मोहर्रम 1443 हिज़री, इस्लामी नए साल का आज होगा आगाज़...


 JKA 24न्यूज़ (जनजन का आसरा) भोपाल-मध्यप्रदेश...

भोपाल@ इस्लाम का पाक और मुकद्दस महीना मोहर्रम आज सूरज ढलते ही शुरू हो जाएगा, इसी के साथ इस्लाम का नया साल का आगाज़ भी होगा। अल्लाह ने अपनी किताब क़ुरआन में 4 महीनों को मुक़द्दस और मोहतरम बताया हैं (1) ज़िल-हिज़्ज़ा (2) जीकादा (3) रजब (4) मोहर्रम।

मोहर्रम के महीने की फ़ज़ीलत इस्लाम के आखिरी पैगम्बर हज़रत मोहम्मद (सल्ल.) ने कुछ इस तरह फ़रमाई हैं की यहूदी मोहर्रम के महीने का आशूरा का रोज़ा रखते थे तो अल्लाह के रसूल ने यहूदियों से पूछा तुम आशूरा का रोज़ा क्यों रखते हो, तो यहूदियों ने कहा कि अल्लाह ने 10 मोहर्रम को फिरौन से और उसके ज़ुल्म से हमे निजात दी थी उसकी आज़ादी की खुशी में हम रोज़ा रखते हैं तो अल्लाह के रसूल ने उनसे इर्शाद फरमाया हज़रत मूसा अलै. हमारे सबसे करीब हैं और हम तुमसे ज़्यादा मुस्तहिक़ हैं रोज़ा रखने के, इसलिए हम भी रोज़ा रखेंगे अल्लाह के रसूल ने अपने सहाबा (अनुयायियों) से इर्शाद फरमाया 10 मोहर्रम का रोज़ा हम भी रखेंगे, लेकिन हम दो रोज़े रखेंगे, ताकि हम यहूदियों की मुशाहबत इख़्तियार न कर सके। आपने आगे इर्शाद फरमाया 9 मोहर्रम और 10 मोहर्रम का रोज़ा रखो या 10 मोहर्रम और 11 मोहर्रम का रोज़ा रखो। अल्लाह के रसूल ने रमज़ान के फ़र्ज़ रोज़ो के बाद सबसे ज़्यादा नफिल रोज़ो में मोहर्रम के दो रोज़ो की फ़ज़ीलत बयान फ़रमाई।

लेकिन कुछ लोग 10 मोहर्रम की फ़ज़ीलत को हज़रत ईमाम हुसैन रज़ि. के साथ जोड़ते हैं जो करबला के मौके पर पेश आई हालाँकि करबला का वाकिया हिज़रत के 51वे साल में पेश आया, यानी अल्लाह के रसूल के इस दुनिया से पर्दा फरमाने के 50 साल बाद। कुरआन में अल्लाह ने अपने हबीब हज़रत मोहम्मद (सल्ल.) को 10 मोहर्रम के बारे में बताया और 10 मोहर्रम में अल्लाह के बहुत सारे नबियों के साथ वाक़िये पेश आए चुनांचे रिवायत में आया हैं कि हज़रत आदम अलै. की तौबा 10 मोहर्रम को कुबूल हुई। हज़रत मूसा अलै. और उनकी कोम को फिरौन के ज़ुल्म-सितम से निजात इसी दिन यानी 10 मोहर्रम को अता फ़रमाई। हज़रत यूनुस अलै. को जब मछली ने निगल लिया था और वो 40 दिन मछली के पेट मे रहे, अल्लाह ने यूनुस अलै, को मछली के पेट से 10 मोहर्रम को रिहाई अता की। हज़रत नूह अलै, की कश्ती को ठहराओ और पानी के अज़ाब से रोका और कश्ती किनारे लगाई 10 मोहर्रम को, इसके अलावा बहुत से नबियों की फ़ज़ीलते 10 मोहर्रम के साथ जुड़ी हुई हैं और करबला का वाकिया भी 10 मोहर्रम को पेश आया, लेकिन मुस्लिम समाज की अक़ीदत हज़रत ईमान हुसैन और करबला के साथ 10 मोहर्रम को ज़्यादा जुड़ी हुई है।

10 मोहर्रम को मुस्लिम समाज के लोग गैर-शरई काम करते है जिसका इस्लाम से कोई ताल्लुक नही हैं और ये सब खुराफातें करके गुनाहगार होते हैं जैसे मातम मनाना, ताज़िया निकालना, नोहा करना, अपने आपको को चाकू और तलवारों से जख्मी करना, और आग के अंगारों पर चलना इन सब कामो का इस्लाम से कोई ताल्लुक नही हैं और ये बाते न क़ुरआन में मिलती हैं और न हदीस में और न अल्लाह के रसूल से साबित है और न सहाबा से साबित है। फिर भी कुछ लोग सवाब समझकर इन खुराफातों में मुब्तिला हैं जिसे इस्लाम ने और अल्लाह के रसूल ने बिदअत फरमाया और बिदअत सरासर गुमराही हैं और गुमराही इंसानों को जहन्नम में ले जाएगी।





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