भीलवाड़ा में गाजे-बाजे के साथ निकली थी अर्थी, अंतिम संस्कार से पहले कूदकर भागा 'मुर्दा'; जानें क्या है पूरा मामला
राजस्थान के भीलवाड़ा में एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है जिसमें एक जिंदा व्यक्ति की शव यात्रा निकाली जाती है और अंतिम संस्कार भी किया जाता है। यह परंपरा 427 सालों से निभाई जा रही है और ये शीतला सप्तमी के दिन होती है। इसमें एक जिंदा व्यक्ति को अर्थी पर लेटाकर उसकी शव यात्रा निकाली जाती है और एक स्थान पर अंतिम संस्कार किया जाता है।
जिंदा व्यक्ति की निकलती है शव यात्रा (फाइल फोटो)राजस्थान के भीलवाड़ा में सालों से एक अनोखी परंपरा निभाई जा रही है, जिसके तहत जीवित व्यक्ति क अर्थी पर लेटाया जाता है और फिर गाजे-बाजे के साथ रंग गुलाल उड़ाते हुए पूरे शहर में शव यात्रा निकाली जाती है। उसके बाद एक स्थान पर अंतिम संस्कार किया जाता है।
कूदकर भाग जाता है 'मुर्दा'
हालांकि, अंतिम संस्कार करने से पहले अर्थी पर लेटा व्यक्ति कूदकर भाग जाता है। यह परंपरा पिछले 427 सालों से भीलवाड़ा में शीतला सप्तमी के दिन निभाई जा रही है। इस परंपरा को इला जी का डोलका बोला जाता है। होली के सात दिन के बाद यह सवारी निकाली जाती है।
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इस सवारी की शुरुआत शहर के चित्तौड़ वालों की हवेली से होती है, जहां पर एक जिंदा व्यक्ति को अर्थी पर लेटा दिया जाता है और फिर ढोल-नगाड़ों और गाजे-बाजे के साथ रंग-गुलाल उड़ाते हुए शव यात्रा निकाली जाती है। इस शव यात्रा में सिर्फ भीलवाड़ा ही नहीं, आसपास के जिलों से भी लोग शामिल होने आते हैं।
महिलाओं का प्रवेश है वर्जित
शव यात्रा के दौरान जमकर फब्तियां भी कसी जाती है, इस वजह से इस यात्रा में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। इस अर्थी का अंतिम संस्कार शहर के बड़ा मंदिर के पीछे किया जाता है। यहां पहुंचने पर अर्थी पर लेटा व्यक्ति कूदकर भाग जाता है।
साल भर की बुराइयों को निकालते हैं बाहर
इस शव यात्रा की मान्यता है कि जो भी लोग इस यात्रा में शामिल होते हैं, वो अपने अंदर छिपी बुराइयों और भड़ास को बाहर निकालते हैं और एक नई शुरुआत करते हैं। हर साल निकलने वाली जिंदा मुर्दे की शव यात्रा में कोई एक व्यक्ति फिक्स नहीं होता है। हर साल जिंदा मुर्दा बदलता रहता है।
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मुर्दा बनने का काम कठिन है, क्योंकि उसे काफी कुछ सहना पड़ता है। यात्रा के दौरान मुर्दा व्यक्ति तंग आकर कभी भी अर्थी से उठकर भाग जाता है। उसके स्थान पर एक पुतले को लेटा दिया जाता है और फिर अंतिम संस्कार किया जाता है।