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आज राजेन्द्र कुमार उर्फ जुबली कुमार की 24वी पुण्यतिथि है...



 भोपाल / आज सदाबहार अभिनेता राजेन्द्र कुमार उर्फ जुबली कुमार की 24वी पुण्यतिथि है आज ही के दिन यानी 12 जुलाई 1999 को राजेन्द्र कुमार का कैंसर की बीमारी से निधन हो गया था।

राजेन्द्र कुमार का जन्म 24 जुलाई 1929 को हुआ था। अभिनेता बनने की चाह उनको मुम्बई ले आई जहाँ राजेन्द्र कुमार को 1950 में पहली फ़िल्म मिली जोगन, इस फ़िल्म के मुख्य कलाकर नरगिस और दिलीप कुमार थे। इस फ़िल्म में किसी ने भी राजेन्द्र कुमार को नोटिस नही किया और फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं करते रहे। इसके बाद मेहबूब खान की कालजयी फ़िल्म मदर-इंडिया आई जो भारतीय फिल्म जगत में मील का पत्थर साबित हुई इस फ़िल्म में राजेंद्र कुमार ने नरगिस के बेटे की भूमिका निभाई थी जो लोगो को बहुत पसंद आई थी इस महान फ़िल्म के बाद राजेन्द्र कुमार को नोटिस किया जाने लगा और इसके 2 साल बाद 1959 में राजेंद्र कुमार की म्यूज़िकल फ़िल्म गूंज उठी शहनाई आई जो बॉक्स-ऑफिस पर सुपर हिट साबित हुई इस फ़िल्म के गानों ने मानो धूम मचा दी थी और यही से राजेन्द्र कुमार को अमर गायक मो. रफी साहब का साथ मिला और रफी साहब ने राजेन्द्र कुमार के लिए एक से बढ़कर एक गीत गाये। जो बहुत ही ज़्यादा चर्चित रहे। रफी साहब का स्टाइल और राजेंद्र कुमार का अभिनय गीत को अद्भुत बना देते थे। फ़िल्म गूंज उठी शहनाई के बाद राजेन्द्र कुमार को कई बड़े निर्माता-निर्देशक ने अपनी फिल्मों में बतौर अभिनेता कॉस्ट किया। जिनमे मुख्य रूप से धूल का फूल, आस का पंछी, आई मिलन की बेला, दिल एक मंदिर, मेरे मेहबूब, आप आए बहार आई, आरज़ू, सूरज, गहरा-दाग, अमन, ज़िन्दगी, पालकी, संगम, गोरा और काला, अंजाना, तांगेवाला, आदि सुपर-हिट फिल्में थी इन फिल्मों की कामयाबी ने राजेन्द्र कुमार को भारत के शीर्ष पंक्ति के अभिनेताओं में शुमार कर दिया था। 60 के दशक में राजेंद्र कुमार की हर फिल्म जुबली मनाती थी इसलिए फिल्मी दुनिया मे राजेन्द्र कुमार का नाम जुबली कुमार पड़ गया था फ़िल्म धूल का फूल, संगम, मेरे मेहबूब, और आरज़ू में राजेंद्र कुमार को फ़िल्म-फेयर अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था पर अफसोस राजेन्द्र कुमार फ़िल्म-फेयर अवार्ड कभी जीत नही पाए। 1969 में भारत सरकार ने राजेंद्र कुमार को पद्मश्री से सम्मानित किया था 70 के दशक में बॉलीबुड के पहले सुपर-स्टार राजेश खन्ना के आवागमन से राजेन्द्र कुमार के साथ अन्य स्थापित बड़े अभिनेताओं का स्टारडम हिल गया था इस दौरान राजेन्द्र कुमार को बतौर अभिनेता फिल्मे मिलना बंद हो गई तो राजेन्द्र कुमार ने चरित्र-अभिनेता के तौर पर अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की और में तुलसी तेरे आँगन की, साजन बिना सुहागन, साजन की सहेली, दो जासूस आदि चर्चित फिल्मो में अपने अभिनय की छाप छोड़ी। 1982 में अपने बेटे कुमार गौरव को लेकर लव-स्टोरी बनाई जो सुपरहिट साबित हुई इसके बाद महेश भट्ट को बतौर निर्देशक लेकर फ़िल्म नाम बनाई जो बॉक्स-ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई लेकिन इस फ़िल्म से कुमार गौरव को कोई फायदा नही हुआ और फ़िल्म का सारा क्रेडिट संजय दत्त ले उड़े। जो रिश्ते में कुमार गौरव के साले थे राजेन्द्र कुमार ने अपने बेटे को फिल्मों में स्थापित करने के लिए 1992 में एक और नाकाम कोशिश की थी 90 की दशक की सबसे सफल और चर्चित नायिका माधुरी दीक्षित को लेकर फ़िल्म फूल बनाई जो टिकट खिड़की पर औंधे मुँह गिरी। इसके बाद राजेन्द्र कुमार ने फिल्मो के निर्माण से तौबा कर ली और 1999 में कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी से राजेन्द्र कुमार उर्फ जुबली कुमार का निधन हो गया।

कंझावला-मर्डर केस में सुपर-स्टार शाहरुख खान की संस्था द-मीर फाउंडेशन ने की पीड़िता के परिवार की आर्थिक मदद...


