राज्यपाल का पद गंभीर, संविधान के तहत काम करें', सुप्रीम कोर्ट की जज को आखिर क्यों कहनी पड़ी यह बात?

March 31, 2024

 राज्यपाल का पद गंभीर, संविधान के तहत काम करें', सुप्रीम कोर्ट की जज को आखिर क्यों कहनी पड़ी यह बात?


न्यायाधीश नागरत्ना ने कहा कि मुझे राज्यपाल कार्यालय से अपील करनी चाहिए कि यह एक संवैधानिक पद है। राज्यपालों को संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए जिससे इस प्रकार के मुकदमेबाजी अदालत में कम हों। राज्यपालों को किसी काम को करने या न करने के लिए कहना काफी शर्मनाक है। राज्यपालों को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने शनिवार को राज्यपालों को लेकर बड़ी बात कही है।


सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने शनिवार को राज्यपालों को लेकर बड़ी बात कही है। उन्होंने हैदराबाद के एनएएलएसएआर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि राज्यपालों को संविधान के अनुसार कार्य करना चाहिए।

न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने कहा कि हाल की प्रवृत्ति यह रही है कि किसी राज्य के राज्यपाल या तो विधेयकों को मंजूरी देने में चूक या उनके द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्यों के कारण मुकदमेबाजी का मुद्दा बन रहे हैं। किसी राज्य के राज्यपाल के कार्यों या चूक को संवैधानिक अदालतों के समक्ष विचारार्थ लाना संविधान के तहत एक स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है।

उन्होंने कहा कि हालांकि इसे राज्यपाल पद कहा जाता है, यह एक गंभीर संवैधानिक पद है और राज्यपालों को संविधान के अनुसार कार्य करना चाहिए, ताकि इस प्रकार की मुकदमेबाजी कम हो। राज्यपालों के लिए किसी कार्य को करने या न करने के लिए कहा जाना काफी शर्मनाक है। मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि उन्हें संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कहा जाए।

न्यायाधीश नागरत्ना की यह टिप्पणी ऐसे समय में महत्वपूर्ण है, जब पंजाब, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल की राज्य सरकारों ने विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति देने से संबंधित राज्यपाल के इनकार को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिकाएं दायर की हैं।

पिछले साल तेलंगाना राज्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को जल्द से जल्द बिल वापस करना होगा। पंजाब राज्य द्वारा दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने एक विस्तृत निर्णय दिया कि राज्यपाल सहमति दिए बिना किसी विधेयक पर बैठकर वीटो नहीं कर सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने बिलों पर कार्रवाई में देरी के लिए केरल और तमिलनाडु के राज्यपालों की भी आलोचना की है। न्यायालय ने एक बिंदु पर यहां तक ​​​​पूछा कि राज्यों द्वारा न्यायालयों में जाने के बाद ही राज्यपाल विधेयकों पर कार्रवाई क्यों करते हैं। पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने विधायक के पोनमुडी को फिर से मंत्री के रूप में शामिल करने से इनकार करने पर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि पर नाराजगी व्यक्त की थी, भले ही सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि को निलंबित कर दिया था।

संविधान सम्मेलन में उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उनके पास फ्लोर टेस्ट की घोषणा करने के लिए पर्याप्त सामाग्री ही नहीं थी। उन्होंने कहा कि किसी राज्य के राज्यपाल के कार्यों या चूक को अदालतों के समक्ष विचार के लिए लाना कानून के अनुसार स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है।

न्यायाधीश नागरत्ना ने कहा कि मुझे राज्यपाल कार्यालय से अपील करनी चाहिए कि यह एक संवैधानिक पद है। राज्यपालों को संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए, जिससे इस प्रकार के मुकदमेबाजी अदालत में कम हों। राज्यपालों को किसी काम को करने या न करने के लिए कहना काफी शर्मनाक है। राज्यपालों को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए।

इसके अलावा, न्यायाधीश नागरत्ना ने नोटबंदी पर असहमति जताने का कारण भी बताया। उन्होंने कहा कि मैंने केंद्र सरकार के इस कदम के खिलाफ असहमति जताई, क्योंकि मुझे लगा प्रतिबंध से भारत सरकार ने कथित तौर पर काले धन के खिलाफ कार्रवाई की। सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया, जो कुल मुद्रा का 86 प्रतिशत था। 98 प्रतिशत पुराने नोट बैंकों में वापस भी आ गए। सारा बेशुमार पैसा वापस बैंक में आ गया। यह बेहिसाब नकदी के हिसाब-किताब का अच्छा तरीका है। लेकिन सरकार के इस फैसले से आम आदमी बहुत अधिक परेशान हो गया, जिस वजह से मुझे असहमति जतानी पड़ी।

Share this

Related Posts

Previous
Next Post »