुद्ध रखने के लिए एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें। इंडोर प्लांट्स लगाएं, जो हवा को शुद्ध करते हैं और स्मोकिंग से परहेज करें।
हेल्दी डाइट- विटामिन-ए, सी और ई से भरपूर डाइट लें। हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर, संतरे और नट्स आंखों की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं।

मैग्नीशियम की कमी? अब सप्लीमेंट्स पर क्यों बर्बाद करें पैसा, जब इन 10 फूड्स से मिलेगा डबल पावर

मैग्नीशियम की कमी? अब सप्लीमेंट्स पर क्यों बर्बाद करें पैसा, जब इन 10 फूड्स से मिलेगा डबल पावर

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मैग्नीशियम शरीर में एनर्जी प्रॉडक्शन, मसल्स एक्टिविटी और हड्डियों की मजबूती के लिए एक बेहद जरूरी मिनरल है। इसकी कमी को पूरा करने के लिए अक्सर सप्लीमेंट्स लिए जाते हैं, लेकिन कुछ नेचुरल फूड्स जैसे कद्दू के बीज, बादाम, पालक, काजू, डार्क चॉकलेट, ब्लैक बीन्स, एवोकाडो, ब्राउन राइस, दही और केला ऐसे सोर्स हैं जो न केवल भरपूर मैग्नीशियम प्रदान करते हैं, बल्कि शरीर द्वारा बेहतर तरीके से अवशोषित भी किए जाते हैं, जिससे पूरे शरीर को लाभ मिलता है।




मैग्नीशियम के बेहतरीन स्रोत: प्राकृतिक खाद्य पदार्थ

मैग्नीशियम एक आवश्यक मिनरल है जो शरीर की मांसपेशियों, नसों, हड्डियों और दिल की सेहत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मैग्नीशियम ऊर्जा उत्पादन, ब्लड शुगर कंट्रोल और प्रोटीन संश्लेषण जैसी 300 से अधिक बॉडी फंक्शन्स में भाग लेता है। लेकिन प्रेजेंट टाइम के लाइफ स्टाइल में प्रोसेस्ड फूड्स की अधिकता और पोषक तत्वों की कमी के कारण बहुत से लोगों में मैग्नीशियम की कमी देखने को मिलती है।


अक्सर लोग इस कमी को दूर करने के लिए सप्लीमेंट्स का सहारा लेते हैं, लेकिन शोध बताते हैं कि नेचुरल स्रोतों से मिला मैग्नीशियम शरीर द्वारा बेहतर तरीके से एब्जॉर्ब होता है और उसके कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं होते।तो आइए जानते हैं ऐसे कुछ ऐसे ही नेचुरल फूड्स के बारे में जो मैग्नीशियम का बेहतरीन स्रोत हैं


कद्दू के बीज

सिर्फ 30 ग्राम कद्दू के बीजों में लगभग 150 मिलीग्राम मैग्नीशियम पाया जाता है। यह हार्ट और बोन हेल्थ के लिए अत्यंत लाभकारी है।
बादाम

28 ग्राम बादाम (लगभग एक मुट्ठी) में करीब 76 मिलीग्राम मैग्नीशियम होता है। यह ब्रेन और नर्व हेल्थ को भी सपोर्ट करता है।
पालक

एक कप पकी हुई पालक में लगभग 157 मिलीग्राम मैग्नीशियम होता है। साथ ही इसमें आयरन और फाइबर भी होता है, जो इसे सुपरफूड बनाता है।
काजू

एक औंस (28 ग्राम) काजू से 82 मिलीग्राम मैग्नीशियम मिलता है। यह नर्व सिस्टम को शांत रखने में मदद करता है।
डार्क चॉकलेट

कोको युक्त डार्क चॉकलेट (70% या उससे अधिक) में करीब 64 मिलीग्राम मैग्नीशियम प्रति टुकड़ा होता है।
ब्लैक बीन्स

एक कप ब्लैक बीन्स में लगभग 120 मिलीग्राम मैग्नीशियम होता है। यह डाइजेशन को सुधारने में मदद करता है।
एवोकाडो

एक मीडियम साइज के आकार का एवोकाडो लगभग 58 मिलीग्राम मैग्नीशियम देता है, साथ ही यह हेल्दी फैट्स का भी अच्छा स्रोत है।
ब्राउन राइस

साबुत अनाजों में ब्राउन राइस एक बेहतरीन विकल्प है। एक कप पके हुए ब्राउन राइस में 84 मिलीग्राम मैग्नीशियम होता है।
दही

दही न सिर्फ प्रोबायोटिक होता है, बल्कि एक कप दही से 30-40 मिलीग्राम मैग्नीशियम भी मिलता है।
केला

एक मीडियम साइज केला 32 मिलीग्राम मैग्नीशियम देता है और पोटेशियम का भी अच्छा स्रोत है।

