बीएलओ पर काम का दबाव कम करें, छुट्टी भी दीजिए'; SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट का राज्य सरकारों को निर्देश
देश के 12 राज्यों में मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान BLO की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। कोर्ट ने राज्य सरकारों को BLO की कार्य स्थितियों के ...और पढ़ें

मतदाता सूची पुनरीक्षण में BLO की मौतों पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता। (फाइल फोटो)
देश के 12 राज्य/केंद्रशासित राज्यों में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण चल रहा है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राज्य मतदाता सूचियों को संशोधित करने के लिए बूथ स्तर के अधिकारियों या बीएलओ के रूप में काम करने वाले पुरुषों और महिलाओं की मृत्यु पर गंभीर चिंता व्यक्त की। बता दें कि कई बीएलओ ने काम के दबाव में आत्महत्या भी कर ली है।
दरअसल, मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकारों को बीएलओ की कार्य स्थितियों और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार ठहराया। इसके साथ ही तर्क दिया कि जहां दस हजार कर्मचारी तैनात किए गए हैं, वहां 30,000 भी तैनात किए जा सकते हैं। इससे काम करने में आसानी होगी और काम का बोझ भी हल्का हो जाएगा।
'छुट्टी मांगने वाले BLO को मिले राहत'
वहीं, मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने सरकारों से यह भी कहा कि ड्यूटी से छूट का अनुरोध करने वाले बीएलओ को छुट्टी दी जानी चाहिए और उनके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त किया जाना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने माना कि कई बीएलओ गंभीर बीमार होने के कारण ड्यूटी से छुट्टी मांग रहे हैं। वहीं, न्यायालय ने यह भी कहा कि यही ऐसे बीएलओ को राहत नहीं प्रदान की जाती है को वह अदालत का रूख कर सकता है।
विजय की पार्टी ने किया था कोर्ट का रुख
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम की याचिका के बाद दिया है। टीवीके ने देश के कई राज्यों में कई बीएलओ की मौत के विवाद के बीच कोर्ट का रुख किया था। टीवके ने चुनाव आयोग पर प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 32 के तहत जेल भेजने की धमकी देकर बीएलओ को काम करने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था।
टीवीके ने दिया था ये तर्क
विजय की पार्टी टीवीके का तर्क है कि प्रत्येक राज्य में ऐसे परिवार हैं जिनके बच्चे अनाथ हो गए हैं या माता-पिता अलग हो गए हैं क्योंकि चुनाव आयोग धारा 32 के तहत नोटिस भेज रहा है। टीवीके का दावा है कि अकेले उत्तर प्रदेश में ही बीएलओ के खिलाफ 50 से ज्यादा पुलिस मामले दर्ज किए गए हैं,फिलहाल चुनाव आयोग से बस यही अनुरोध है कि वह ऐसी कठोर कार्रवाई न करे।
हालांकि, न्यायालय ने बीएलओ की मौतों के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराने की मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश कांत ने कहा कि बीएलओ राज्य सरकार के कर्मचारी हैं।
चुनाव आयोग ने टीवीके के आरोपों को बताया निराधार
इन सब के बीच चुनाव आयोग ने इस याचिका को पूरी तरीके झूठा और निराधार बताया है और तर्क दिया है कि मतदाता पुनः सत्यापन कार्य में देरी करने से चुनावों पर भी बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु और केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने को हैं। बंगाल में भी 2026 में ही विधानसभा चुनाव होंगे। वहीं, गुजरात और उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होने को हैं। वहां भी विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य चल रहा है।
कई राज्यों में अगले साल होने हैं चुनाव
तमिलनाडु और केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी अगले साल मतदान होगा। बंगाल में भी 2026 में चुनाव होंगे और वहाँ भी विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य चल रहा है, जहाँ बीएलओ की मौतों की और भी खबरें आ रही हैं और चुनाव आयोग के दबाव की शिकायतें भी आ रही हैं।
बता दें कि बंगाल में चुनाव से कुछ महीने पहले मतदाता सूचियों के पुनः सत्यापन को लेकर एक उग्र राजनीतिक और कानूनी विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें विपक्ष ने चुनाव आयोग और भाजपा पर चुनाव जीतने के लिए मतदाताओं के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है।
दरअसल, मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकारों को बीएलओ की कार्य स्थितियों और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार ठहराया। इसके साथ ही तर्क दिया कि जहां दस हजार कर्मचारी तैनात किए गए हैं, वहां 30,000 भी तैनात किए जा सकते हैं। इससे काम करने में आसानी होगी और काम का बोझ भी हल्का हो जाएगा।
'छुट्टी मांगने वाले BLO को मिले राहत'
वहीं, मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने सरकारों से यह भी कहा कि ड्यूटी से छूट का अनुरोध करने वाले बीएलओ को छुट्टी दी जानी चाहिए और उनके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त किया जाना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने माना कि कई बीएलओ गंभीर बीमार होने के कारण ड्यूटी से छुट्टी मांग रहे हैं। वहीं, न्यायालय ने यह भी कहा कि यही ऐसे बीएलओ को राहत नहीं प्रदान की जाती है को वह अदालत का रूख कर सकता है।
विजय की पार्टी ने किया था कोर्ट का रुख
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम की याचिका के बाद दिया है। टीवीके ने देश के कई राज्यों में कई बीएलओ की मौत के विवाद के बीच कोर्ट का रुख किया था। टीवके ने चुनाव आयोग पर प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 32 के तहत जेल भेजने की धमकी देकर बीएलओ को काम करने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था।
टीवीके ने दिया था ये तर्क
विजय की पार्टी टीवीके का तर्क है कि प्रत्येक राज्य में ऐसे परिवार हैं जिनके बच्चे अनाथ हो गए हैं या माता-पिता अलग हो गए हैं क्योंकि चुनाव आयोग धारा 32 के तहत नोटिस भेज रहा है। टीवीके का दावा है कि अकेले उत्तर प्रदेश में ही बीएलओ के खिलाफ 50 से ज्यादा पुलिस मामले दर्ज किए गए हैं,फिलहाल चुनाव आयोग से बस यही अनुरोध है कि वह ऐसी कठोर कार्रवाई न करे।
हालांकि, न्यायालय ने बीएलओ की मौतों के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराने की मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश कांत ने कहा कि बीएलओ राज्य सरकार के कर्मचारी हैं।
चुनाव आयोग ने टीवीके के आरोपों को बताया निराधार
इन सब के बीच चुनाव आयोग ने इस याचिका को पूरी तरीके झूठा और निराधार बताया है और तर्क दिया है कि मतदाता पुनः सत्यापन कार्य में देरी करने से चुनावों पर भी बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु और केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने को हैं। बंगाल में भी 2026 में ही विधानसभा चुनाव होंगे। वहीं, गुजरात और उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होने को हैं। वहां भी विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य चल रहा है।
कई राज्यों में अगले साल होने हैं चुनाव
तमिलनाडु और केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी अगले साल मतदान होगा। बंगाल में भी 2026 में चुनाव होंगे और वहाँ भी विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य चल रहा है, जहाँ बीएलओ की मौतों की और भी खबरें आ रही हैं और चुनाव आयोग के दबाव की शिकायतें भी आ रही हैं।
बता दें कि बंगाल में चुनाव से कुछ महीने पहले मतदाता सूचियों के पुनः सत्यापन को लेकर एक उग्र राजनीतिक और कानूनी विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें विपक्ष ने चुनाव आयोग और भाजपा पर चुनाव जीतने के लिए मतदाताओं के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है।