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रहें न रहें हम महका करेंगे बनके कली बनके सबा बागे-वफ़ा में, अलविदा लता मंगेशकर को विनम्र-श्रद्धांजलि...



 JKA 24न्यूज़ (जनजन का आसरा) भोपाल-मध्यप्रदेश.....

मुंबई@ स्वर-कोकिला, स्वर-सामग्री, सुरीली कोयल, आवाज़ की मलिका, सुरों की महारानी, भारत-रत्न और न जाने कितने नामो से प्रख्यात लता मंगेशकर आज हमारे बीच नही हैं। पिछले एक महीने से कोविड के चलते उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती किया गया था बाद में लताजी को निमोनिया हो गया था जिसकी वजह से उनकी हालत और ज़्यादा बिगड़ गई लताजी को वेंटिलेटर पर रखना पड़ा लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था 6 फरवरी 2022 की सुबह सुरों की महारानी लता मंगेशकर संगीत की दुनिया को हमेशा के लिए सूना करके इस दुनिया से चली गई और पीछे छोड़ गई अपनी यांदे और वो सदाबहार गीत जो लताजी की आवाज़ पाकर अमर हो गए।

लताजी का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की 5 संतानों में लताजी सबसे बड़ी थी आशा, उषा, मीना और हृदय नाथ मंगेशकर उनके छोटे भाई-बहन थे लताजी के पिता एक शास्त्रीय गायक थे गायकी का माहौल लताजी को घर से ही मिला था और बचपन मे पिता अपनी बिटिया को संगीत सिखाने लगे थे 13 साल की उम्र में लताजी पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर का 1942 में निधन हो गया जिससे लताजी के सामने आर्थिक कठिनाई आने लगी सब बहनों और भाई से बड़ी लताजी पर घर का खर्च चलाने की ज़िम्मेदारी आ गई और लताजी नाटकों और फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने लगी लताजी को अभिनय पसंद नही था लेकिन घर का खर्च चलाने के लिए लताजी को अभिनय करना पड़ा। लताजी की पहली पसंद गायन था और वो उसी में अपना कैरियर बनाना चाहती थी लताजी को सबसे पहले 1942 में एक मराठी गीत गाने का मौका मिला लेकिन उस गीत को फ़िल्म में नही रखा गया। लताजी के एक करीबी हैदर अली ने लताजी को फिल्मकार शशधर मुखर्जी से मिलवाया निर्देशक शशधर मुखर्जी ने जब लताजी की आवाज़ सुनी तो उन्होंने उनको ये कहते हुए रिजेक्ट कर दिया था की लताजी की आवाज़ बहुत पतली हैं लेकिन लताजी ने हार नही मानी और लगातार संघर्ष करती रही लताजी शुरू में नूरजहाँ के स्टाइल में गाती थी क्योंकि उस समय नूरजहाँ, शमशाद बेगम, सुरैया, ज़ोहरा बाई अम्बाले वाली आदि गायिकाओं की तूती बोलती थी और संगीतकार इन्ही गायिकाओं से गवाना पसंद करते थे लताजी समझ गई थी इनके स्टाइल से गाने पर कुछ गीत तो मिल जाएंगे लेकिन कैरियर लंबा नही चल पाएगा इसलिए लताजी ने अपना गाने का अंदाज़ स्थापित किया। और आखिर लताजी को वो गीत मिल ही गया जिस गीत को गाने के बाद लताजी ने फिर कभी पीछे मुड़कर नही देखा ये गीत था अशोक कुमार और मधुबाला अभिनीत फिल्म महल का जिसके बोल थे आएगा आने वाला, इस गीत ने सबका ध्यान लताजी की तरफ खींचा और लताजी को तमाम बड़े संगीतकारों ने नोटिस किया। 1949 में अभिनेता राज कपूर ने फ़िल्म बरसात का निर्माण किया इस फ़िल्म में मुख्य गायिका के तौर पर लताजी को चुना गया और फ़िल्म बरसात के सभी गीत लताजी ने गाए फ़िल्म बरसात अपने बेहतरीन गीतों की वजह से सुपरहिट साबित हुई और इसके बाद फिल्मी संगीत में लता मंगेशकर ने वो परचम लहराया जिसके बारे में सिर्फ सोचा जा सकता था उसको पाया नही जा सकता था चारो तरफ बरसात के गीतों ने धूम मचा दी थी इसके बाद बड़े-बड़े संगीतकार जैसे नोशाद, शंकर-जयकिशन, हुस्नलाल-भगतराम, वसंत देसाई, सज्जाद हुसैन, अनिल विश्वास, सलिल चौधरी, सचिनदेव बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी, मदनमोहन, रोशन, खय्याम, आरडी-बर्मन, रामलक्ष्मण, शिव-हरि जैसे संगीतकारों की पहली पसंद लताजी थी इनके साथ लताजी ने एक से बढ़कर एक सदाबहार और कालजयी गीत गाए। निर्देशक मेहबूब खान, गुरुदत्त, और यश चोपड़ा की अमूमन हर फिल्म में लताजी ने गीत गाए। इसके अलावा नए संगीतकारों जैसे अनु-मलिक, जतिन-ललित, आंनद राज आंनद, ऐ आर रहमान, आनद-मिलिंद जैसे संगीतकारों के साथ भी सुपरहिट गीत गाए।