अगर आप मैग्नीशियम की कमी से जूझ रहे हैं,तो सप्लीमेंट्स लेने से पहले इन नेचुरल फूड्स को अपनी डाइट में शामिल करें।
फिट रहने के लिए रोज करें ये 9 लो इंटेंसिटी वर्कआउट, आसानी से कम कर सकते हैं रूटीन में शामिल

फिट रहने के लिए रोज करें ये 9 लो इंटेंसिटी वर्कआउट, आसानी से कम कर सकते हैं रूटीन में शामिल

फिट रहने के लिए रोज करें ये 9 लो इंटेंसिटी वर्कआउट, आसानी से कम कर सकते हैं रूटीन में शामिल


क्या आपके लिए भी रोज एक्सरसाइज करने के लिए समय निकालना मुश्किल हो जाता है? अगर हां, तो चिंता मत करिए। हम आपको कुछ ऐसी आसान एक्सरसाइज (Easy Home Workouts) के बारे में बताने वाले हैं, जो लो इंटेंसिटी हैं और कम समय में भी की जा सकती हैं। आइए जानें इन एक्सरसाइज के बारे में।



एक्सरसाइज करने के लिए नहीं मिल पाता है समय? (Picture Courtesy: Freepik)

 आज की व्यस्त जीवनशैली में फिट रहना और भी जरूरी हो गया है। हालांकि, ऐसी लाइफस्टाइल के कारण ही एक्सरसाइज करने का समय नहीं मिल पाता है। अगर आपके पास भी जिम जाकर एक्सरसाइज (Exercise for Busy Lifestyle) करने का समय नहीं है या किसी हेल्थ कंडीशन के कारण आप हाई इंटेंसिटी वर्कआउट नहीं कर पाते हैं, तो घबराइए मत।


आप कम समय में घर पर भी कुछ आसान एक्सरसाइज (Low-Intensity Exercise at Home) कर सकते हैं, जो आपकी फिटनेस को बरकरार रखने में काफी मददगार साबित हो सकती हैं। ये एक्सरसाइज शरीर पर ज्यादा दबाव भी नहीं डालती है और हेल्दी रहने में मदद भी करती हैं। आइए जानें ऐसे ही लो इंटेंसिटी वाली कुछ एक्सरसाइज के बारे में जिन्हें आप अपने वर्कआउट रूटीन का हिस्सा बना सकते हैं।





(Picture Courtesy: Freepik)
फिट रहने के लिए लो इंटेंसिटी एक्सरसाइजवॉकिंग- दौड़ की जगह अगर आप रोजाना तेज चाल से चलें, तो ये दिल को स्वस्थ रखने, वेट लॉस करने और ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है। इसे सुबह या शाम किसी भी समय किया जा सकता है।
योग- योग न केवल शरीर की स्ट्रेचिंग और फ्लेक्सिबिलिटी को बढ़ाता है, बल्कि मेंटल स्ट्रेस भी कम करता है। ऐसे में 20-30 मिनट का योग काफी फायदेमंद साबित होगा।
साइकलिंग- यह एक लो इम्पैक्ट कार्डियो वर्कआउट है, जो घुटनों पर ज्यादा दबाव डाले बिना फिटनेस को बनाए रखता है। चाहे बाहर साइकल चलाएं या घर पर स्टेशनरी बाइक का उपयोग करें।
स्विमिंग- पानी में एक्सरसाइज करने से शरीर का भार कम हो जाता है और मांसपेशियां मजबूत होती हैं। यह पूरे शरीर का एक्सरसाइज है, खासतौर पर पीठ, बाज़ू और पैरों के लिए।
पिलाटेस- यह एक कोर-स्ट्रेंथनिंग एक्सरसाइज है, जो पीठ, पेट और हिप्स की मसल्स को टोन करती है। यह पोस्चर सुधारने और संतुलन बढ़ाने में मदद करता है।
सीढ़ियां चढ़ना- लिफ्ट की जगह सीढ़ियां चुनने से रोजमर्रा की दिनचर्या में ही वर्कआउट जुड़ जाता है। यह हड्डियों को मजबूती देता है और थाइज को टोन करता है।
ताई ची- धीमे और नियंत्रित मूवमेंट्स वाला यह वर्कआउट मानसिक शांति के साथ संतुलन और शरीर की स्थिरता बढ़ाने में मदद करता है।
स्ट्रेचिंग- हर 1-2 घंटे में थोड़ा स्ट्रेच करना, खासकर लंबे समय तक बैठने वालों के लिए, बहुत जरूरी है। यह मसल्स में फ्लेक्सिबिलिटी बनाए रखता है और दर्द को कम करता है।
लाइट डांस वर्कआउट- सॉफ्ट मूवमेंट्स वाला डांस, जैसे ज़ुम्बा मस्ती के साथ फिटनेस को बढ़ाता है। साथ में स्ट्रेस भी कम करता है।