 सुपर-स्टार शाहरुख खान की संस्था द-मीर फाउंडेशन ने कंझावला-मर्डर मामले में पीड़िता के परिवार वालो को आर्थिक मदद देकर परिवार के दुखों को बांटने की कोशिश की। किंग खान के नाम से मशहूर शाहरुख खान ने अपने पिता के नाम पर संस्था का नाम द-मीर फाउंडेशन रखा है और इस संस्था के तहत वो गरीब और पिछड़े वर्ग के लोगो की मदद करते रहते है शाहरुख खान ने पीड़िता के परिवार को कितनी राशि की मदद की है इसका खुलासा नही किया है।


गौरतलब है कि 1 जनवरी की रात एक गाड़ी से 20 वर्षीय अंजलि को 5 युवको ने कार से लगभग 15 किलोमीटर तक घसीटा था जिसकी वजह से अंजलि की मौत हो गई थी। दिल्ली पुलिस ने कार्यवाही करते हुए 5 युवको को गिरफ्तार किया था। पुलिस की जाँच में जब सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकाले तो उसमें दो युवक और संलिप्त पाए गए दिल्ली पुलिस ने दोनों में से एक युवक को फरार होने से पहले गिरफ्तार कर लिया था तथा दूसरे युवक ने खुद अपने आपको दिल्ली पुलिस के हवाले कर दिया था इस तरह इस दिल दहलाने वाले मर्डर में पुलिस ने 7 लोगो को गिरफ्तार कर आरोपी बनाया है।


कंझावला-मर्डर कांड में शाहरुख खान से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मृतका के परिवार को 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया था वहीं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मृतका के परिवार के किसी एक शख्स को सरकारी नोकरी देने की बात कही है।

रहें न रहें हम महका करेंगे बनके कली बनके सबा बागे-वफ़ा में, अलविदा लता मंगेशकर को विनम्र-श्रद्धांजलि...



 JKA 24न्यूज़ (जनजन का आसरा) भोपाल-मध्यप्रदेश.....

मुंबई@ स्वर-कोकिला, स्वर-सामग्री, सुरीली कोयल, आवाज़ की मलिका, सुरों की महारानी, भारत-रत्न और न जाने कितने नामो से प्रख्यात लता मंगेशकर आज हमारे बीच नही हैं। पिछले एक महीने से कोविड के चलते उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती किया गया था बाद में लताजी को निमोनिया हो गया था जिसकी वजह से उनकी हालत और ज़्यादा बिगड़ गई लताजी को वेंटिलेटर पर रखना पड़ा लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था 6 फरवरी 2022 की सुबह सुरों की महारानी लता मंगेशकर संगीत की दुनिया को हमेशा के लिए सूना करके इस दुनिया से चली गई और पीछे छोड़ गई अपनी यांदे और वो सदाबहार गीत जो लताजी की आवाज़ पाकर अमर हो गए।

