चेरनोबिल परमाणु आपदा के 40 साल बाद मिला रेडिएशन खाने वाला फंगस, वैज्ञानिक हैरान

 चेरनोबिल परमाणु आपदा के 40 साल बाद मिला रेडिएशन खाने वाला फंगस, वैज्ञानिक हैरान



यूक्रेन में चेरनोबिल आपदा के बाद वैज्ञानिकों ने क्लैडोस्पोरियम स्फेरोस्पर्मम नामक एक कवक की खोज की है, जो विकिरण पर पनपता है। यह कवक गामा किरणों को ऊर ...और पढ़ें




विकिरण रोधी कवक से बनेगी चंद्र निर्माण सामग्री


 यूक्रेन में चेरनोबिल परमाणु आपदा के लगभग 40 साल बाद, विज्ञानियों ने एक ऐसे जीवन रूप की खोज की है जो पीछे छूटे विकिरण पर पनप रहा है। क्लैडोस्पोरियम स्फेरोस्पर्मम नामक एक विचित्र कवक, जो परित्यक्त रिएक्टर की दीवारों पर उगता हुआ पाया गया, न केवल घातक विकिरण से बचना सीख गया है, बल्कि इसके कई प्रकार अब विकिरण की उपस्थिति में तेजी से बढ़ते हैं।


परमाणु विकिरण पर निर्भर इस गहरे हरे रंग के फफूंद को विज्ञानी भविष्य के चंद्रमा ठिकानों के लिए निर्माण सामग्री के रूप में देख रहे हैं जो अंतरिक्ष यात्रियों को हानिकारक विकिरण से बचाएगी।
परमाणु विस्फोटों से निकलने वाले गामा किरणों को ऊर्जा में परिवर्तित करता है कवक

अध्ययन में कुछ ही कवकों, यानी परीक्षण किए गए 47 में से नौ प्रजातियों में ही यह व्यवहार प्रदर्शित हुआ। ये प्रजातियां परमाणु विस्फोटों से निकलने वाले सबसे शक्तिशाली और खतरनाक विकिरण, गामा किरणों को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देती हैं, ठीक उसी तरह जैसे सामान्य पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान सूर्य के प्रकाश को परिवर्तित करते हैं।


परीक्षणों से पता चला है कि सी स्फेरोस्पर्मम रेडियोधर्मी कणों को फंसाकर उन्हें निष्क्रिय कर देता है। इस कारण, इस कवक को रेडियोट्राफिक कवक माना जाता है, क्योंकि 'रेडियो' शब्द का अर्थ होता विकिरण है और 'ट्राफिक' शब्द का अर्थ किसी चीज को पोषण देना या उसे उपयोगी ऊर्जा में परिवर्तित करना है।

सी स्फेरोस्पर्मम को मेलेनिन से मिलती है विकिरण-नाशक क्षमता

विज्ञानियों का कहना है कि सी स्फेरोस्पर्मम अपनी विकिरण-नाशक क्षमता मेलेनिन से प्राप्त करता है। शोधकर्ताओं ने इस सिद्धांत को रेडियोसिंथेसिस नाम दिया है। मानव त्वचा और कई अन्य जीवों की त्वचा में, मेलेनिन सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरण के विरुद्ध एक ढाल का काम करता है। जब एक गामा किरण चेरनोबिल के कवक के मेलेनिन से टकराती है, तो वह उसके इलेक्ट्रानों को हिला देती है और परमाणु स्तर पर रासायनिक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं, जिसका उपयोग कवक अपनी वृद्धि और मरम्मत के लिए करता है।

चंद्रमा के लिए बनेगी 'फंगल ईटें अब, नासा के विज्ञानी इस कवक का उपयोग

करके 'फंगल ईंटें' बनाने का तरीका खोज रहे हैं, जो हल्की निर्माण सामग्री के रूप में काम करेंगी और चंद्रमा या मंगल ग्रह के ठिकानों को भारी सीसे की ढालों की तुलना में ब्रह्मांडीय विकिरण से कहीं बेहतर तरीके से बचा सकेंगी। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) पर, यह कवक अंतरिक्ष विकिरण के संपर्क में आने पर 21 गुना तेजी से बढ़ा और इसकी एक बड़ी मात्रा को अन्य सतहों में प्रवेश करने से रोक दिया, जिससे यह भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक अहम दावेदार बन गया। इसे पृथ्वी पर परमाणु अपशिष्ट स्थलों की सफाई के काम में भी लाया जाएगा।

क्या है चेरनोबिल आपदा

चेरनोबिल आपदा एक परमाणु विगलन था जो 26 अप्रैल, 1986 को शुरू हुआ था। इसके परिणामस्वरूप मानव इतिहास में पर्यावरण में रेडियोधर्मी पदार्थों का सबसे बड़ा उत्सर्जन हुआ। इस दुखद आपदा के बाद, विकिरण के अत्यधिक स्तर से बचने के लिए निवासियों को चेरनोबिल और आसपास के क्षेत्रों से निकाला गया था। तब से, इस क्षेत्र को चेरनोबिल अपवर्जन क्षेत्र (सीइजेड) के रूप में जाना जाता है। यह 48 किमी का क्षेत्र सोवियत संघ द्वारा स्थापित किया गया था, जो उस समय यूक्रेन पर नियंत्रण रखती था।

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