हाईकोर्ट सवर्ण और जिला कोर्ट शूद्र', मध्य प्रदेश HC ने किस मामले में की तीखी टिप्पणी; जानिए अदालत ने और क्या कहा?

 हाईकोर्ट सवर्ण और जिला कोर्ट शूद्र', मध्य प्रदेश HC ने किस मामले में की तीखी टिप्पणी; जानिए अदालत ने और क्या कहा?


मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एक बेंच ने अपने एक आदेश में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। हाईकोर्ट की एक पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट और जिला कोर्ट के बीच सामंत और गुलाम जैसे रिश्ते हैं। साल 2016 में एससी एसटी एक्ट की विशेष न्यायाधीश के रूप में भोपाल जिला अदालत में पदस्थ रहे जगत मोहन चतुर्वेदी की ओर से यह याचिका दायर की गई थी।


मध्य प्रदेश HC ने एक मामले में की तीखी टिप्पणी। (फाइल फोटो)


मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एक बेंच ने अपने एक आदेश में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। युगल पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट और जिला कोर्ट के बीच सामंत और गुलाम जैसे रिश्ते हैं।

टिप्पणी में कहा गया कि जिला कोर्ट के जज हाई कोर्ट जजों से मिलते हैं तो उनकी बॉडी लैंग्वेज बिना रीढ़ की हड्डी वाले स्तनधारी के गिड़गिड़ाने जैसी होती है। हाई कोर्ट के जज खुद को सवर्ण और जिला कोर्ट के जजों को शूद्र समझते हैं।

जानिए क्या है पूरा मामला

दरअसल, कोर्ट ने कहा कि इस मामले में व्यापमं मामले में आरोपी को जमानत देने के कारण हाई कोर्ट ने संबंधित जज को बर्खास्त कर दिया। हाई कोर्ट के ऐसे कृत्य से जिला न्यायपालिका में संदेश जाता है कि बड़े मामलों में निर्दोष साबित करने, जमानत देने से संबंधित जज के खिलाफ के विपरीत कारवाई हो सकती है।

बता दें कि कोर्ट ने गलत तरीके से बर्खास्त किए गए न्यायाधीश को बैकवेजेस के साथ पेंशन का भुगतान करने को कहा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता जज को पांच लाख का मुआवजा प्रदान करने की निर्देश भी दिए।

जानकारी दें कि साल 2016 में एससी एसटी एक्ट की विशेष न्यायाधीश के रूप में भोपाल जिला अदालत में पदस्थ रहे जगत मोहन चतुर्वेदी की ओर से यह याचिका दायर की गई थी। उन पर आरोप लगा था कि 2015 में व्यापमं मामले के आरोपी कुछ छात्रों को उन्होंने अग्रिम जमानत दी। जबकि इसी मामले में अन्य आरोपियों की जमानत अर्जी निरस्त कर दी।


अलग-अलग तथ्यों के चलते विभिन्न आदेश दिए। इस पर हाई कोर्ट प्रशासन ने उनके विरुद्ध कदाचरण की कार्रवाई करते हुए बर्खास्त कर दिया। हाई कोर्ट की फुल कोर्ट मीटिंग में अनुमोदन किया गया। याचिकाकर्ता की अपील भी निरस्त कर दी गई। तर्क दिया गया कि अलग-अलग मामलों के तथ्यों के आधार पर उन्होंने जज की हैसियत से अलग-अलग आदेश दिए थे।

जानिए कोर्ट ने क्या कहा?

सुनवाई के बाद कोर्ट ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और जिला न्यायपालिका के न्यायाधीशों के बीच निराशाजनक संबंध की आलोचना की। इसे एक सामंत और दास के बीच का रिश्ता बताया।

कोर्ट ने कहा कि एक अहंकारी उच्च न्यायालय छोटी-छोटी गलतियों के लिए जिला न्यायपालिका को फटकार लगाने की कोशिश करता है, जिससे जिला न्यायपालिका को दंड के भय में रखा जाता है। पीठ ने कहा कि इससे न्याय व्यवस्था प्रभावित होती है।

जिला न्यायाधीश बन जात हैं रीढ़हीन प्रजाति

हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, जिला न्यायपालिका के न्यायाधीश जब उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का अभिवादन करते हैं, तो उनकी शारीरिक भाषा, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सामने गिड़गिड़ाने जैसी होती है। जिससे जिला न्यायपालिका के न्यायाधीश अकशेरुकी यानि बिना रीढ़ के स्तनधारियों की प्रजाति बन जाते हैं।

जिला न्यायपालिका के न्यायाधीशों द्वारा रेलवे प्लेटफार्म पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से व्यक्तिगत रूप से मिलने और उनके लिए जलपान की सेवा करने के उदाहरण आम हैं। उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री में प्रतिनियुक्ति पर आए जिला न्यायपालिका के न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कभी भी बैठने की पेशकश नहीं करते हैं। जब कभी उन्हें ऐसा मौका मिलता भी है, तो वे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सामने बैठने में हिचकिचाते हैं।

हाई कोर्ट ने कहा कि जाति व्यवस्था की छाया राज्य के न्यायिक ढांचे में स्पष्ट दिखाई देती है, जहां उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सवर्ण हैं और जिला न्यायपालिका के जज शूद्र व दयनीय हैं। इससे जिला न्यायपालिका मानसिक रूप से कमजोर हो जाती है, जो अंतत: उनके न्यायिक कार्यों में परिलक्षित होती है।

हाईकोर्ट ने और क्या कहा?

जहां सबसे योग्य मामलों में भी जमानत नहीं दी जाती, अभियोजन पक्ष को संदेह का लाभ देकर सबूतों के अभाव में दोषसिद्धि दर्ज की जाती है और आरोप ऐसे लगाए जाते हैं, मानो दोषमुक्त करने का अधिकार ही न हो। यह सब उनकी नौकरी बचाने के नाम पर होता है, जिसका खामियाजा इस मामले में याचिकाकर्ता को अलग तरह से सोचने और काम करने के कारण भुगतना पड़ा।

हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त हो चुका है। उसके साथ हुए घोर अन्याय के कारण उसके पेंशन संबंधी लाभों को बहाल करने के निर्देश दिए जाते हैं। उसे सेवा समाप्ति की तिथि से लेकर सेवानिवृत्ति की तिथि तक का बकाया वेतन सात प्रतिशत ब्याज सहित दिया जाए। उसे समाज में जो अपमान सहना पड़ा, उसे देखते हुए उसे पांच लाख रुपये जुर्माना का भुगतान किया जाए।

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