लताजी का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की 5 संतानों में लताजी सबसे बड़ी थी आशा, उषा, मीना और हृदय नाथ मंगेशकर उनके छोटे भाई-बहन थे लताजी के पिता एक शास्त्रीय गायक थे गायकी का माहौल लताजी को घर से ही मिला था और बचपन मे पिता अपनी बिटिया को संगीत सिखाने लगे थे 13 साल की उम्र में लताजी पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर का 1942 में निधन हो गया जिससे लताजी के सामने आर्थिक कठिनाई आने लगी सब बहनों और भाई से बड़ी लताजी पर घर का खर्च चलाने की ज़िम्मेदारी आ गई और लताजी नाटकों और फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने लगी लताजी को अभिनय पसंद नही था लेकिन घर का खर्च चलाने के लिए लताजी को अभिनय करना पड़ा। लताजी की पहली पसंद गायन था और वो उसी में अपना कैरियर बनाना चाहती थी लताजी को सबसे पहले 1942 में एक मराठी गीत गाने का मौका मिला लेकिन उस गीत को फ़िल्म में नही रखा गया। लताजी के एक करीबी हैदर अली ने लताजी को फिल्मकार शशधर मुखर्जी से मिलवाया निर्देशक शशधर मुखर्जी ने जब लताजी की आवाज़ सुनी तो उन्होंने उनको ये कहते हुए रिजेक्ट कर दिया था की लताजी की आवाज़ बहुत पतली हैं लेकिन लताजी ने हार नही मानी और लगातार संघर्ष करती रही लताजी शुरू में नूरजहाँ के स्टाइल में गाती थी क्योंकि उस समय नूरजहाँ, शमशाद बेगम, सुरैया, ज़ोहरा बाई अम्बाले वाली आदि गायिकाओं की तूती बोलती थी और संगीतकार इन्ही गायिकाओं से गवाना पसंद करते थे लताजी समझ गई थी इनके स्टाइल से गाने पर कुछ गीत तो मिल जाएंगे लेकिन कैरियर लंबा नही चल पाएगा इसलिए लताजी ने अपना गाने का अंदाज़ स्थापित किया। और आखिर लताजी को वो गीत मिल ही गया जिस गीत को गाने के बाद लताजी ने फिर कभी पीछे मुड़कर नही देखा ये गीत था अशोक कुमार और मधुबाला अभिनीत फिल्म महल का जिसके बोल थे आएगा आने वाला, इस गीत ने सबका ध्यान लताजी की तरफ खींचा और लताजी को तमाम बड़े संगीतकारों ने नोटिस किया। 1949 में अभिनेता राज कपूर ने फ़िल्म बरसात का निर्माण किया इस फ़िल्म में मुख्य गायिका के तौर पर लताजी को चुना गया और फ़िल्म बरसात के सभी गीत लताजी ने गाए फ़िल्म बरसात अपने बेहतरीन गीतों की वजह से सुपरहिट साबित हुई और इसके बाद फिल्मी संगीत में लता मंगेशकर ने वो परचम लहराया जिसके बारे में सिर्फ सोचा जा सकता था उसको पाया नही जा सकता था चारो तरफ बरसात के गीतों ने धूम मचा दी थी इसके बाद बड़े-बड़े संगीतकार जैसे नोशाद, शंकर-जयकिशन, हुस्नलाल-भगतराम, वसंत देसाई, सज्जाद हुसैन, अनिल विश्वास, सलिल चौधरी, सचिनदेव बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी, मदनमोहन, रोशन, खय्याम, आरडी-बर्मन, रामलक्ष्मण, शिव-हरि जैसे संगीतकारों की पहली पसंद लताजी थी इनके साथ लताजी ने एक से बढ़कर एक सदाबहार और कालजयी गीत गाए। निर्देशक मेहबूब खान, गुरुदत्त, और यश चोपड़ा की अमूमन हर फिल्म में लताजी ने गीत गाए। इसके अलावा नए संगीतकारों जैसे अनु-मलिक, जतिन-ललित, आंनद राज आंनद, ऐ आर रहमान, आनद-मिलिंद जैसे संगीतकारों के साथ भी सुपरहिट गीत गाए।

लताजी के गाए गीतों से सजी कुछ यादगार फिल्मों में महल, मदर इंडिया, बरसात, अंदाज़, बैजू-बाबरा, देवदास, मधुमती, मुगले-आज़म, चोरी-चोरी, गाइड, अमर, आज़ाद, जिस देश मे गंगा बहती हैं, लीडर, गंगा-जमना, अभिमान, प्यार झुकता नही, एक दूजे के लिए, प्रेमरोग, राम तेरी गंगा मैली, हिना, मैने प्यार किया, हम आपके हैं कौन, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, चाँदनी, लम्हे, डर जैसी कई यादगार फिल्मों में सदाबहार गीत गाए। लताजी ने अपने समकालीन गायकों मो. रफी, मुकेश, किशोर कुमार, हेमंत कुमार, तलत महमूद, मन्नाडे के साथ ही नए गायकों जैसे मनहर उदास, यसुदास, भूपेंद्र, शब्बीर कुमार, मो. अज़ीज़, अनवर, अमित कुमार, उदित नारायण, कुमार शानू, एसपी बाला सुब्रमण्यम और सोनू निगम के साथ भी कई यादगार गीत गाए हैं।

