इंग्लिश-कश्मीर विलो से बने लेमिनेटेड बल्ले को जल्द मिल सकती मंजूरी, क्रिकेट बैट की बनावट में आ सकता बड़ा बदलाव

इंग्लिश-कश्मीर विलो से बने लेमिनेटेड बल्ले को जल्द मिल सकती मंजूरी, क्रिकेट बैट की बनावट में आ सकता बड़ा बदलाव

क्रिकेट नियमों का संरक्षक मेरिलबोर्न क्रिकेट क्लब (एमसीसी) जल्द ही एक ऐसे बल्ले को मंजूरी दे सकता है जो इंग्लिश और कश्मीर विलो से मिलकर बना है। यह बल्ला आम बल्ले की तुलना में अधिक टिकाऊ और किफायती है। मेरठ स्थित प्रतिष्ठित खेल सामान निर्माता कंपनी एसजी ने इसे विकसित किया है। इस लेमिनेटेड बैट का फ्रंट फेस इंग्लिश विलो (लकड़ी) का बना होता है।


क्रिकेट बैट में हो सकता बड़ा बदलाव। इमेज- बीसीसीआई

 मैनचेस्टर : क्रिकेट नियमों का संरक्षक मेरिलबोर्न क्रिकेट क्लब (एमसीसी) जल्द ही एक ऐसे बल्ले को मंजूरी दे सकता है, जो इंग्लिश और कश्मीर विलो से मिलकर बना है। यह बल्ला आम बल्ले की तुलना में अधिक टिकाऊ और किफायती है।


मेरठ स्थित प्रतिष्ठित खेल सामान निर्माता कंपनी एसजी ने इसे विकसित किया है। इस लेमिनेटेड बैट का फ्रंट फेस इंग्लिश विलो (लकड़ी) का बना होता है, जिससे पारंपरिक गुणवत्ता बनी रहती है, जबकि बैक फेस कश्मीर विलो का होता है, जिससे लागत में कमी आती है और बल्ले की मजबूती बढ़ती है।


लंदन में एमसीसी में बैठक करने आए एसजी के सीईओ पारस आनंद ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में बताया कि हमारी इसको लेकर बातचीत हुई है। इस तकनीक पर एमसीसी गहन परीक्षण कर रहा है और यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि इससे बल्लेबाजों को अनुचित लाभ न मिले और गेंदबाजों के साथ कोई अन्याय न हो। फिलहाल यह बल्ले क्लब स्तर पर इस्तेमाल हो रहे हैं।


संतुलन, टिकाऊपन और लागत के लिहाज से खिलाडि़यों की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। हाल ही में एमसीसी ने सभी प्रमुख बल्ला निर्माताओं, विशेषज्ञों और पूर्व खिलाड़ियों के साथ बैठक की थी, जिसमें इस बल्ले को लेकर संभावनाएं और चुनौतियां साझा की गईं। पारस आनंद के मुताबिक, अगर इसे मंजूरी मिलती है तो यह क्रिकेट बैट इंडस्ट्री में एक क्रांतिकारी बदलाव होगा।

सूत्रों ने बताया कि एमसीसी इसको मंजूरी दे सकता है क्योंकि सिर्फ इंग्लिश विलो से बने बल्ले बहुत महंगे बिकते हैं। सिर्फ एक कंपनी ही इंग्लिश विलो का निर्यात करती है और जब मर्जी चाहे उसके दाम बढ़ा देती है जिसके कारण गरीब देश के आम क्रिकेटर अच्छे बल्ले इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं और उससे क्रिकेट के विकास में भी बाधा आ रही है।


कश्मीर विलो सस्ती है। लेमिनेटेड बल्ले में आगे का हिस्सा (जहां से शॉट खेलते हैं) इंग्लिश विलो का होगा और पीछे का हिस्सा (उभरा वाला) कश्मीर विलो का होगा। दोनों को जोड़कर ये बनाया जाएगा। इससे कम कीमत पर खिलाड़ियों को अच्छा बल्ला मिल पाएगा।

क्रिकेट बल्ले की यात्राक्रिकेट बल्ले का इतिहास 17वीं सदी से शुरू होता है, जब बल्ला हॉकी स्टिक की तरह गोल सिर वाला हुआ करता था।
तब यह आमतौर पर एल्म की लकड़ी से बनता था और इसका मुख्य उद्देश्य गेंद को रोकना था, न कि रन बनाना।
1760 के बाद गेंदबाजों ने पिच पर गेंद को बाउंस करना शुरू किया, जिससे बल्ले की डिजाइन में बदलाव हुआ। इसे सीधा और चौड़ा बनाया गया।
18वीं सदी के अंत में विलो वुड बल्लों के लिए सबसे पसंदीदा लकड़ी बन गई, विशेषकर इंग्लिश विलो।
1950 के आसपास में कश्मीर विलो का उपयोग शुरू हुआ, जो भारतीय उपमहाद्वीप में खासा लोकप्रिय हुआ।
जब एल्युमिनियम बैट पर लगाया था प्रतिबंध

1979 में डेनिस लिली के एल्युमिनियम बैट पर प्रतिबंध लगाया गया था, क्योंकि उससे खेल का संतुलन बिगड़ रहा था। लिली ने एशेज सीरीज के दौरान इंग्लैंड के विरुद्ध एक मैच में यह बल्ला इस्तेमाल किया था, तब क्रिकेट में लकड़ी के बल्ले का नियम नहीं था लेकिन बल्लेबाजी के दौरान इस बैट से गेंद का आकार खराब होने के कारण इंग्लैंड ने अंपायर से इसकी शिकायत की और अंपायरों ने उन्हें लकड़ी का बल्ला इस्तेमाल करने को कहा था। इसके बाद लिलि ने गुस्से में बल्ला फेंक दिया था। इस घटना के बाद आइसीसी ने नियमों में बदलाव करते हुए केवल लकड़ी का बल्ला इस्तेमाल करने का नियम बनाया था।

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