'राजनीतिक हथियार के रूप में न हो इसका इस्तेमाल', जातिगत जनगणना पर RSS का बड़ा बयान
आरएसएस हमेशा से जाति आधारित विभाजन और भेदभाव का विरोध करता रहा है। हालांकि संगठन का मानना है कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए कोटा में उप-वर्गीकरण या क्रीमी लेयर जैसी व्यवस्थाओं को लागू करने से पहले सभी हितधारकों के साथ परामर्श और सहमति बनाना जरूरी है। RSS अपनी सामाजिक समरसता मुहिम के तहत हिन्दू समाज को एकजुट करने की दिशा में काम करता रहा है।

केंद्र की मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने की बात कही है। इसे लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने एक सधा हुआ रुख अपनाते हुए कहा है कि इसे 'राजनीतिक हथियार' के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
सूत्रों के अनुसार, संघ ने केंद्र सरकार के दशकीय जनगणना के साथ जाति-आधारित गणना करने के फैसले पर आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन इस मुद्दे पर अपनी सतर्कता और संवेदनशीलता जाहिर की है।
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जाति के आधार पर विभाजन और भेदभाव का विरोध करता रहा है RSS
आरएसएस हमेशा से जाति के आधार पर विभाजन और भेदभाव का विरोध करता रहा है। हालांकि, संगठन का मानना है कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए कोटा में उप-वर्गीकरण या क्रीमी लेयर जैसी व्यवस्थाओं को लागू करने से पहले सभी हितधारकों के साथ 'परामर्श और सहमति' बनाना जरूरी है।
केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल को जातिगत जनगणना का निर्णय लिया है, इससे एक दिन पहले पीएम मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात हुई थी, जो इस मुद्दे पर संघ की सहमति की ओर इशारा करता है।

जाति आधारित मुद्दे राष्ट्रीय एकता के लिए हैं महत्वपूर्ण
आरएसएस अपनी 'सामाजिक समरसता' मुहिम के तहत हिन्दू समाज को एकजुट करने की दिशा में काम करता रहा है। संगठन का कहना है कि जातिगत गणना को 'पॉलिटिकल टूल' के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
पिछले साल सितंबर में केरल के पलक्कड़ में मीडिया को संबोधित करते हुए RSS के मुख्य प्रवक्ता सुनील अंबेकर ने कहा था कि जाति सबंधी मुद्दे संवेदनशील हैं और राष्ट्रीय एक्ता व अखंडता के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा था, "इसे बहुत संवेदनशीलता के साथ संभाला जाना चाहिए, न कि चुनावी या राजनीतिक आधार पर।"

अंबेकर ने RSS का रुख किया स्पष्ट
जातिगत जनगणना की मांग पर आरएसएस प्रवक्ता ने तब यह स्पष्ट किया था कि आरएसएस को जाति डेटा संग्रह करने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए हो, जो पिछड़े हैं और जिन्हें विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
उन्होंने कहा था, "यह डेटा पहले भी एकत्रित किया जाता रहा है, लेकिन इसका उपयोग केवल उन समुदायों के कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि चुनावी राजनीतिक हथियार के रूप में।"
RSS का समर्थन
RSS के इस बयान को अब एक महत्वपूर्ण समर्थन के रूप में देखा जा रहा है, जिसने नरेंद्र मोदी सरकार को अपने वैचारिक आधार से किसी बड़े विरोध का सामना किए बिना इस दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता साफ किया।
बिहार में जमीनी स्तर पर लागू जातिगत जनगणना और RSS के राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन के साथ, यह प्रक्रिया अब भारत की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक नीतियों के साथ-साथ चुनावी विमर्श को नए सिरे से परिभाषित करने की ओर अग्रसर है।
भारत, जो अभी भी सामाजिक न्याय, प्रतिनिधित्व और आर्थिक समानता की चुनौतियों से जूझ रहा है, उसके लिए यह जनगणना एक ऐसी ठोस आंकड़ों की नींव प्रदान कर सकती है, जिसकी कमी नीति-निर्माताओं, कल्याण योजनाकारों और राजनीतिक नेताओं को लंबे समय से खल रही थी।
जैसे-जैसे सरकार इस विशाल डेटा संग्रह की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी कर रही है, एक बात स्पष्ट है- जाति की राजनीति अब केवल कथाओं पर नहीं, बल्कि आंकड़ों पर आधारित एक नए दौर में प्रवेश कर रही है।
यह कदम न केवल सामाजिक समरसता और समावेशी विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि जातिगत गणना का उपयोग समाज के हित में हो, न कि विभाजनकारी राजनीतिक उद्देश्यों के लिए।