लताजी को की चार बार फ़िल्म-फेयर पुरस्कार मिला हैं 1959 में फ़िल्म मधुमती के गीत आजा रे परदेसी के लिए पहला फ़िल्म-फेयर अवार्ड मिला था इसके बाद 1963 में फ़िल्म बीस साल बाद के गीत कही डीप जले कही दिल के लिए दूसरा, 1966 में फ़िल्म खानदान के गीत तुम्ही मेरे मंदिर तुम्ही मेरी पूजा के लिए तीसरा, और 1970 में आई फ़िल्म जीने की राह का गीत आप मुझे अच्छे लगने लगे है के लिए चौथा फ़िल्म-फेयर पुरस्कार मिला था इसी के साथ 1972 में आई फ़िल्म परी में गाए गीतों के लिए पहला राष्ट्रीय-पुरस्कर मिला था 1974 में आई फील कोर-कागज़ के गीत के लिए दूसरा राष्ट्रीय-पुरस्कार और 1990 में आई फ़िल्म लेकिन के गाए गीतों के लिए लताजी को तीसरा राष्ट्रीय-पुरस्कार मिला था इसके अलावा भारत सरकार ने लता जी को 1969 में पद्म-भूषण, 1989 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, 1999 में पदम्-विभूषण और 2001 में भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत-रत्न दिया था। लताजी ने महिला पार्श्वगायन में वही मुकाम और रुतबा हासिल किया हैं जो मकाम और रुतबा पुरुष पार्श्वगायन में मो.रफी को हासिल हुआ हैं फिल्मी-संगीत लताजी का हमेशा आभारी और ऋणी रहेगा और लताजी की कमी अब कभी पूरी नही हो सकती अब दूसरी लता मंगेशकर कभी पैदा नही होगी। लता जी आज हमारे बीच नही हैं लेकिन उनकी जादुई आवाज़ से सजे गीत आज भी हमे लताजी की याद दिलाते रहेंगे।

आखिरी में यही बात लिखूंगा की, नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा मेरी आवाज ही पहचान हैं गर याद रहे.......

आज मनाएंगे सलमान खान अपना जन्मदिन, 56 वर्ष के हुए सलमान...



 JKA 24न्यूज़ (जनजन का आसरा) भोपाल-मध्यप्रदेश...

मुंबई@ कवर-स्टोरी::: आज बॉलीबुड के सुपर स्टार सलमान खान का जन्मदिन हैं आज सलमान 56 वर्ष के हो जाएंगे। सलमान के फैन्स सलमान का जन्मदिन अपने-अपने अंदाज में बड़े धूमधाम से मनाते हैं फैन्स पर अपने चहेते स्टार का जादू कुछ इस तरह छाया है की रोजाना सलमान के घर गैलेक्सी अपार्टमेंट के बाहर सलमान के फैन्स की भीड़ हमेशा लगी रहती हैं एवं एक झलक देखने के लिए भीड़ घण्टो घर के बाहर खड़ी रहती हैं सलमान भी अपने फैन्स को निराश नही करते और गैलेक्सी-अपार्टमेंट की बालकनी में आकर अपने फैन्स का हाथ हिलाकर स्वागत व अभिनन्दन करते हैं।

जन्म--- सलमान खान का जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में 27 दिसम्बर 1965 को हुआ था सलमान के पिता सलीम खान (सलीम-जावेद) बॉलीबुड के मशहूर स्क्रिप्ट-राइटर थे और उन्होंने अपने जोड़ीदार जावेद अख्तर के साथ अमिताभ बच्चन के लिए एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में लिखी थी सलमान को फिल्मों में अभिनय करने का शौक़ बचपन से था सलमान के घर मे पिता सलीम खान माता सलमा दो भाई अरबाज व सोहेल एवं दो बहनें अलवीरा और अर्पिता हैं।

