दहेज नहीं लेने पर भी हो सकती है कार्रवाई! SC ने IPC की धारा 498A को किया स्पष्ट; हाईकोर्ट के फैसले पर लगी रोक

दहेज नहीं लेने पर भी हो सकती है कार्रवाई! SC ने IPC की धारा 498A को किया स्पष्ट; हाईकोर्ट के फैसले पर लगी रोक

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें धारा 498ए के तहत कार्यवाही को दहेज की मांग नहीं होने के कारण रद कर दिया था। मामले में पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498ए में क्रूरता की परिभाषा व्यापक मानते हुए कहा कि अपराध लागू करने के लिए दहेज की मांग जरूरी नहीं है।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने की सुनवाई (फोटो: पीटीआई)

 देश की शीर्ष अदालत ने यह माना है कि आईपीसी के सेक्शन 498ए के तहत अपराध दर्ज करने के लिए दहेज की मांग जरूरी नहीं है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की।


सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया गया कि आईपीसी का सेक्शन 498ए मूल रूप से क्रूरता के लिए है और दहेज न लेना इसे किसी तरह से प्रभावित नहीं करता। अदालत ने कहा कि दहेज की मांग न होना इस धारा को लागू करने के लिए कोई आवश्यक शर्त नहीं है।


पत्नी को पीटने का आरोपदरअसल सुप्रीम कोर्ट आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें एक व्यक्ति के खिलाफ धारा 498ए के तहत कार्यवाही को इसलिए रद कर दिया गया था, क्योंकि इसमें दहेज की मांग शामिल नहीं थी। व्यक्ति पर उसकी पत्नी को पीटने और ससुराल ने निकालने का आरोप था।

पीड़िता ने आरोप लगाया था कि उसने कई बार वापस लौटने की कोशिश की, लेकिन उसे घर में घुसने नहीं दिया गया। पुलिस को दी शिकायत में उसने अपने पति और सास पर आरोप लगाए थे। पुलिस ने व्यक्ति और उसकी मां के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था।


हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोकआरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित नहीं किया। हाईकोर्ट ने इस दलील को स्वीकार कर लिया और कहा कि धारा 498ए आईपीसी के तहत अपराध नहीं बनते। इसके बाद मामले को रद कर दिया गया।
हाईकोर्ट द्वारा मामला खारिज होने के बाद पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498ए की जांच की और पाया कि क्रूरता की परिभाषा व्यापक है, जिसमें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का नुकसान शामिल है।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि स्पष्ट रूप से दहेज की मांग का अभाव प्रविधान की प्रयोज्यता को नकारता नहीं है, जहां शारीरिक हिंसा और मानसिक संकट के कृत्य प्रदर्शित किए गए हैं।

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