'शादी का मतलब ये नहीं कि पत्नी आपके कंट्रोल में रहे', बुजुर्ग दंपती की याचिका पर कोर्ट ने सुनाया फैसला

'शादी का मतलब ये नहीं कि पत्नी आपके कंट्रोल में रहे', बुजुर्ग दंपती की याचिका पर कोर्ट ने सुनाया फैसला



मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि भारतीय विवाह व्यवस्था को पुरुषवादी सोच से बाहर आना होगा। कोर्ट ने एक बुजुर्ग दंपती के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि महिलाओं की सहनशीलता को उनकी सहमति नहीं समझना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि घरेलू क्रूरता को अनदेखा नहीं किया जा सकता और महिलाओं को समानता और सम्मान मिलना चाहिए।





मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि भारतीय विवाह व्यवस्था को पुरुषवादी वर्चस्व की छांव से निकलकर समानता और परस्पर सम्मान की रोशनी में विकसित होना होगा।

न्यायालय ने कहा कि खराब विवाहों में महिलाओं के अनुचित सहनशीलता ने पुरुषों की पीढ़ियों को महिलाओं को काबू करने और उन्हें अधीन करने की हिम्मत दी। न्यायाधीश ने यह टिप्पणी 1965 में विवाहित एक वृद्ध दंपत्ति के बीच वैवाहिक विवाद से संबंधित एक फैसले में की है।

80 साल के दंपती के मामले में सुनवाई

न्यायालय ने कहा, "इस मामले में 80 बरस की हो चुकी पीड़िता भारतीय महिलाओं की उस पीढ़ी की प्रतीक है, जिन्होंने लगातार मानसिक और भावनात्मक क्रूरता को चुपचाप सहा, यह सोचकर कि सहनशीलता उनका गुण है और सहनशीलता उनका कर्तव्य है। इस तरह की अनुचित सहनशीलता ने पुरुषों की पीढ़ियों को पितृसत्तात्मक विशेषाधिकार की आड़ में नियंत्रण, प्रभुत्व और उपेक्षा का साहस दिया है।"


न्यायालय ने आगे कहा कि हालांकि अदालतें पारिवारिक विवादों के अति-अपराधीकरण के प्रति सतर्क रहती हैं, लेकिन घरेलू क्रूरता की अदृश्यता को भी दण्ड से मुक्ति की आड़ में नहीं आने दिया जा सकता।

अदालत ने फैसले में कहा, "इस फैसले से जो संदेश निकलता है, वह अदालती सीमाओं से परे भी गूंजना चाहिए: महिलाओं, खासकर बुजुर्ग पत्नियों के धैर्य को अब सहमति नहीं समझा जाना चाहिए, न ही उनकी चुप्पी को स्वीकृति। भारतीय विवाह व्यवस्था, भले ही उच्च आदर्शों पर आधारित हो, को पुरुषवादी वर्चस्व की छाया से निकलकर समानता और परस्पर सम्मान के प्रकाश में विकसित होना होगा।"

Share this

Related Posts

Previous
Next Post »