बॉलीबुड में एंट्री--- सलमान खान की पहली फ़िल्म 1988 में रिलीज़ हुई रेखा और फारुख शेख अभिनीत फ़िल्म बीबी हो तो ऐसी थी इस फ़िल्म में सलमान सहनायक की भूमिका में नज़र आए थे लेकिन इस नए लड़के को दर्शकों ने नोटिस नही किया। लेकिन अगले साल 1989 में सलमान बतौर अभिनेता राजश्री के बैनर तले फ़िल्म मैने प्यार किया से धमाकेदार एंट्री की और अपनी बतौर लीड रोल वाली पहली फ़िल्म मैने प्यार किया ने बॉक्स-ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई करके साल 1989 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी। इस फ़िल्म के बाद सलमान खान ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा। मैने प्यार किया के बाद सलमान की कुछ सुपरहिट और कुछ फ्लॉप फिल्में आई और सलमान का कैरियर ऐसे ही हिट और फ्लॉप फिल्मों से चलता रहा। इस दौरान सलमान की कुछ हिट फिल्में जैसे-- साजन, हम आपके हैं कौन, करन-अर्जुन, जुड़वां, बंधन, बीबी नम्बर 1, प्यार किया तो डरना क्या, जब प्यार किसी से होता हैं, हम दिल दे चुके सनम, हम साथ-साथ हैं, जैसी फिल्में आई जिसने सलमान के स्टारडम को बहुत उठाया और उसी दौरान सलमान की फ्लॉप फिल्में भी एक के बाद एक आई जो सलमान के कैरियर को खत्म करने के लिए काफी थी सलमान की फ्लॉप फिल्मों में ख़ामोशी, जागृति, निश्चय, संगदिल-सनम, लव, ये मंझधार, हैलो-ब्रदर, चल मेरे भाई, ये है जलवा, युवराज, एक लड़का एक लड़की, तुमको न भूल पाएंगे जैसी फिल्में ज़बरदस्त तरीके से फ्लॉप हो गई थी और सलमान का कैरियर खत्म माना जाने लगा था लेकिन 2003 में आई सलमान की फ़िल्म वांटेड ने सलमान के खत्म होते कैरियर को बचा लिया और इस एक्शन-मूवी में सलमान की स्टाइल को दर्शकों ने खूब पसंद किया और सलमान के कैरियर ने ऐसी स्पीड पकड़ी की सबको पीछे छोड़ दिया। वांटेड के बाद सलमान ने एक के बाद एक ब्लॉक-बस्टर फिल्मों की लाइन लगा दी जो 100 करोड़, 200 करोड़ और 300 करोड़ के क्लब में शामिल हुई। इनमें दबंग, दबंग-2, रेड्डी, बॉडीगार्ड, बजरंगी भाईजान, भारत, प्रेम रतन धन पायो, एक था टाईगर, सुल्तान, टाईगर ज़िंदा हैं, रेस-3 पार्टनर आदि फिमो ने काफी धूम मचाई और बॉक्स-ऑफिस पर धमाल कर दिया था इन फिल्मों की वजह से सलमान के स्टारडम और फैन्स-फ्लोइंग में जबरदस्त वृद्धि हुई थी और आज भी सलमान की फिल्में सफलता की ग्यारंटी हैं सलमान की मौजूदगी से ही फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले ही करोड़ो रूपये का कारोबार कर लेती हैं इसलिए निर्माता और वितरकों को सलमान की फिल्मों से घाटा नही उठाना पड़ता हैं।

बड़े पर्दे के साथ ही सलमान छोटे पर्दे पर भी अपना जलवा बिखेर रहे हैं पहले 10 का दम शो होस्ट किया जो दर्शकों को काफी पसंद आया था उसके बाद बिग-बॉस के कई सीज़न होस्ट कर चुके हैं इस दौरान सलमान के अफेयर के चर्चे भी लोगो की ज़ुबान पर खूब रहे और सलमान का नाम बॉलीबुड की कई अभिनेत्रियों के साथ जोड़ा गया और उन अभिनेत्रियों के साथ लंबे समय तक सलमान का अफेयर चला। इनमें संगीता बिजलानी, सोमी अली, ऐश्वर्या रॉय, कैटरीना-कैफ़, स्नेहा उल्लाल और ज़रीन खान प्रमुख थी लेकिन सलमान की हरकतों से परेशान होकर इन सभी नायिकाओं ने सलमान को छोड़कर शादी करके अपना-अपना घर बसा लिया, लेकिन सलमान का घर आज तक नही बस पाया। सलमान के फैन्स के साथ बॉलीबुड में हमेशा ये चर्चा होती हैं कि सलमान कब शादी करेंगे लेकिन सलमान बड़ी खूबसूरती के साथ शादी की बात को टाल देते हैं। बहरहाल आज सलमान एक ब्रांड हैं और इस समय सलमान के स्टारडम के आगे सभी अभिनेताओं के स्टारडम फीका हैं आज सलमान के कद का कोई अभिनेता नही हैं।

तुम मुझे यूं भुला न पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे।



 JKA 24न्यूज़ (जनजन का आसरा)

भोपाल@ न फनकार तुझ सा तेरे बाद आया, मो. रफी तू बहुत याद आया। इस गीत के पंक्तियां मो. रफी साहब पर बिल्कुल सही लिखी गई हैं आज 31 जुलाई हैं रफी साहब की 41वी पुण्यथिति, आज के दिन ही ये महान गायक अपने करोड़ो फेन्स को हमेशा, हमेशा के लिए छोड़कर चला गया था और संगीत की दुनिया मे एक वीरानी सी छा गई थी, ऐसा लगा मानो संगीत के शरीर के साथ संगीत की आत्मा भी चली गई।

