अंतरिक्ष से Volcano पर क्यों नजर रख रहा नासा? आपको भी जाननी चाहिए वजह

अंतरिक्ष से Volcano पर क्यों नजर रख रहा नासा? आपको भी जाननी चाहिए वजह

नासा अंतरिक्ष से ज्वालामुखियों पर नजर रख रहा है ताकि उनकी गतिविधियों को समझा जा सके और विस्फोटों की भविष्यवाणी की जा सके। नासा पेड़ों की पत्तियों में बदलाव पर भी रिसर्च कर रहा है ताकि ज्वालामुखी विस्फोट के संकेतों का अंदाजा लगाया जा सके। नासा ने ज्वालामुखियों पर नजर रखने के लिए कई सैटेलाइट्स और उपकरण तैनात किए हैं। नासा का मकसद ज्वालामुखी वॉर्निंग सिस्टम को बेहतर करना है।


ये ज्वालामुखी न सिर्फ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं, बल्कि जलवायु और इंसानी जिंदगियों पर भी गहरा असर डालते हैं।


 नासा अंतरिक्ष से ज्वालामुखियों पर पैनी नजर रख रहा है। अंतरिक्ष एजेंसी ऐसा इसलिए कर रही है ताकि इनकी हरकतों को समझा जा सके और विस्फोटों की भविष्यवाणी की जा सके।

ये ज्वालामुखी न सिर्फ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं, बल्कि जलवायु और इंसानी जिंदगियों पर भी गहरा असर डालते हैं। नासा की यह कोशिश धरती को सुरक्षित रखने के लिए है।

इसी को लेकर नासा पेड़ों की पत्तियों में बदलाव पर भी बारीकी से रिसर्च कर रहा है। इन पत्तियों के सहारे ही ज्वालामुखी विस्फोट का संकेतों का अंदाजा लगाया जा रहा है।



वैज्ञानिकों का मानना है कि अंतरिक्ष से भी इन बदलावों पर नजर रखी जा सकती है। इस तरह की निगरानी से नासा ज्वालामुखियों की गतिविधियों को पहले से भांपने की कोशिश में है।




अंतरिक्ष से ज्वालामुखियों की हो रही है निगरानी

नासा ने ज्वालामुखियों पर नजर रखने के लिए कई सैटेलाइट्स और उपकरण तैनात किए हैं। अंतरिक्ष में तैनात लैंडसैट 8 और 9 हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरें लेते हैं, जिनसे ज्वालामुखी की गतिविधियों और उससे निकलने वाली राख को देखा जा सकता है। सेंटिनल-5P सल्फर डाइऑक्साइड जैसे ज्वालामुखी गैसों को ट्रैक करता है। वहीं GOES-R सीरीज रियल-टाइम तस्वीरें देता है। इससे विस्फोट और राख के बादलों को देखा जा सकता है, जबकि MODIS सैटेलाइट वायुमंडल में ज्वालामुखी राख और एयरोसॉल पर नजर रखता है।


ये उपकरण नासा को ज्वालामुखियों की हर गतिविधि पर नजर रखने में मदद करते हैं। इससे न सिर्फ विस्फोटों की भविष्यवाणी आसान होती है, बल्कि इनके असर को भी वक्त रहते भांपा जा सकता है।
वक्त रहते लोगों की जिंदगी बचाने की कवायद में जुटा हुआ है नासा

एनडीटीवी ने नासा के वैज्ञानिक फ्लोरियन श्वांडनर के हवाले से बताया है, "ज्वालामुखी की वॉर्निंग सिस्टम पहले से मौजूद हैं, लेकिन हमारा मकसद इन्हें और बेहतर और पहले से तैयार करना है।"


उन्होंने क्लाइमेट साइंटिस्ट जोश फिशर और ज्वालामुखी विशेषज्ञ रॉबर्ट बोग के साथ मिलकर यह काम शुरू किया था।

नासा की माने तो ज्वालामुखी दुनिया की करीब 10 फीसदी आबादी के लिए खतरा हैं। खासकर उन लोगों के लिए जो इन ज्वालामुखी के आसपास के बाशिंदे हैं या फिर काम करते हैं। लेकिन लगातार चौंकन्ना रहने से सरकारें और लोग पहले से तैयार हो सकते हैं और जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है।



नासा के सैटेलाइट्स ज्वालामुखी राख और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसों को पकड़ते हैं। ये गैस जलवायु पर असर डालती हैं और हवाई यात्रा के लिए भी खतरा बन सकती हैं। ये गैसें इंसानी सेहत को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। अंतरिक्ष से मिली जानकारी से वैज्ञानिक धरती के अंदर की हलचल और ज्वालामुखियों के वायुमंडल पर असर को बेहतर समझ पाते हैं।

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