लताजी के गाए गीतों से सजी कुछ यादगार फिल्मों में महल, मदर इंडिया, बरसात, अंदाज़, बैजू-बाबरा, देवदास, मधुमती, मुगले-आज़म, चोरी-चोरी, गाइड, अमर, आज़ाद, जिस देश मे गंगा बहती हैं, लीडर, गंगा-जमना, अभिमान, प्यार झुकता नही, एक दूजे के लिए, प्रेमरोग, राम तेरी गंगा मैली, हिना, मैने प्यार किया, हम आपके हैं कौन, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, चाँदनी, लम्हे, डर जैसी कई यादगार फिल्मों में सदाबहार गीत गाए। लताजी ने अपने समकालीन गायकों मो. रफी, मुकेश, किशोर कुमार, हेमंत कुमार, तलत महमूद, मन्नाडे के साथ ही नए गायकों जैसे मनहर उदास, यसुदास, भूपेंद्र, शब्बीर कुमार, मो. अज़ीज़, अनवर, अमित कुमार, उदित नारायण, कुमार शानू, एसपी बाला सुब्रमण्यम और सोनू निगम के साथ भी कई यादगार गीत गाए हैं।

लताजी को की चार बार फ़िल्म-फेयर पुरस्कार मिला हैं 1959 में फ़िल्म मधुमती के गीत आजा रे परदेसी के लिए पहला फ़िल्म-फेयर अवार्ड मिला था इसके बाद 1963 में फ़िल्म बीस साल बाद के गीत कही डीप जले कही दिल के लिए दूसरा, 1966 में फ़िल्म खानदान के गीत तुम्ही मेरे मंदिर तुम्ही मेरी पूजा के लिए तीसरा, और 1970 में आई फ़िल्म जीने की राह का गीत आप मुझे अच्छे लगने लगे है के लिए चौथा फ़िल्म-फेयर पुरस्कार मिला था इसी के साथ 1972 में आई फ़िल्म परी में गाए गीतों के लिए पहला राष्ट्रीय-पुरस्कर मिला था 1974 में आई फील कोर-कागज़ के गीत के लिए दूसरा राष्ट्रीय-पुरस्कार और 1990 में आई फ़िल्म लेकिन के गाए गीतों के लिए लताजी को तीसरा राष्ट्रीय-पुरस्कार मिला था इसके अलावा भारत सरकार ने लता जी को 1969 में पद्म-भूषण, 1989 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, 1999 में पदम्-विभूषण और 2001 में भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत-रत्न दिया था। लताजी ने महिला पार्श्वगायन में वही मुकाम और रुतबा हासिल किया हैं जो मकाम और रुतबा पुरुष पार्श्वगायन में मो.रफी को हासिल हुआ हैं फिल्मी-संगीत लताजी का हमेशा आभारी और ऋणी रहेगा और लताजी की कमी अब कभी पूरी नही हो सकती अब दूसरी लता मंगेशकर कभी पैदा नही होगी। लता जी आज हमारे बीच नही हैं लेकिन उनकी जादुई आवाज़ से सजे गीत आज भी हमे लताजी की याद दिलाते रहेंगे।

आखिरी में यही बात लिखूंगा की, नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा मेरी आवाज ही पहचान हैं गर याद रहे.......