रफी साहब की पैदाइश-- रफी साहब का जन्म 1924 को पाकिस्तान के सुल्तान-सिंह में हुआ था रफी साहब को बचपन से गाने का शौक था रफी साहब ने अपने इंटरव्यू में खुद बताया कि एक फकीर हमारे मोहल्ले में आता था और वो एक गीत गाकर माँगा करता था रफी साहब उस फकीर के पीछे-पीछे जाते और उस फकीर का गाना सुनते, और फिर अकेले में उस फकीर के गाए हुए गाने को गाते। जब उनके बड़े भाई अब्दुल हमीद ने अपने छोटे भाई रफी को गाना गाते हुए देखा तो वो रफी साहब को संगीत के उस्तादों के यहाँ संगीत सीखने के लिए ले गए, इस तरह रफी साहब ने संगीत के उस्तादों से संगीत की शिक्षा हासिल की। 

एक बार लाहौर रेडियो स्टेशन पर उस ज़माने के मशहूर अमर गायक कुंदनलाल सहगल का एक प्रोग्राम था लोग अपने पसंदीदा गायक सहगल को सुनने के लिए लाहौर रेडियो स्टेशन पर जमा हो गए रफी साहब को भी उनके बड़े भाई अब्दुल हमीद अपने साथ लाहौर रेडियो स्टेशन ले गए। अचानक लाहौर रेडियो स्टेशन की लाइट चली गई और कुंदनलाल सहगल ने बिना माइक के गाने से मना कर दिया, लोग सहगल को सुनने के लिए बेताब हो रहे थे और बेकाबू हो रहे थे लाहौर रेडियो स्टेशन के कर्मचारियों को समझ नही आ रहा था कि पब्लिक को कैसे शांत किया जाए, तब रफी साहब के बड़े भाई लाहौर रेडियो स्टेशन के अधिकारियों के पास गए और उनसे कहा मेरा छोटा भाई रफी भी गाता हैं अगर आप लोगो की इजाज़त हो तो में अपने छोटे भाई को स्टेज पर खड़ा कर देता हूँ लाहौर रेडियो स्टेशन के कर्मचारियों पर कोई चारा भी नही था तो रफी साहब को गाने की इजाज़त दे दे। बेकाबू भीड़ के सामने जब बालक रफी ने बिना माइक के गाना शुरू किया तो पब्लिक एक दम शांत हो गई और रफी साहब ने ऐसा समा बांधा की लोग वाह,वाह करते रह गए और रफी साहब की सबने बहुत तारीफ की, उन्ही लोगो मे हिंदी सिनेमा जगत की मशहूर संगीतकार जोड़ी श्याम-सुंदर भी मौजूद थे उन्हें रफी साहब की आवाज़ बहुत पसंद आई और उन्होंने रफी साहब को मुंबई आने का न्यौता दे दिया।

पहला ब्रेक-- रफी साहब को पहला ब्रेक एक पंजाबी फिल्म गुल-बलोच लिए मिला लेकिन रफी साहब के लिए ये नाकाफी था, रफी साहब को फ़िल्म जुगनू के गाने, यहाँ बदला वफ़ा का बेवफाई के सिवा क्या हैं से पहचान मिली और लता के साथ गाया हुआ ये गाना सुपरहिट साबित हुआ और रफी साहब को लोगो ने नोटिस किया, रफी साहब की प्रतिभा को सबसे पहले पहचानने वाले संगीतकार नोशाद थे। नोशाद कि पहली पसंद तलत महमूद और मुकेश थे नोशाद फ़िल्म के सभी गाने मुकेश से गवाते थे और रफी साहब से फ़िल्म में एक ही गाना गवाते थे फ़िल्म अंदाज़ में मुकेश ने सारे गीत गाए गाए जो दिलीप कुमार पर फिल्माए गए थे और रफी साहब के हिस्से एक गीत आया जो राज कपूर पर फिल्माया गया था और गीत के बोल थे लोग इन्ही अदाओं पर तो फिदा होते हैं जो ज़बरदस्त हिट साबित हुआ था इसी तरह फ़िल्म अनमोल घड़ी में भी रफी साहब को सिर्फ एक गीत मिला, तेरा खिलौना टूटा बालक, ये गाना भी बहुत हिट हुआ, इसके बाद फ़िल्म मेला में मुकेश ने सभी गीत गाए और रफी साहब को यहाँ भी एक गीत मिला, ये ज़िन्दगी के मेले, दुनिया मे कम न होंगे अफसोस हम न होंगे, बहुत पसंद किया गया। फिर भी रफी साहब की प्रतिभा के हिसाब से उनको सही मकाम नही मिल पा रहा था। फिर 1952 में आई नोशाद के संगीत से सजी एक आइकॉनिक म्यूजिकल फ़िल्म बैजू-बाबरा, इस फ़िल्म के गीतों ने तो मानो तहलका मचा दिया था हर तरफ रफी साहब के गाए हुए गीतों के चर्चे शुरू हो गए थे और रफी साहब को इसी फिल्म का इंतज़ार था फ़िल्म बैजू-बाबरा के गीतों को गाने के बाद रफी साहब ने पीछे मुड़कर नही देखा, और भारतीय संगीत की दुनिया मे एक धूमकेतु बनकर छा गए थे ज़रा सुनो, ओ दुनिया के रखवाले,। तू गंगा की मौज में गंगा की धारा,। दूर कोई गाए धुन ये सुनाए,। मन तड़पत हरि-दर्शन को आज, और झूले के पवन में आई बाहर प्यार कर ले, जैसे गीतों ने धूम मचा दी थी और आज भी जब इन गीतों को सुनो तो बदन में एक सिहरन पैदा हो जाती हैं कानो में ऐसा रस घुलता हैं जिसकी मिठास सुनने वाला महसूस करता हैं। बैजू-बावरा के बाद रफी साहब नोशाद के प्रिय गायक बनकर उभरे और रफी साहब, नोशाद और गीतकार शकील बदायुनी की तिकड़ी ने हिंदी संगीत को वो अमर गीत दिए जिसे सुनकर श्रोता आज भी झूमने को मजबूर हो जाते हैं। रफी साहब ने नोशाद के अलावा कई बड़े संगीतकारों के लिए गाया और एक से बढ़कर एक गीत हिंदी सिने संगीत को दिए, इनमें प्रमुख रूप से शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, रोशन, एसडी बर्मन, आरडी बर्मन, सलिल चौधरी, कल्यानजी-आनंदजी, रवि, ओपी-नैय्यर, हेमंत कुमार, ख़य्याम, जयदेव,एस एन त्रिपाठी, आदि बड़े संगीतकार थे जो रफी साहब की आवाज़ का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल करते थे। इसके अलावा रफी साहब ने अपने ज़माने के बहुत बड़े,बड़े अभिनेताओं के लिए गाया, और कई अभिनेता तो रफी साहब की आवाज़ पाकर सफल हुए। जिनमे दिलीप कुमार, राजकुमार, मनोज कुमार, गुरुदत्त, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, सुनील दत्त, विश्वजीत, जॉय मुखर्जी, धर्मेंद्र, जितेंद्र, देवानंद, राजेश खन्ना, शशि कपूर, ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन जैसे बड़े सितारों पर रफी साहब की आवाज़ खूब सजती थी।

रफी साहब को मिले अवार्ड-- यूं तो रफी साहब को कई अवार्ड मील हैं फिर भी रफी साहब की ख्याति, प्रतिभा और कद के बराबर वो अवार्ड न के बराबर हैं अवार्ड के मामले में रफी साहब के साथ भारत सरकार और फिल्मों की ज्यूरी ने इंसाफ नही किया हैं भारत सरकार ने रफी साहब को सिर्फ पद्मश्री के लायक समझा, आजकल पद्मश्री तो उनको दिया जाता हैं जिनका कुछ खास उल्लेखनीय योगदान नही होता, पदम-भूषण, पद्मविभूषण, दादा साहेब फाल्के अवार्ड, और इन सबसे बढ़कर भारत-रत्न भारत सरकार को देना चाहिए था लेकिन भारत सरकार की नज़र में रफी साहब का संगीत को दिया योगदान शायद कम था इसलिए सरकार ने इन तमाम अवार्डों से रफी साहब को दूर रखा और रफी साहब को इन अवार्डों के लायक नही समझा। इसके साथ ही फ़िल्म-फेयर अवार्ड देने वाली ज्यूरी ने भी रफी साहब को सिर्फ 6 बार बेस्ट-गायक का फ़िल्म फेयर अवार्ड दिया कम से कम रफी साहब को 12 बार बेस्ट गायक का फ़िल्म फेयर अवार्ड मिलना चाहिए था इसके साथ ही सिर्फ एक नेशनल अवार्ड दिया गया फ़िल्म नीलकमल के गीत बाबुल की दुआएं लेती जा के लिए, कम से कम 7 नेशनल अवार्ड रफी साहब को देने चाहिए थे, पता नही रफी साहब के गानों में क्या कमी रह गई थी जो इतने कम अवार्ड भारत सरकार और अवार्ड-ज्यूरी ने रफी साहब को दिए, कम से कम एक नेशनल अवार्ड रफी साहब के नाम से भारत सरकार को जारी करना चाहिए था वो भी नही किया गया।