मौलवी मिस्बाह-उद्दीन साहब रह. को हज़ारो लोगो ने नम आँखों से किया सुपुर्दे-ख़ाक...


 JKA 24न्यूज़ (जनजन का आसरा) भोपाल-मध्यप्रदेश...

भोपाल@ हर दिल अज़ीज़, भोपाल की अज़ीम शख़्सियत, अल्लाह के नेक बन्दे, बुज़ुर्ग-हस्ती, मध्यप्रदेश तब्लीगी जमात के अमीर और भोपाल-मरकज़-शूरा के अहम ज़िम्मेदार, मरहूम बड़े सईद भाई भोपाली के साहबज़ादे मौलवी मिस्बाह-उद्दीन साहब रह. को आज सुबह हज़ारो लोगो की मौजूदगी में हमारो लोगो ने आँखों मे आँसू लिए हज़रत को सुपुर्दे-ख़ाक कर दिया, हज़रत के इंतकाल से दावत और तब्लीगी के काम को जो नुकसान हुआ हैं उसकी भरपाई करना मुश्किल हैं।

कल शाम जैसे ही मौलवी मिस्बाह साहब के इन्तेकाल की खबर लोगो को लगी मानो जैसे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई हो, हर एक कि आँखों में आँसू थे और दिल रो रहा था और लोग अफसोस करते हुए एक दूसरे को मौलवी मिस्बाह साहब के इन्तकाल की खबर देते रहे। आज सुबह ताजुल-मसाज़िद में मौलवी मिस्बाह साहब की जनाज़े की नमाज़ 7 बजकर 35 मिनट पर हज़ारो लोगो की मौजूदगी में अदा की गई। जनाज़े की नमाज़ मुफ़्ती जसीम दाद साहब ने अदा करवाई इस दौरान शहर-काज़ी मुश्ताक साहब, नायाब काज़ी अली-कदर हुसैनी, शहर मुफ़्ती अबुल-कलाम, भोपाल मरकज़ के जिम्मेदारों के साथ ही भोपाल और आसपास के दूसरे शहरों के ज़िम्मेदार भी मौजूद थे। हज़ारो की संख्या में हर खास और आम ने जनाज़े की नमाज़ अदा की, उसके बाद मौलवी साहब की मय्यत को भोपाल के बड़े बाग़ कब्रस्तान में सुपुर्दे-ख़ाक किया गया।

मौलवी मिस्बाह साहब की बचपन से ही दावत और तब्लीग के काम से मुनासिबत थी आपके वालिद बड़े सईद भाई भोपाली भी दावत और तबलीग के काम करने वालो में बहुत पुराने साथी थे मौलवी साहब उस्तादों से क़ुरआन और दीन का इल्म हासिल करने के बाद पूरी शिद्दत, लगन और मेहनत के साथ तबलीग के काम मे लग गए थे और इस काम को करने में जो कुर्बानियां, मुजाहदे, तकलीफें आई उसको खुशी से बर्दाश्त करके अल्लाह की रज़ा के लिए मौत तक लगे रहे। इस दौरान मौलवी मिस्बाह साहब ने तब्लीग के काम के सिलसिले में कई मुल्कों का सफर किया और अपने इल्म और अमल के ज़रिए लोगो को तब्लीग के काम मे जोड़ने की फिक्र और मेहनत करते रहे। तब्लीग में लगा हर साथी मौलवी साहब से बहुत मोहब्बत करता था और उनके फैज़ से नफ़ा उठाता था कल मस्ज़िद-बेतुलहम्द में तब्लीग के एक जोड़ में आप मौजूद थे वही आपकी तबियत बिगड़ गई और आपको अस्पताल ले जाया गया, लेकिन अल्लाह को कुछ और ही मंजूर था और अल्लाह ने अपने इस नेक बन्दे को अपने पास बुला लिया।