रफी साहब ने 6 बार बेस्ट गायक का फ़िल्म फेयर अवार्ड जीता। पहला फ़िल्म फेयर अवार्ड फ़िल्म चौहदवीं का चांद के गीत, चौहदवीं का चांद हो या आफताब हो, दूसरा फ़िल्म ससुराल के गीत तेरी प्यारी,प्यारी सूरत को किसी की नज़र न लगे, के लिए जीता, तीसरा अवार्ड फ़िल्म दोस्ती के गीत चाहूंगा में तुझे सांझ-सवेरे के लिए मिला। चौथा अवार्ड फ़िल्म सूरज के गीत, बहारों फूल बरसाओ, के लिए मिला, पांचवा अवार्ड फ़िल्म ब्रह्मचारी के गीत दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर, और छटा फ़िल्म फेयर अवार्ड फ़िल्म हम किसी से कम नही के गीत, क्या हुआ तेरा वादा के लिए मिला। खैर रफी साहब का सबसे बड़ा अवार्ड तो उनके करोड़ो चाहने वालो का प्यार है जो आज तक रफी साहब के लिए कम नही हुआ। रफी साहब के गाए हुए हज़ारो गीत आज भी कर्णप्रिय और सुनने में लाजवाब लगते है फिर आई 31 जुलाई जिसने रफी साहब को हमसे हमेशा के लिए छीन लिया, और भारतीय संगीत का इतना बड़ा नुकसान किया जिसकी भरपाई रहती दुनिया तक नही हो सकती। बहरहाल रफी साहब आज हमारे बीच नही है लेकिन उनके गाए हज़ारो गीतो में रफी साहब हमारे दिलों में आज भी जिंदा हैं 31 जुलाई 1980 को ये आवाज़ का जादूगर, सुरों का सरताज, प्लेबैक-गायकों का बादशाह,  संगीत का शहेंशाह, गीतों का मसीहा मौसिकी का कोहिनूर महान और अमर गायक रफी साहब अपने चाहने वालो को हमेशा हमेशा के लिए छोड़कर चले गए, लेकिन रफी साहब संगीत में और हमारे दिलों में आज भी जिंदा हैं।





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सिम्बा ने तोड़ा शाहरुख खान की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस का रिकॉर्ड


मुंबई रणवीर सिंह और सारा अली खान स्टारर मूवी सिम्बा तीसरे हफ्ते भी ताबड़तोड़ कमाई कर रही है. मूवी ने अब तक भारतीय बाजार में 227.71 करोड़ की कमाई कर ली है. 28 दिसंबर 2018 को रिलीज हुई ये फिल्म ब्लॉकबस्टर हिट है. एंटरटेनमेंट से भरपूर सिम्बा रोहित शेट्टी की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई है.

ट्रेड एक्सपर्ट तरण आदर्श ने ट्वीट कर सिम्बा के कलेक्शन की जानकारी दी है. उनके मुताबिक, सिम्बा ने रोहित शेट्टी की चेन्नई एक्सप्रेस के लाइफटाइम कलेक्शन को पार कर लिया है. मूवी ने तीसरे हफ्ते में शुक्रवार को 2.60 करोड़, शनिवार को 4.51 करोड़, रविवार को 5.30 करोड़ और सोमवार को 2.86 करोड़ की कमाई की है. कुल मिलाकर सिम्बा ने भारत में 228 करोड़ का कलेक्शन कर लिया है. कमाई का ग्राफ ऐसा ही रहा तो जल्द सिम्बा 250 करोड़ क्लब में एंट्री कर लेगी.

बता दें, रोहित शेट्टी की चेन्नई एक्सप्रेस का लाइफटाइम कलेक्शन 227.13 करोड़ था. हर फिल्म के साथ रोहित शेट्टी की मूवी का कलेक्शन बढ़ता जा रहा है. मानो उनकी फिल्मों का एक-दूसरे से ही कॉम्पिटिशन चल रहा हो. चेन्नई एक्सप्रेस (227.13 करोड़) और गोलमाल अगेन (205.69 करोड़) की कमाई से आगे निकलकर सिम्बा ने रोहित शेट्टी की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म का दर्जा हासिल कर लिया है.

सिम्बा, डायरेक्टर की 8वीं फिल्म है, जिसने 100 करोड़ क्लब में एंट्री की है. कहना गलत नहीं होगा कि उनकी फिल्में 100 करोड़ क्लब की गारंटी बन गई है. सिम्बा ने रणवीर सिंह और सारा अली खान के करियर में भी चार चांद लगाए हैं. ये सारा अली खान की दूसरी फिल्म है. उनकी पहली मूवी केदारनाथ थी.
 
 
Source : Agency